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जाने किसानों के 9 विशेष अधिकार

भारत पादप किस्मों की सुरक्षा के मामले में कृषि की दृष्टि से विकसित देशों के समूह में शामिल
 
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बीज का अधिकार 

क्षतिपूर्ति का अधिकार

पौधों की नई किस्मों के विकास तथा पादप आनुवांशिक संसाधनों के संरक्षण, उनमें सुधार तथा उन्हें उपलब्ध कराने के लिए यह आवष्यक समझा गया कि किसानों द्वारा किए गए योगदान को मान्यता प्रदान की जाए तथा उनके अधिकारों को सुरक्षित रखा जाए। इसलिए वर्ष 2001 में पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम को लागू किया गया। इस अधिनियम को लागू करने के बाद भारत पादप किस्मों की सुरक्षा के मामले में कृषि की दृष्टि से विकसित देशों के समूह में शामिल हो गया है। इस अधिनियम को कार्यान्वित करने के लिए नवम्बर 2005 में पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवी और एफआरए) का सृजन हुआ। पीपीवी और एफआर अधिनियम द्वारा कानूनी रूप से 'कृषक किस्म' को पंजीकृत कराया जा सकता है। यह अधिनियम किसानों द्वारा जंगली / स्थानीय किस्मों को अपने आर्थिक परीक्षणों से चयनित और विकसित करने के संदर्भ में मूल्य संवर्धन प्रदान करता है। भारतीय पीपीवी और एफआर अधिनियम, इस प्रकार, किसानों को जैव-विविधता का सृजक, संरक्षक और सुधारक व इसके साथ-साथ पादप प्रजनक भी मानता है। पीपीवी और एफआर अधिनियम 2001 पादप प्रजनको और किसानों को समान स्तर प्रदान करता है।

इस अधिनियम के अन्तर्गत कृषकों के 9 विशेष अधिकार है--

1. बीज का अधिकार [धारा 39(1) (iv)]

कृषक अपने खेत के उत्पाद (जिसमें संरक्षित किस्म के बीज भी शामिल है) को बचाने, उपयोग में लेने, बुवाई करने, पुनः बुवाई करने, आदान-प्रदान करने, बेचने और अन्य किसानों के साथ साझा करने का अधिकार प्राप्त है किन्तु इस अधिनियम के अन्तर्गत वह किसी सुरक्षित किस्म के ब्रांडेड बीज की बिक्री नहीं कर सकते हैं। कृषक अपने खेत पर उत्पादित किये गये किसी भी फसल के बीज को बचाकर उपयोग में ले सकते हैं।

2. लाभ में भागीदारी का अधिकार [धारा 26]

लाभ में भागीदारी कृषकों के अधिकारों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक है। यह अधिनियम पौध प्रजनक और कानूनी संस्थाएं जिनमें किसान भी सम्मिलित हैं जो पौध प्रजनक को नई किस्म के विकास के लिए पौध आनुवांषिक संसाधन उपलब्ध करवाते हैं, सभी को पंजीकृत किस्म से प्राप्त होने वाले वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करने का अधिकार दिलाता है।

पीपीवी और एफआर अधिनियम 2001 ऐसा पहला कानून है जिसमें पौध प्रजनक के अधिकारों के साथ एकीकृत रूप से लाभ भागीदारी और उपयोग का प्रावधान है। आनुवांषिक संसाधनों का प्रजनन में उपयोग के लिए अनुमति जैव विविधता कानून, 2002 के अंतर्गत दी जाती है। पीपीवी और एफआर अधिनियम के अंतर्गत प्रजनक को नई किस्म की उत्पत्ति के लिए उपयोग में लाये गये आनुवांशिक संसाधन के भौगोलिक स्त्रोत की घोषणा करने की आवश्यकता होती है।

3. क्षतिपूर्ति का अधिकार [धारा 39(2)]

पंजीकृत बीज को बेचते समय पैकिंग पर सिफारिश लिखी होनी चाहिए। कृषक पीपीवी और एफआर अधिनियम 2001 के अंतर्गत किसी भी किस्म के निष्पादन न देने पर प्रजनक पर क्षतिपूर्ति के लिए दावा कर सकता है।

4. उचित मूल्य पर बीज प्राप्त करने का अधिकार [धारा 47]

कृषकों को उचित मूल्य पर पंजीकृत किस्म का बीज प्राप्त करने का अधिकार है। जब कृषकों को पंजीकृत किस्म का बीज उचित मूल्य पर प्राप्त नहीं होता है तो उस किस्म को अनिवार्य लाइसेंस के अंतर्गत अन्य एजेंसी को उचित मात्रा में उत्पादन कराने की अनुमति मिल जाती है। पौध किस्म संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित किस्म के बीज की कृषकों को उचित दर पर और उचित मात्रा में उपलब्धता सुनिष्चित करने का प्रावधान है।

5. किस्म मान्यता और संरक्षण में किए गये योगदान के लिए पुरस्कार प्राप्त करने का अधिकार धारा 47] [धारा 39 (i) (iii) और धारा 45 (2) (क)]

पीपीवी और एफआर नियमावली में विषेष रूप से कृषि जैव विविधता हॉट स्पॉटस के रूप में पहचाने गए क्षेत्रों में आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पौधे व उनके वन्य संबंधियों के आनुवांशिकी संसाधनों के संरक्षण, सुधार तथा परिरक्षण में लगे हुए आदिवासी तथा ग्रामीण समुदायों के कृषकों, कृषक समुदायों को राष्ट्रीय जीन निधि से सहायता प्रदान करने तथ पुरस्कृत करने का प्रावधान है। इन प्रावधानों को परिचालित करने के लिए पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार प्रारंभ किया गया है। इसके अंतर्गत प्रतिवर्ष अधिकतम पांच पुरस्कार दिए जाते हैं। इस पुरस्कार में 10 लाख रूपये नगद, एक उद्धरण तथा एक स्मृति चिन्ह प्रदान किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त दस कृषकों को पादप जीनोम संरक्षक पुरस्कार प्रदान किए जाते है। जिनके अंतर्गत प्रत्येक को 1 लाख रूपये, उद्धरण तथा स्मृति चिन्ह दिये जाते हैं व 15 कृषकों को पादप जीनोम संरक्षक कृषक सम्मान प्रमाण-पत्र दिये जाते हैं। इन पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का चयन किसी विषेषज्ञ वैज्ञानिक के नेतृत्व में स्थापित कि गई विषेषज्ञों / वैज्ञानिकों की समिति द्वारा किया जाता है।

6. कृषक किस्म के पंजीकरण का अधिकार [धारा 39 (1)(iii)]

पीपीवी और एफआर अधिनियम कृषकों की उन किस्मों को पंजीकरण करने का अधिकार प्रदान करता है जो कि विशिष्टता, एकरूपता और स्थायित्व की आवष्यकता पूरी की जाती है। यह अधिकार कृषकों को एक सीमित समय के लिए अवसर प्रदान करता है, इसमें किस्म को पीपीवी और एफआरए के किस्म पोर्टफोलियों में शामिल होने के बाद पंजीकृत किया जाता है तथा एक बार पंजीकृत हो जाने के बाद यह किस्म पौध प्रजनक अधिकार के अन्तर्गत आ जाती है।

7. किस्म व्यावसायीकरण के लिए पूर्व अनुमति देने का अधिकार [धारा 28 (6)]

जब किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विकसित गई किस्म के विकास के लिए कृषक की नई या पुरानी किस्म का प्रयोग स्त्रोत सामग्री के रूप में किया जाता है तो कृषकों से इसके व्यावसायिकरण से पूर्व अनुमति की आवष्यकता होती है। यह प्रक्रिया किसानों को प्रजनक के साथ रॉयल्टी, लाभ के बंटवारे का प्राधिकरण और शर्तें प्रदान करती है।

8. किस्म के पंजीकरण शुल्क से छूट का अधिकार [धारा 44]

पीपीवी और एफआर अधिनियम कृषकों को किस्म के पंजीकरण के लिए लगने वाले किसी भी प्रकार के शुल्क से छूट प्रदान करता है। इसमें स्पष्टता, समानता और स्थिरता और अन्य प्रकार की पंजीकृत सेवा जो पीपीवी और एफआर प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाती है।

9. अनजाने में हुए कानूनी उल्लंघन के प्रति छूट [धारा 42]:

यदि कोई कृषक न्यायालय में यह साबित कर देता है कि उसके द्वारा किये पीपीवी और एफआर अधिनियम की अवहेलना के समय उसको इस अधिनियम की पूरी जानकारी नहीं थी तो उसे दोष मुक्त किया जा सकता है। जो किस्में विषिष्टता, एकरूपता और स्थिरता के मानदंडों को पूरा करती है, उनका पंजीकरण इस अधिनियम के अंतर्गत आसानी से किया जा सकता है। केन्द्र सरकार ने किस्मों के पंजीकरण के उद्देष्यों से आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना भी प्रकाशित की है। इसमें 107 नई पौध किस्मों और 114 फसल प्रजातियों के पंजीकरण के उद्देष्य से अधिसूचना जारी की है (विस्तृत सूचना वेबसाइट www.plantauthority.gov.in पर उपलब्ध है)। पीपीवी और एफआर प्राधिकरण ने प्रत्येक किस्म की विषिष्टता, एकरूपता और स्थिरता के मापदण्डों के लिए विषेष दिषानिर्देष भी बनाए है। यह अधिनियम कृषकों के साथ-साथ कृषक समुदायों, प्रजनकों को तथा अनुसंधानकर्ताओं को भी अधिकार प्रदान करता है

समुदाय के अधिकार

1. यह ग्राम अथवा समुदायों को उस किस्म के विकास में उल्लेखनीय योगदान के लिए दी जाने वाली क्षतिपूर्ति है जो अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत की जा चुकी है।

2. कोई भी व्यक्ति / व्यक्तियों का समूह / सरकारी या गैर-सरकारी संगठन, भारत में किसी गांव / स्थानीय समुदाय

की ओर से किसी भी अनुसूचित केन्द्र में किसी भी किस्म के विकास के लिए योगदान का दावा दाखिल कर सकता है।

प्रजनकों के अधिकार

प्रजनकों को सुरक्षित किस्म उत्पन्न करने, उसकी बिक्री करने, उसका विपणन करने, वितरण, आयात या निर्यात का एकमात्र अधिकार होगा। अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कानूनी उपचार के लिए प्रजनक एजेंट / लाइसेंसी नियुक्त कर सकता है व कानूनी अधिकारों का उपयोग कर सकता है।

अनुसंधानकर्ताओं के अधिकार

अनुसंधानकर्ता प्रयोग या अनुसंधान करने के लिए अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किसी भी किस्म का उपयोग कर सकता है। इसमें कोई अन्य किस्म विकसित करने के लिए किसी किस्म को आरंभिक स्त्रोत के रूप में उपयोग करना भी शामिल है लेकिन यदि सामग्री का बार-बार उपयोग करना पड़े तो इसके लिए पंजीकृत प्रजनक से पूर्व अनुमति लेने की आवष्यकता होगी।

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