कल मनाई जाएगी सूर्य जयंती, इस दिन व्रत रखने से हर मनोकामना होती है पूरी.
सूर्य जयंती के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति आती है और उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. सूर्य जयंती को सूर्य सप्तमी, रथ सप्तमी, माघ सप्तमी और अचला सप्तमी भी कहा जाता है.
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य जयंती मनाई जाती है. इस बार ये 28 जनवरी यानी कल है. मत्स्य पुराण के मुताबिक यह तिथि पूरी तरह से भगवान सूर्य को समर्पित है. इस दिन भगवान सूर्य के लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा-पाठ का कई गुना फल मिलता है.
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानि कल शनिवार के दिन सूर्य जयंती मनाई जाएगी. मान्यता है कि सूर्य जयंती के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति आती है और उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. सूर्य जयंती को सूर्य सप्तमी, रथ सप्तमी, माघ सप्तमी और अचला सप्तमी भी कहा जाता है.
भगवान सूर्य देव को समर्पित है ये व्रत
हिंदू धर्म में यह तिथि भगवान सूर्य को समर्पित है. यह सूर्य देव के जन्म के रूप में भी मनाई जाती है इस
लिए इसे सूर्य जयंती कहते हैं. मान्यता के अनुसार, जो महिलाएं अचला सप्तमी का व्रत रखती हैं, उनसे सूर्य देव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. यह व्रत महिलाओं मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है. सूर्य देव के इस व्रत को विधि पूर्वक और नियमों के साथ रखना चाहिए.
सूर्य जयंती के व्रत की विधि
इस दिन प्रात: काल उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.
इस दिन नदी में स्नान करने का काफी महत्व है.
स्नान के बाद उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दें. अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र या फिर गायत्री मंत्र का जाप करें.
इसके बाद व्रत का संकल्प लें.
इसके बाद सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बनाएं और पूजन करें. सूर्य देव की तस्वीर के सामने भी पूजा की जा सकती है.
पूजा में लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत, धूप और घी के दीपक का इस्तेमाल करें.
सूर्य देव की लाल रंग कीमिठाई का भोग लगाएं.
पूजन के बाद ब्राह्मण को दान अवश्य दें.
सूर्य जयंती व्रत की कथा (Surya Jayanti/Saptami Vrat Katha)
एक बार भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने पूछा कि कलयुग में कोई स्त्री किस व्रत को करने से सौभाग्यवती हो सकती है. इस पर श्रीकृष्ण ने जबाव में युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई और बताया कि प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वेश्या एक बार ऋषि वशिष्ठ के पास गई और कहा कि हे मुनिराज मैंने आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है.
मुझे बताएं कि मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा. वेश्या को वशिष्ठ मुनि ने बताया कि स्त्रियों के लिए कल्याण, मुक्ति और सौभाग्य देने वाला अचला सप्तमी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है. इसलिए तुम इस व्रत को करो, तुम्हारा कल्याण होगा इंदुमती ने उनके उपदेश के आधार पर विधिपूर्वक व्रत को किया और उसके प्रभाव से शरीर छोड़ने के बाद स्वर्ग लोक में गई. वहां उसे सभी अप्सराओं में सबसे ऊंचा स्थान दिया गया.