जिस स्थान पर हम रहते हैं, उसके आसपास का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता है।
संकेत भूमिका, पर्यावरण की सुरक्षा, प्रदूषण की समस्या, उपसंहार।
जिस स्थान पर हम रहते हैं, उसके आसपास का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता है। आज के युग में पर्यावरण की शुद्धता पर प्रश्नचिहन लग गया है। क्योंकि मनुष्य ने उन्नति की अंधी दौड़ में भाग लेने के चक्र में पड़कर पर्यावरण की शुद्धता को भुला दिया है। इसलिए आज पर्यावरण की रक्षा करना अति जनिवार्य हो गया है। पर्यावरण की शुद्धता मानव के लिए उतनी ही जरूरी है, जितना साँस लेना। प्राचीनकाल में मानव का जीवन अत्यंत सरल एवं सहज था। वह प्रकृति के साहचर्य में रहता जीवन जीता था, किंतु आज अपनी आवशयकताओं की पूर्ति हेतु उसने अपनी प्राचीन सहचरी प्रकृति को तरह-तरह की हानियाँ पहुँचा दी हैं । इससे हमारा पर्यावरण स्वच्छ नहीं रहा।
अब प्रश्न यह उठतां है कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ, शुद्ध एवं पावन कैसे रखें? इसके लिए हमें फिर प्रकृति की ही शरण में जाना पड़ेगा, अतः अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे उगाने पड़ेंगे क्योंकि वे पर्यावरण की रक्षा करते हैं। इनमें कार्बन -डाई ऑक्सइड जैसी जहरीली एवं पर्यावरण विरोधी गैसों का पोषण करने की अत्यधिक क्षमता है और वदले में ऑक्सीजन देने की शक्ति भी । स्पष्ट है कि हम अपने पर्यावरण को पेड़-पौधों की सहायता से सुरक्षित रख सकते हैं। इसी प्रकार नदियों में बहने का रखकर भी हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
वायु-प्रदूषण भी पर्यावरण का ही कुरूप है। यदि हम शुद्ध वातावरण में साँस लेना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि हमें बायु प्रदूषण को रोकना होगा। इसके लिए फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ व गैसों को कम करना पड़ेगा। इसके साथ -साथ वाहनों से निकलने वाले धुएँ पर भी नियंत्रण रखना होगा।
पर्यावरण की शुद्धता एवं सुरक्षा के लिए हमें अपने घरों का कूड़ा-कर्कट ढककर रखना पड़ेगा या उसे व्यव ढंग से नष्ट करना होगा। आज पोलिथिन का प्रयोग भी हमारे पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है। इस ओर भी हमें ध्यान देना होगा ।
संसार के प्रत्येक नागरिक का यह पावन कर्तव्य बनता है कि हम अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे उगाएँ और पेड़-पौधों की अंधा धुंध कटाई को रोकें। यदि हम चाहते हैं कि धरती स्वर्ग-सी बनी रहे, तो इसके लिए हमें अपने पर्यावरण को शुद्ध एवं सुरक्षित रखना पड़ेगा ।