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महाशिवरात्रि का महत्व: मन, कर्म और वचन में शिव.

महाशिवरात्रि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है।
 
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भगवान शिव को 'महादेव', 'भोलेनाथ', 'आदियोगी' और 'संहारकर्ता' के रूप में जाना जाता है।

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव की आराधना, व्रत, ध्यान और आत्मशुद्धि के लिए समर्पित होता है। शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति, भक्ति और मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।

भगवान शिव का दिव्य स्वरूप

भगवान शिव को 'महादेव', 'भोलेनाथ', 'आदियोगी' और 'संहारकर्ता' के रूप में जाना जाता है। वे अनादि, अनंत और अखंड ब्रह्म हैं, जो सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का कार्य करते हैं। शिवलिंग की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है, क्योंकि यह उनके निराकार स्वरूप का प्रतीक है। शिवलिंग की पूजा का अर्थ है, जीवन की क्षणभंगुरता को समझना और आत्मबोध की ओर अग्रसर होना।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

महाशिवरात्रि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, जिससे शरीर और मन की पवित्रता बनी रहती है। रात्रि जागरण और 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करके भक्त शिव तत्व से जुड़ने का प्रयास करते हैं। यह व्रत नकारात्मक विचारों को समाप्त करने और सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करने में सहायक होता है।

शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि की रात्रि को शिव तत्व अत्यधिक सक्रिय होता है, जिससे ध्यान और साधना करने वाले भक्तों को विशेष आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। योग साधक इस दिन को विशेष रूप से ध्यान और कुंडलिनी जागरण के लिए उपयुक्त मानते हैं।

सामाजिक और पारिवारिक महत्व

महाशिवरात्रि केवल एक व्यक्तिगत साधना का दिन नहीं, बल्कि यह परिवार और समाज में भी शांति और समृद्धि लाने का पर्व है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं एक अच्छे जीवनसाथी की कामना करती हैं। परिवारजन मिलकर शिव आराधना करते हैं, जिससे आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।

इस पर्व पर मंदिरों में भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण और शिव कथा का आयोजन किया जाता है। शिव भक्त दुग्धाभिषेक, जलाभिषेक, और बेलपत्र अर्पित करके भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

शिव: सृष्टि के आदिदेव

शिव पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव से विवाह के समय उनके पूर्वजों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ब्रह्मा उनके पिता और विष्णु उनके दादाजी हैं। जब उनसे उनके परदादा के बारे में पूछा गया, तो वे अट्टाहस कर बोले, "सबके परदादा तो मैं ही हूं।" इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि शिव ही सृष्टि के मूल स्रोत और आदिदेव हैं। इसी कारण उन्हें 'महादेव' और 'देवों के देव' कहा जाता है।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि केवल एक व्रत या पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मज्ञान, भक्ति और मोक्ष की ओर बढ़ने का माध्यम है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर शिवत्व को प्राप्त किया जा सकता है। भगवान शिव की उपासना से व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।

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