https://www.choptaplus.in/

गुरु नानक जयंती पर निबंध (Essay On Guru Nanak Jayanti in Hindi)

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जयंती ने शांति, प्रेम और भाईचारे को प्रोत्साहित किया।
 
nanak
 गुरु नानक के जन्म स्थान को ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

गुरु नानक जयंती पर निबंध: सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जयंती को सिख धर्म में सबसे विशिष्ट स्थान मिला हुआ है। गुरु नानक जयंती के द्वारा 15वीं शताब्दी के अंत में सिख धर्म की स्थापना की गई। गुरु नानक जयंती का अवसर सिखों के लिए विशेष महत्व रखता है। सभी श्रद्धा तथा उल्लास के साथ गुरु नानक जयंती का पर्व मनाते हैं। सभी अनुयाइयों के लिए उनके प्रथम गुरु का जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा बेहद खास है। इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में नगर कीर्तन निकालते हैं और सुबह-सुबह प्रभातफेरी होती है। सिखों के 10 गुरुओं में की शृंखला में गुरु नानक जी सबसे पहले हैं। वर्ष 2024 में 15 नवंबर को गुरु नानक जयंती का पर्व मनाया जाएगा।


गुरु नानक का जन्म कब और कहां हुआ?

गुरु नानक जयंती का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 में राएभोए के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। गुरु नानक के जन्म स्थान को ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक की जन्म स्थली वर्तमान में भारतीय सीमा के उस पार पाकिस्तान में है। उनकी माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम लाला कल्याण राय (मेहता कालू) था। उनके पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। गुरु नानक बचपन से ही बड़ी तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वे तार्किक बातें करते थे। लोग उनकी बातों से बड़े प्रभावित होते थे। गुरु नानक ने अपने जीवन में खूब यात्राएं कीं और यह संदेश दिया कि ईश्वर एक है।

उन्होंने धार्मिक आडंबर और ऊंच-नीच का विरोध किया। उन्होंने सबको एक साथ बैठाकर लंगर में भोजन प्रसाद की शुरुआत की। गुरु नानक की बहन नानकी थीं। वे उनकी पहली अनुयायी बनीं। 16 वर्ष की आयु में गुरु नानक का विवाह सुलखनी से हुआ। उनके दो पुत्र हुए- श्रीचंद और लक्ष्मीचंद। श्रीचंद साहिब जी ने उदासीन अखाड़े की स्थापना की थी। उन्होंने जीवन का आखिरी समय करतारपुर में बिताया।

उनके बाद गुरु अंगद उत्तराधिकारी बने।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जयंती ने शांति, प्रेम और भाईचारे को प्रोत्साहित किया। स्कूल शिक्षा के दौरान अपने प्रश्नों से वे गुरुजनों को अक्सर चकित कर देते थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर केवल एक ही है और हर कोई अनुष्ठानों या मूर्तियों के बिना भी ईश्वर का अनुभव कर सकता है। उन्होंने लोगों से एक-दूसरे से प्यार के साथ रहने का संदेश दिया और जाति व धार्मिक विभाजन को नकार दिया।

गुरु नानक जयंती जी ने अपने अनुयायियों को नाम जपो, कीरत करो, वंड छको की शिक्षा दी। सबसे पहले, चाहे वे कुछ भी कर रहे हों, प्रभु के नाम का सिमरन करते रहें। इसे "नाम जपना" के नाम से जाना जाता है। दूसरा सिद्धांत है "किरत करो", जिसका अर्थ है ईमानदारी से कड़ी मेहनत करो। गुरु नानक जयंती की तीसरी शिक्षा है "वंड छको", जिसका अर्थ है कि मिल-बांटकर खाओ, भगवान ने जो कुछ भी दिया है उससे जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। गुरुपर्व सिख समुदाय के लिए एक बड़ा दिन है। गुरु नानक जयंती जी की शिक्षाओं और आदर्शों का सम्मान करने के लिए दुनिया भर के सिख इस दिन धर्मार्थ और भाईचारे के कार्यों में भाग लेते हैं।

Rajasthan