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श्रद्धा-भावना Feeling Of Reverence

 
eknath

लघु कथा 

अध्यात्मिक कहानी

संत एकनाथ के आश्रम में एक लड़का रहता था। वह अपने गुरु एकनाथ की सेवा के लिए सदा तत्पर रहता था, लेकिन वह खाने का शौकीन बहुत था, इसलिए उसका नामक पूरणपौड़ा प्रसिद्ध हो गया। एकनाथ जब इस संसार से प्रयाण करने को थे, तब उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा, मैं एक ग्रंथ लिख रहा था, अब शायद वह पूर्ण न हो सके। मेरे जाने के बाद उसे पूरणपौड़ा से पूरा करवा लेना। यह सुनकर शिष्यों में हलचल मच गई। उन्होने कहा, महाराज, आपका बेटा हरि पंडित भी पढ़-लिखकर शास्त्री बन गया है, यह काम उसके जिम्मे क्यों नहीं देते? यह अनपढ़ लड़का boy भला उसे क्या पूरा करेगा?

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एकनाथ बोले, हरि मुझे गुरु master के रूप में कम, पिता के रूप में अधिक मानता है। एक गुरु के प्रति जो श्रद्धा-भावना किसी शिष्य के ह्रदय में होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। पूरणपौड़ा गुरु के प्रति श्रद्धा की भावना के रंग में ओत-प्रोत है, इसलिए शास्त्रीय ज्ञान नहीं होने पर भी अपनी श्रद्धा और निष्ठा के कारण वह इस ग्रंथ को पूर्ण करने में समर्थ होगा। तुम लोग चाहो तो पहले हरि को ही यह काम दे दो, परंतु इसे पूरा पूरणपौड़ा ही करेगा।

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