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10. ज्ञानवर्धक व रोचक लघु कथा:- 1. माँ की महानता

 
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स्वामी विवेकानंद से एक जिज्ञासु ने पूछा, ‘‘स्वामीजी,  संसार में माँ की महानता को क्यों इतना महत्त्व दिया जाता है?’’ स्वामीजी मुस्कराते बोले, ‘‘पहले तुम पाँच सेर का एक पत्थर कपड़े में लपेटकर अपनी कमर में बाँधों और फिर चौबीस घंटे के बाद मेरे पास आना, तब मैं तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूँगा।’’  उस व्यक्ति ने वैसा ही किया, लेकिन कुछ ही घंटों बाद वह विवेकानंद के पास पहुँचा और बोला, ‘‘स्वामीजी, आपने एक प्रश्न पूछने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी?’’

 

विवेकानंद बोले, ‘‘इस पत्थर का बोझ तुमसे चंद घंटे भी नहीं सहा गया और माँ नौ महीने तक शिशु का बोझ उठाती है। इस बोझ के साथ वह काम भी करती है और कभी विचलित नहीं होती। माँ से अधिक सहनशील कोई नहीं हो सकता है। इसलिए वह सबसे महान् है।’’

 

2. ईश्वर कहाँ है?

एक बार एक जिज्ञासु ने किसी संत से पूछा, ‘‘महाराज, ईश्वर कहाँ है?’’ संत ने कहा, ‘‘ईश्वर सबमें है।’’  तभी रास्ते पर एक हाथी बेकाबू होकर भागता नजर आया। पीछे-पीछे महावत चिल्ला रहा था, ‘‘रास्ते से हट जाओ हाथी पागल है।’’ संत तो एक तरफ हो गए। लेकिन जिज्ञासु संत की बात याद कर रास्ते पर ही खड़ा रहा और सोचने लगा कि जब सबमें ईश्वर है तो इस हाथी में भी होगा। हाथी चिंघाड़ता हुआ जिज्ञासु के पास आया और उसे सूँड में उठाकर दूर झाड़ियों में फेंक दिया। उसे बहुत चोट आई।

 

 संत उसे देखने गए तो उसने पूछा, ‘‘महाराज, आपने तो कहा था कि ईश्वर सबमें है, फिर ऐसा क्यों हो गया? हाथी में भी अगर ईश्वर था तो उसने मुझ निर्दोष पर हमला क्यों किया?’’ संत ने कहा, ‘‘ईश्वर तो उस महावत में भी था, जो हाथी के पीछे-पीछे चिल्लाता आ रहा था कि हाथी पागल है। तुमने उसकी बात क्यों नहीं सुनी?’’

 

3. संत का हीरा

किसी जंगल में एक संत कुटिया बनाकर रहते थे। उसी जंगल में एक डाकू भी रहता था। जब डाकू को पता चला कि संत के पास कीमती हीरा है, तब उसने निश्चय किया कि मैं संत को बिना कष्ट दिए हीरा प्राप्त करूँगा। इसके लिए उसने अनेक प्रयत्न किए, लेकिन वह असफल रहा। तब एक व्यक्ति ने डाकू को सलाह दी कि वह साधु का वेश धारण करके संत के पास जाए।

 

डाकू साधु के रूप में संत की कुटिया में गया और बोला, ‘‘महात्माजी मुझे अपना शिष्य बना लें।’’  संत ने डाकू को कुटिया में रहने का स्थान दे दिया। जब भी संत कुटिया से बाहर जाते, डाकू उनके सामान में हीरा ढूँढ़ने लगता, लेकिन कई दिन के बाद भी उसे हीरा नहीं मिला। आखिर एक दिन उसने संत से कह ही दिया, ‘‘महात्माजी मैं साधु नहीं हूँ। मैं तो केवल हीरा पाने के लिए साधु बना था।’’

 

 यह सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘‘लेकिन हीरा नहीं मिला। भैया, मैं जब भी बाहर जाता था तो हीरे को तुम्हारे बिस्तर के नीचे रख जाता था। तुम मेरा बिस्तर तो देखते थे, लेकिन अपना बिस्तर नहीं देखते थे। संसार के लोग भी भगवान को बाहर ढूँढ़ते हैं, जबकि भगवान तो आंतरिक मन में विद्यमान हैं।’’

4. सत्य के मार्ग पर चलो

एक नगर में एक संत पधारे। उनके उपदेशों का असर यह हुआ कि धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। इससे उसी नगर का एक पुराना धर्मोपदशक विचलित हो गया- उसे लगने लगा कि अगर संत ज्यादा दिन नगर में रहे तो उसके पास सत्संग के लिए कोई नहीं आएगा। वह संत से जलने लगा और उनके विषय में अनाप-शनाप बातें फैलाने लगा।

संत के बारे में किया गया दुष्प्रचार एक दिन उनके एक नजदीकी शिष्य के कान में पड़ा। शिष्य ने संत जी को तत्काल इस बारे में बताया। उसने यह भी कहा कि नगर का पुराना धर्मोपदेशक आपके बारे में उलटी-सीधी बातें कर रहा है, इसलिए आपको इसका प्रतिवाद करना चाहिए।  संत यह सुनकर मुस्कराते हुए बोले, ‘‘जो लोग मेरे बारे में ऐसी बातें कहते तो उन्हें मैं क्यों भला-बुरा बोलूँ? क्या मेरे प्रतिवाद करने से मेरे विरुद्ध चल रहा दुष्प्रचार थम जाएगा?’’ यह कहकर उन्होेंने शिष्य को यह कहानी सुनाई-

 ‘‘एक हाथी जा रहा था। उसके पीछे कुत्ते भौंकने लगे। लेकिन हाथी अपनी ही मस्ती में चलता रहा। कुत्ते काफी देर तक भौंकते हुए हाथी के पीछे-पीछे चलते रहे, लेकिन आखिर थककर लौट गए। हाथी अगर कुत्तों को समझाने, डाँटने या चुप कराने लगे तो इसका मतलब यह है कि वह कुत्तों की बराबरी कर रहा हैं, वह अपनी गरिमा भूल गया है। हाथी की गरिमा अपने ढंग की है। इसलिए आप लोग मेरी बुराई सुनकर परेशान न हों और सत्य के र्मा पर चलते रहें।’’ संत की बात सुनकर शिष्य के क्रोध का शमन हो गया।

5. बुरे लोगों पर रहम

संत अबू हसन कहा करते थे, ‘‘उसी फकीर का जीवन सार्थक है, जो अपने सत्संग और प्रवचन से लोगों को अच्छाई में लगाने में तत्पर रहता है। चूँकि फकी समाज का दिया भोजन करता है, अत: उसे समाज को उपदेश देकर अपना कर्तव्यपालन करना चाहिए।’’

 संत अबू हसन जहाँ भी जाते, लोग उनके दर्शन के लिए वहीं पहुँच जाते। वे उनकी समस्याओं का पता लगा-लगाकर उनके निराकरण का उपाय बताते, उन्हें नशीले पदार्थों को त्यागने, किसी के साथ दुर्व्यवहार न करने तथा सादगी का जीवन जीने की प्रेरणा देते, वह प्रतिदिन कुछ समय दु:खी और रोगी की सेवा करने को कहते।

 एक दिन वे जंगल में नमाज अदा करने के बाद दोनों हाथों को फैलाकर कहने लगे, ‘‘ऐ खुदा! तू बुरे एवं दुर्व्यसनों से पीड़ित लोगों पर दया कर। अपना समय बुरे कर्मों में बरबाद करने वालों को सद्बुद्धि दे कि वे अच्छे काम करने लगें।’’ उनके शिष्य ने जब यह सुना तो पूछा, ‘‘गुरुदेव! फकीर तो अच्छे लोगों के लिए दुआ माँगते हैं, आप बुरे लोगों के लिए दुआ क्यों माँग रहे थे?’’

शिष्य की बात सुनकर अबू हसन ने कहा, ‘‘अरे पगले! अच्छों को तो पहले ही खुदा की दुआ लगी हुई है। तभी तो वे अच्छे हैं। असली दुआ की जरूरत उन्हें है, जो बुरे हैं। मैं इसीलिए हमेशा खुदा से बुरे लोगों पर रहम करने की प्रार्थना करता हूँ।’’

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6. स्वर्ग की प्राप्ति

एक बार ईसा मसीह के पास एक धनवान व्यक्ति आया। उसने निवेदन किया, ‘‘प्रभु, मैं आपके बताए रास्ते पर चलता हूँ। प्रतिदिन प्रार्थना करता हूँ। लोगों की सेवा करता हूँ। मुझे स्वर्ग भेज दीजिए।’’ ईसा मसीह ने पूछा, ‘‘क्या वास्तव में तुम मेरी शिक्षाओं का पालन करते हो? क्या मेरे प्रत्येक आदेश को मानने के लिया तैयार हो?’’ धनवान व्यक्ति बोला, ‘‘हाँ प्रभु, मैं आपका हर आदेश मानने को तैयार हूँ।’’ईसा मसीह ने कहा, ‘‘यदि तुम मेरा हर आदेश मानने को तैयार हो तो मुझे अपनी तिजोरियों की चाबियाँ सौंप दो।’’

यह सुनकर धनवान व्यक्ति हक्का-बक्का रह गया। उसने कहा, ‘‘भला मैं अपनी तिजोरियों की चाबियाँ कैसे दे सकता हूँ। उन्हीं में तो मेरी सारी जमा पूँजी है। उनके बिना तो मैं सेवा के कार्य भी नहीं कर सकता।’’ यह सुनकर ईसा मसीह बोले, ‘‘वत्स, अपने लोभी को छिपाने के लिए सो की आड़ मत लो। सेवाभावना और परोपकार के लिए धन सँजोने की नहीं, मन सँजोने की जरूरत है। तुम अभी भी लोभ में बँधे हो। कोई भी व्यक्ति जो काम, क्रोध और मद में जकड़ा है, कभी भी स्वर्ग प्राप्त नहीं कर सकता। स्वर्ग प्राप्ति के लिए इन बंधनों से मुक्त होना जरूरी है।’’ यह सुनकर धनवान व्यक्ति लज्जित हो गया।

7. मेहनत की कमाई

चीन में लीत्सु नामक एक संत रहते थे। वह इतने गरीब थे कि कई बार उन्हें और उनकी पत्नी को भूखे पेट सो जाना पड़ता था। फिर भी लीत्सु ने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। मेहनत से वह जो कुछ कमाते, उसी से अपना गुजारा करते। विद्वता, सादगी, ईमानदारी के कारण उनका नाम प्रसिद्ध था। वहाँ का राजा भी उनकी ईमानदारी से प्रभावित था।

एक दिन मंत्री ने राजा से कहा, ‘‘राजन् हमें उनकी आर्थिक सहायता करनी चाहिए।’’ राजा ने तत्काल आदेश दे दिया और अन्न-धन से भरी एक गाड़ी भेज दी। यह देख लीत्सु की पत्नी की आँखें खुशी से छलछला आई। उन्होंने सोचा कि हमारे खराब दिन चले गए हैंं। अब हमें भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। राज्य कर्मचारियों ने लीत्सु से कहा, ‘‘महात्माजी, हमारे राजा ने आपके लिए दान भेजा है। कृपया इसे स्वीकार करें।’’

लीत्सु बोले, ‘‘राजा के साथ मेरा कोई परिचय नहीं है। न तो उन्होंने और न ही मैंने आज तक उन्हें देखा है। सुनी-सुनाई बातों पर दान भेजा है। जो आनंद संतोष, मेहनत की कमाई से मिलता है, वह दान की किसी वस्तु में कहाँ?’’

8. प्रेम के आँसू

एक महात्मा हिमालय पर रहते थे। एक दिन कुछ लोगों की एक टोली उनके पास पहुँची। उन लोगों ने महात्मा से आत्मिक उन्नति का मार्ग पूछा। महात्मा ने बताया, ‘‘सांसारिक मोह-माया में फँसकर आत्मिक उन्नति नहीं हो सकती। लोग दुनिया की मोह-माया में फँस जाते हैं और उनकी आत्मा पर परदा पड़ जाता है।’’ फिर महात्मा ने उन लोगों से पूछा, ‘‘क्या आप लोग गोमुख जाएंगे? वहाँ मेरा एक शिष्य रहता है। उससे मिल लेना। 

पहले वह मेरे साथ ही रहता था, लेकिन मुझे छोड़कर वह चला गया। पता नहीं, अब वह कैसा होगा?’’ यह कहते-कहते महात्माजी की आँखों में आँसू आ गए। महात्मा की आँखों में इस प्रकार आँसू देखकर एक सदस्य ने कहा, ‘‘महाराज, अभी आप हमें मोह-माया छोड़ने का उपदेश दे रहे हैं, लेकिन आप तो स्वयं मोहग्रस्त हैं।’’ महात्मा ने कहा, ‘‘मेरे आँसू मोह के नहीं, बल्कि प्रेम के हैं। मोह बाँधता है, जबकि प्रेम उबारता है।’’

9. अमीरी-गरीबी

एक बार एक बहुत ही दरिद्र आदमी, जिसे कभी भर पेट अन्न नहीं मिलता था, घबराकर एक महात्मा के पास पहुँचा और बोला, ‘‘महाराज, मैं धन के बिना बड़ा अशांत हूँ, खाने को अन्न नहीं, पहनने को वस्त्र नहीं, ऐसी कृपा करो कि मैं पूर्ण धनी हो जाऊँ।’’ संत को उसपर दया आ गई। उसके पास एक पारसमणि थी, उन्होंने वह पारसमणि उसे देते हुए कहा, ‘‘जाओ, इससे जितना चाहो, सोना बना लेना।’’

पारसमणि पाकर वह दरिद्र व्यक्ति खुशी-खुशी अपने घर आ गया और पारसमणि से बहुत सा सोना बनाया, फिर वह धनी बन गया। उसकी गरीबी दूर हो गई, लेकिन अब उसे अमीरी का दु:ख सताने लगा। नित्य नए दु:ख, राज्य का दु:ख, चोरों का भय, सँभालने की परेशानी, किसी प्रकार का चैन नहीं।  एक दिन वह हारकर फिर संत के पास गया और बोला, ‘‘महाराज आपने गरीबी का दु:ख तो दूर कर दिया, लेकिन मैं जानता नहीं था कि अमीरी में भी दु:ख होता है। उन दु:खों ने मुझे घेर लिया है। कृपया कर इनसे बनाइए।’’

संत बोले, ‘‘लाओ पारसमणि मुझे लौटा दो, फिर वैसा ही हो जाएगा।’’  वह व्यक्ति बोला, ‘‘नहीं महाराज, अब मैं गरीब तो नहीं होना चाहूँगा, लेकिन ऐसा सुख दीजिए, जो गरीबी और अमीरी में बराबर मिले, जो मृत्यु के समय भी कम न हो।’’ संत बोले, ‘‘ऐसा सुख तो ईश्वर में है। आत्मज्ञान में है। तू आत्मज्ञान को प्राप्त कर।’’ यह कहकर संत ने उसे आत्मज्ञान का उपदेश देकार आत्म-दर्शन कराया। 

10. ईश्वरीय प्रेम

एक गृहस्थ त्यागी, महात्मा थे। एक बार एक सज्जन दो हजार सोने की मोहरें लेकर उनके पास आए और बोले, ‘‘महाराज, मेरे पिताजी आपके मित्र थे, उन्होंने धर्मपूर्वक अर्थोपार्जन किया था। मैं उसी में से कुछ मोहरों की थैली लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ, उन्हें स्वीकार कर लीजिए।’’ यह कहकर वह सज्जन थैली महात्मा के सामने रखकर चले गए।  महात्मा उस समय मौन थे, कुछ बोले नहीं। पीछे से महात्मा ने अपने पुत्र को बुलाकर कहा, ‘‘बेटा, मोहरों की यह थैली अमुक सज्जन को वापस दे आआ। उनसे कहना, तुम्हारे पिता के साथ मेरा पारमार्थिक ईश्वर को लेकर प्रेम का संबंध था, सांसारिक विषय को लेकर नहीं।’’

यह सुनकर पुत्र बोला, ‘‘पिताश्री! आपका ह्रदय क्या पत्थर का बना है? आप जानते हैं, अपना परिवार बड़ा है और घर में कोई धन गड़ा नहीं है। बिना माँगे उस भले सज्जन ने मोहरें दी हैं तो अपने परिवारवालों पर दया करके ही आपको स्वीकार कर लेना चाहिए।’’ महात्मा बोले, ‘‘बेटा, क्या तेरी ऐसी इच्छा है कि मेरे परिवार के लोग धन लेकर मौज करें और मैं अपने ईश्वरीय प्रेम को बेचकर बदले में सोने की मोहरें खरीदकर दयाजु ईश्वर का अपराधी बनूँ?, नहीं मैं ऐसा कदापि नहीं करूँगा।’’

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