होलाष्टक 2025: शुभ कार्यों पर विराम, होली के रंगों की शुरुआत.

होलाष्टक हिंदू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण काल होता है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक रहता है। यह आठ दिनों की अवधि होलिका दहन और होली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है, लेकिन इस दौरान किसी भी मांगलिक और शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है। 2025 में होलाष्टक 7 मार्च से 14 मार्च तक रहेगा।
होलाष्टक का अर्थ और महत्व
शाब्दिक रूप से ‘होलाष्टक’ का अर्थ होता है "होली से पूर्व के आठ दिन" (होला + अष्टक)। यह समय विशेष रूप से धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है, और वातावरण में बदलाव महसूस किया जाता है। सर्दियों का अंत और गर्मियों की शुरुआत के संकेत इसी काल में मिलते हैं।
पौराणिक मान्यता
होलाष्टक को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं—
- कामदेव दहन की कथा – ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था, जिससे प्रकृति में हलचल मच गई थी। तभी से इस समय को अशुभ माना जाने लगा।
- प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा – इस दौरान हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को प्रताड़ित किया, लेकिन विष्णु भक्ति के कारण प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ। अंत में, होलिका दहन के साथ बुराई का नाश हुआ और अच्छाई की जीत हुई।
होलाष्टक में वर्जित कार्य
होलाष्टक को अशुभ काल माना जाता है, इसलिए इन आठ दिनों में कुछ कार्य नहीं किए जाते:
विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
नया व्यवसाय शुरू करने या घर खरीदने से बचा जाता है।
कोई नई वस्तु, विशेष रूप से आभूषण या महंगी संपत्ति, नहीं खरीदी जाती।
होलाष्टक में क्या करें?
भक्ति और पूजा-अर्चना करें।
दान-पुण्य करें, गरीबों को भोजन और वस्त्र दें।
होली उत्सव की तैयारियों में भाग लें और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखें।
होलाष्टक और होलिका दहन की तैयारी
होलाष्टक के पहले दिन गांव या मोहल्ले में होलिका दहन स्थल को शुद्ध किया जाता है। वहां गंगाजल छिड़ककर सूखी लकड़ियां, उपले, और होली का डंडा स्थापित किया जाता है। यह डंडा होलिका का प्रतीक होता है और आठ दिनों तक इसकी पूजा की जाती है।
निष्कर्ष
होलाष्टक नकारात्मकता से मुक्ति पाने और होली की तैयारियों का समय है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इस दौरान शुभ कार्य भले ही वर्जित हों, लेकिन भक्ति, दान और सेवा के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा सकता है। होलाष्टक के बाद होलिका दहन और रंगों की होली का उल्लास पूरे समाज में प्रेम और सौहार्द्र की भावना फैलाता है।