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जानियें निर्जला एकादशी व्रत कब है, जानें व्रत की विधि और शुभ मुहूर्त

निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे महत्‍व पूर्ण    माना जाता है।
 
निर्जला एकादशी का व्रत इस बार 18 जून को रखा जाएगी

 
निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे महत्‍व पूर्ण    माना जाता है। इस दिन दान पुण्‍य करने का महत्‍व भी शास्‍त्रों में बताया गया है। इस व्रत को करने से आपको पुण्‍य और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।


निर्जला एकादशी साल भर की प्रमुख एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है। निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है। इस व्रत में को बिना पानी पिए निर्जला रखा जाता है इसलिए यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना गया है। निर्जला एकादशी का व्रत इस बार 18 जून को रखा जाएगी और 19 जून को व्रत का पारण किया जाएगा। पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि इस व्रत को भीम ने भी रखा था इसलिए इस व्रत को भीमेसेनी एकादशी भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्‍णु शीघ्र प्रसन्‍न होते हैं और आपका हर कष्‍ट दूर करते हैं। आइए जानते हैं निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त, महत्‍व और पूजाविधि।


निर्जला एकादशी का महत्‍व
विष्‍णु पुराण में निर्जला एकादशी का महत्‍व बहुत ही खास माना गया है। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से आपको सभी एकादशी का व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है। बताया जाता है कि 5 पांडवों में से एक भीम ने निर्जला एकादशी पर बिना पानी पिए भगवान विष्‍णु का यह व्रत किया था, इसलिए उन्‍हें मोक्ष और लंबी आयु की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इस व्रत को भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से आपके घर से पैसों की तंगी भी खत्‍म होती है और मां लक्ष्‍मी आपसे प्रसन्‍न होती हैं।


निर्जला एकादशी कब से कब तक
निर्जला एकादशी का आरंभ 17 जून को सुबह 4 बजकर 43 मिनट से हो जाएगा और इसके बाद 18 जून को सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखा जाएगा और इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह 19 जून को दान पुण्‍य करने के बाद होगा।


निर्जला एकादशी की पूजाविधि

निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्‍दी स्‍नान करके दिन का आरंभ सूर्य को जल चढ़ाकर करें। मन ही मन भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी का स्‍मरण करते हुए अपने मंदिर की साफ-सफाई कीजिए और फिर व्रत करने का संकल्‍प करें। लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की मूर्ति स्‍थापित कर लें। मूर्ति को गंगाजल स्‍नान करवाएं और उसके बाद भोग आरती के साथ विधि विधान से पूजा करें। भगवान को पीले फल, पीले फूल, पीले अक्षत और मां लक्ष्‍मी को खीर का भोग लगाएं। विष्‍णु सहस्‍त्रनाम और विष्‍णु चालीसा का पाठ करें। फिर पूरे दिन श्रृद्धा भाव से भगवान का व्रत करें और पूजापाठ में मन लगाएं।

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