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भूकंप : एक प्राकृतिक आपदा पर निबंध .

मानव आदि युग से प्रकृति के साहचर्य में रहता आया है। प्रकृति के प्रांगण में मानव को कभी माँ की गोद का सुख मिलता है तो कभी वहीं प्रकृति उसके जीवन में  संकट बनकर भी आती हैं ।
 
भूँकप
"भूकंप' का अर्थ है भू का   कांप    उठना

 

संकेत : भूमिका, भूकंप का अर्व, भूकंप से ग्रस्त क्षेत्र, भूकंप का तांडवनाच , उपसंहार। 

मानव आदि युग से प्रकृति के साहचर्य में रहता आया है। प्रकृति के प्रांगण में मानव को कभी माँ की गोद का सुख मिलता है तो कभी वहीं प्रकृति उसके जीवन में  संकट बनकर भी आती हैं ।  बंसत की  सुहावनी हवा के स्पर्श से      जहाँ मानव पुलकित हो उठता   है तो वहीं उसे ग्रीष्म ऋतु की जला देने वाली गर्म हवाओं का  सामना भी उसे करना पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्यों को  तेज   अधियों, अतिवृष्टि, बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ता है।.

"भूकंप' का अर्थ है भू का   कांप    उठना अर्थात पृथ्वी का डॉवाडोल होकर अपनी पुरी से हिलाकर और  फटकर अपने ऊपर विध्या मान  जड़ और चेतन प्रत्येक प्राणी और पदार्थ को विनास की चपेट  में ले लेना तथा सर्वनाश का दृश्य  उत्पन्न करना  है. जापान में  तो अकसर भूकंप आते रहते हैं जिनसे विनाश के दृश्य उपस्थित होते हैं। यही कारण है कि वहाँ लकड़ी के घर  बनाए   जाते है । भारत वर्ष में भी भूकंप के कारण अनेक बार विनाश के दृश्य उपस्थित हुए हैं। पूर्वजों की जुबानी सुना है कि  भारत के कोटा नामक    (पश्चिम सीमा प्रांत, अब पाकिस्तान में स्थित एक नगर) स्थान पर विनाशकारी भूकंप आया। यह भूकंप  इतनी त्रीव गति से आया  कि नगर तथा आस-पास के क्षेत्रों के हजारों घर-परिवारों का नाम तक भी बाकी नहीं रहा था।

विगत वर्षों में गढ़वाल, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में विनाशकारी भूकंप आया था जिससे वहाँ   जन - जीवन तहस -नहस  हो गया था। पहले गढ़वाल के क्षेत्र में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। वह एक पहाड़ी क्षेत्र   हैं , जहाँ भूकप के झटकों के   कारण पहाड़ियों खिसक गई थीं, उन पर बने मकान भी नष्ट हो गए थे। हजारों लोगों की जानें चली गई थी ।   वहाँ की विनाशलीला से  विश्व भर के लोगों के दिल दहल उठे थे। उस विनाशलीला को देखकर मन में विचार उठते हैं कि अजीब है। वह मनुष्य को बच्चों की भाँति अपनी गोद में खिलाती हुई एकाएक पूतना का रूप धारण कर लेती हैं ।  वह मनुष्यों घरों   को बच्चों के द्वारा कच्ची मिट्टी के बनाए गए घरौंदों की भाँति तोड़कर बिखरा देती है और खिलोनों की भांति  कुचल डालती है। गढ़वाल के क्षेत्र में भूकंप के कारण वहाँ का जन-जीवन विखर गया था। कुछ समय के लिय तो वहा का   क्षेत्र भारतवर्ष के अन्य क्षेत्रों से कट-सा गया था।

इसी प्रकार महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में आए भूकंप के समाचार मिले। यह भूकंप इतना  विशाल था की धरती  में जगह-जगह दरारें पड़ गई। हजारों लोगों की जानें चली गई। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। सरकार की और से पहुचाई जानें  वाली सहायता के अतिरिक्त अनेक सामाजिक संस्थाओं और विश्व के अनेक देशों ने भी संकट इस घड़ी में  हर प्रकार से सहायता की, किंतु उनके अपनों के जाने के दुःख को कम न कर सके। धीरे-धीरे  समय बीतता गया और   वहाँ के लोगों के घाव भर दिए। वहाँ का जीवन सामान्य हुआ ही था कि 26 जनवरी, 20 विनाशकारी भूकंप ने फिर विनाश का तांडव नृत्य कर डाला। वहाँ रहने वाले लाखों लोग भवनों के मलबे के नीचे दब गए । मकानों 

के मलवे के नीचे दबे हुए लोगों को निकालने का काम कई दिनों तक चलता रहा। कई लोग तो 36 घंटों बाद जीवित निकले  गए थे। वहाँ भूकंप के झटके कई दिनों तक अनुभव किए गए थे। इस प्राकृतिक प्रकोप  की घटना से विश्वभर के लोगों के दिल दहल उठे  थे। कई दिनों तक चारों ओर रुदन की आवाजें सुनाई देती रहीं। अनेक स्वयंसेव अनुरूप समान रूप से सहानुभूति और सहदयता दिखा रहे थे तथा पीड़ितों को राहत पहुंचा इसका अनुमान वहाँ पर हुए विनाश से लगाया जा सकता है। वहाँ के लोगों ने बहुत हिम्मत फिर कमाने में जुट गए। लोग अभी प्रकृति की भयंकर आपदा से उभर ही थे कि 8  अकतूबर ,2005 को पाकिस्तान के क्षेत्र में भयंकर भूकंप आया। संपूर्ण क्षेत्र की धरती काँप उठी थी। पर्वतीय गाँव-के-गाँव तहस-नहस हो गए। साथ ही ठंड सर्दी के प्रकोप ने वहाँ के लोगों को खुले मैदानों में रहना पड़ा। सरकार ने हेलीकाप्टरों व अन्य साधनों से वहाँ के लोगों की सहायता की ।  लाखों लोगों जन्म देने वाली और उनकी सुरक्षा करने वाली प्रकृति माँ ही उनकी जान की दुश्मन बन गई थी । 

         सच्चे मन से हमें ऐसे लोगों की सहायता  करनी चाहिए। जिनके प्रियजन चले गए, हमें उनके प्रति सद्व्यवहार एवं सहानुभूति रखनी चाहिए  ,उनके साथ खड़े होकर उन्हें धैर्य बंधाना चाहिए। यही उनके लिए   यह सबसे बड़ी सहायता हैं । 

       कितनी अजीब है यह प्रकृति और कैसे अनोखे हैं उसके नियम, यह समझ पाना बहुत  ही कठिन हैं । आज भी एक सनसनी-सी उत्पन्न हो जाती है। किन्तु प्रकृति की अजीब-अजीब गतिविधियों के साथ -साथ मानव की हिमत और साहस की भी प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता कि वह प्रत्येक प्राकृतिक आपदा का सदा ही साहस पूर्वक मुकाबला करता आया हैं । 

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