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ऐसे पड़ा था Kanyakumari नाम जहां PM Modi कर रहे साधना, इस स्थान पर आज भी भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रहीं 'आदिशक्ति'

कन्याकुमारी में आदिशक्ति की अवतार कुमारी कन्या ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी।
 
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उसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो जाने से पूर्व साधना की।


कन्याकुमारी में आदिशक्ति की अवतार कुमारी कन्या ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी। मान्‍यता है कि देवी आज भी इस स्थान पर विराजित हैं।
लोकसभा चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केरल के कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल में 45 घंटे की ध्यान साधना कर रहे हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी पंजाब के होशियारपुर में चुनाव प्रचार खत्म कर कन्याकुमारी पहुंचे, यहां उन्होंने भगवती अम्मन मंदिर में पूजा की और इसके बाद साधना में जुट गए। पीएम की ध्यान साधना का कमल समापन होगा।


मान्‍यता है कि इसी स्थान पर मां पार्वती के कन्या रूप ने भी पूजा की थी और इसी के बाद इसका नाम कन्याकुमारी पड़ा। आपको इस लेख में इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ने की कारण बताते हैं।
मान्‍यता है कि एक समय में बाणासुर नाम का दैत्य था, जिसने भोलेनाथ की घनघोर तपस्या कर यह वर प्राप्त किया कि उनका वध कुमारी कन्या के हाथों ही होगा। यह वर प्राप्त करने के बाद बाणासुर निर्भय होकर ऋषियों और देवताओं को सताने लगा और चारों ओर उसका आतंक फैल गया।

बाणासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता और ऋषि भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पास पहुंचे। जहां श्री हरि ने सभी को मां आदिशक्ति की आराधना करने के लिए कहा। जिसके बाद ऋषियों और देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर मां आदिशक्ति ने कुमारी कन्या का अवतार लिया।


मान्‍यता है कि कुमारी कन्या का अवतार लेने के बाद भी भगवान शिव के प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने का मन बना लिया और भोलेनाथ की तपस्या में लीन हो गई। कुमारी कन्या की तपस्‍या से प्रसन्न होकर भगवान शिव भी उनसे विवाह करने के लिए मान गए।


देवर्षि नारद ने ऐसे रुकवाया विवाह
 शिव और कुमारी कन्या के विवाह का समाचार सुनकर सभी देवता और ऋषि चिंता में आ गए, क्योंकि बाणासुर का अंत कुमारी कन्या के हाथों ही होना था। ऐसे में देवर्षि नारद ने मुर्गे का रूप धारण कर यह विवाह रुकवा दिया।

दरअसल, यह विवाह ब्रह्म मुहूर्त में होना था, इसके लिए भोलेनाथ कैलाश पर्वत से बारात लेकर चले। लेकिन नारद ने रात में मुर्गे का रूप धारण का बांग दे दी, ऐसे में भगवान शिव को लगा कि सुबह हो चुकी है और वे ब्रह्म मुहूर्त तक नहीं पहुंच पाएंगे, तो वे बारात लेकर वापस कैलाश पर्वत लौट गए।


भगवान परशुराम ने करवाया मंदिर निर्माण
बाणासुर के वध के बाद भगवान परशुराम और नारद ने कलयुग के अंत तक कुमारी कन्या से इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसके बाद भगवान परशुराम ने त्रिवेणी में एक विशाल मंदिर की स्थापना की और कन्या के रूप में देवी की स्थापना की गई। जहां मां आज भी विराजित है और भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रहीं हैं। इसके बाद से ही यह स्थान कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है।

जिस स्‍थान पर देवी ने तपस्या की थी, उसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो जाने से पूर्व साधना की। जहां आज भी देवी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं, जिसे तमिल में 'श्रीपद परई' कहते हैं।
एक मान्यता के अनुसार कुमारी कन्या राजा भरत की आठ पुत्रियां   में से एक थीं, जिन्होंने दक्षिणी क्षेत्र में शासन किया था। मान्यता है कि कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता है।

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