जानें महाशिवरात्रि व्रत कथा।

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन का प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने और शिव कथा सुनने से भक्तों को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में महाशिवरात्रि व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा वर्णित है, जो भगवान शिव की भक्ति का महत्व दर्शाती है।
प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था, जो जंगल में शिकार करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। दुर्भाग्यवश, वह एक साहूकार का ऋणी हो गया और समय पर कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा। क्रोधित साहूकार ने उसे एक शिव मंदिर में बंदी बना लिया। संयोगवश, जिस दिन चित्रभानु को कैद किया गया, वह महाशिवरात्रि का दिन था। उसने मंदिर में शिवरात्रि व्रत कथा सुनी और शिव उपासना के महत्व को जाना।
शाम को साहूकार ने उसे कर्ज चुकाने के लिए कहा, लेकिन चित्रभानु भूखा-प्यासा जंगल में शिकार की तलाश में चला गया। अंधेरा होने पर वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया, जिसकी जड़ों में एक शिवलिंग स्थित था। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि वह जिस पेड़ पर बैठा है, उसके नीचे भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं।
रात का पहला पहर बीतने पर एक गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। शिकारी ने धनुष उठाया, लेकिन हिरणी ने करुणा भरी आवाज़ में कहा, "मैं गर्भवती हूँ और शीघ्र ही एक शावक को जन्म दूँगी। मुझे जीवनदान दो, मैं शीघ्र ही लौट आऊँगी।" चित्रभानु का हृदय पिघल गया और उसने उसे जाने दिया। इस दौरान, बेलपत्र और कुछ टहनियाँ शिवलिंग पर गिर गईं, जिससे अनजाने में ही उसका प्रथम प्रहर का पूजन हो गया।
कुछ देर बाद, दूसरी हिरणी आई और शिकारी ने फिर निशाना साधा। परंतु, उसने विनती की, "मैं अपने साथी की तलाश में हूँ। कृपया मुझे जाने दें, मैं लौटकर आऊँगी।" चित्रभानु ने उसे भी छोड़ दिया। इस प्रकार, दूसरे प्रहर की पूजा भी सम्पन्न हो गई।
रात के तीसरे पहर में एक हिरणी अपने बच्चों के साथ आई और शिकारी ने फिर धनुष उठाया। किंतु हिरणी ने कहा, "मेरे छोटे बच्चे अभी निर्बल हैं। मुझे जाने दो, मैं लौट आऊँगी।" शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया, और इस तरह तीसरा प्रहर भी पूर्ण हो गया।
अंत में, एक हिरण आया। शिकारी ने सोचा कि अब उसे नहीं छोड़ेगा। लेकिन हिरण ने कहा, "जिस प्रकार तुमने तीनों हिरणियों को छोड़ दिया, उसी तरह मुझे भी छोड़ दो। हम सभी तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत होंगे।" चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार, अनजाने में ही उसने उपवास, रात्रि जागरण और बेलपत्र अर्पण कर महाशिवरात्रि का व्रत पूर्ण कर लिया।
सुबह होते ही शिकारी को पश्चाताप हुआ और उसने सभी हिरणों को जीवनदान दे दिया। उसके इस पुण्य के प्रभाव से यमदूत वापस लौट गए और भगवान शिव के गणों ने उसे शिवलोक ले जाने का निर्णय लिया। इस प्रकार, महाशिवरात्रि के व्रत का फल उसे तत्काल प्राप्त हुआ।
यह कथा यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति और अनजाने में भी किए गए सत्कर्म का फल अवश्य मिलता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने, कथा सुनने और भगवान शिव का पूजन करने से व्यक्ति को शिव कृपा प्राप्त होती है और उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।