संकेत: भूमिका, अंग्रेज़ी शिक्षण पद्धति का प्रारंभ, प्राचीन शिक्षा-पद्धति, नैतिक शिक्षा की आवश्यकता, उपसंहार।
मानव जन्म से ही सुख और शांति के लिए प्रयास करता आया है। अपनी उन्नति के लिए वह सृष्टी के आरंभ से ही प्रयत्नशील है. परंतु उसे पूर्ण शांति शिक्षा द्वारा ही प्राप्त हुई है। शिक्षा का असत्र अमोघ है। इससे ही मानव की सामाजिक उन्नति हुई और वह आगे बढ़ने लगा। मानव को अनुभव होने लगा कि शिक्षा के बिना वह पशुतुल्य है। शिक्षा ही मानव को उनके कर्तव्यों से से परिचित कराती है, उसे सही अर्थों में इंसान बनाती है और उसे अपना तथा समाज का विकास करने का अवसर प्रदान करती है ।
मानव की सभी शक्तियों के सर्वतोन्मुखी विकास का दूसरा नाम शिक्षा है। इससे मानवीय गरिमा होती है। गांधी जी ने शिक्षा की परिभाषा देते हुए कहा है, "शिक्षा का अर्थ बच्चे की सभी शारीरिक, मानसिक व नैतिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास है।" दुर्भाग्य से भारत में शिक्षा अंग्रेज़ों की विरासत है। अग्रेज़ भारत को अपना उपनिवेश समझते थे । उन्होंने भारतीयों को क्लर्क और मुंशी बनाने की चाल चली। लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली के संदर्भ में कहा था - मुझे विश्वास है कि इस शिक्षा योजना से भारत में एक ऐसा शिक्षित वर्ग बन जाएगा जो रक्त और रंग से तो भारतीय होगा पर रुचि , विचार, वाणी और मस्तिष्क से अंग्रेज़ी।" इस शिक्षा-प्रणाली ने भारतीयों को केवल 'बाबू' बना दिया. उन्हें भारतीय संस्कृति से तो दूर रखा ही, अंग्रेज़ी मानसिकता को उनके भीतर गहराई तक पहुंचा दिया। यह दुर्भाग्य की बात है हमारे यहाँ इसी प्रणाली का वर्चस्व बना हुआ है।
प्राचीन ऋषियों एवं विचारकों ने यह घोषणा की कि शिक्षा मानव वृत्तियों के विकास तथा आत्मिक शांति के लिए परमावश्यक है। शिक्षा मानव की बुद्धि को परिष्कृत एवं परिमार्जित करती है। शिक्षा से मानव में सत्य और असत्य का विवेक जागृत होता है । भारतीय शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को पूर्ण ज्ञान प्राप्त कराना था, उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर अग्रसर को उत्पन्न करना था। अतः प्राचीन शिक्षा-पद्धति में नैतिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। प्राचीन काल के कोलाहल और कलरव से दूर सघन वनों में स्थित महर्षियों के गुरुकुलों और आश्रमों में दी जाती थी । छात्र पूरे पच्चीस वर्ष तकब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ तथा गुरु के चरणों की सेवा करता हुआ विधिवत विद्याध्ययन करता था । इन पवित्र आश्रमों में विद्यार्थी की सवांगीण उन्नति पर ध्यान दिया जाता था। उसे अपनी बहुमुखी प्रतिभा के विकास का अवसर मिलता था । विज्ञान , चिकित्सा, नीति, युद्ध-कला, वेद तथा शास्त्रों का सम्यक अध्ययन करके विद्यार्थी पूर्ण रूप से विद्वान बनकर अपने घर लौटता था।
अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि नैतिक शिक्षा है क्या? नैतिक शब्द नीति में इक् प्रत्यन जुडने से बना हैं । इसका अर्थ है, नीति संबंधी शिक्षा। नैतिक शिक्षा का अर्थ यह है कि विद्यार्थियों को उदारता, न्यायप्रियकता, सहनशीलता, इंद्रिय निग्रह, विनम्रता, प्रामाणिक आदि सद्गुणों की शिक्षा दी जाए। आज स्वतंत्र भारत में सचरित्रता की बड़ी कमी है । सरकारीऔर गैर-सरकारी सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, अवसरवादिता तथा हिंसा हमारे जीवन में विष घोल रही हैं। इसका प्रमुख कारण यही है कि हमारे स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। विद्यार्थी को वाणिज्य और विज्ञान की शिक्षा तो दी जाती है, तकनीकी शिक्षण की भी व्यवस्था है लेकिन उसे सही अर्थों में मानव बनना नहीं सिखाया जाता ।
आज के भौतिक वादी युग में नैतिक शिक्षा नितांत आवश्यक हैं । इसी शिक्षा के फलस्वरूप ही राष्ट का सही अर्थों में निर्माण हो सकता हैं । विशेषकर ,आज के युवक -युवतियाँ के सर्वा गीण विकास के लिए नैतिक शिक्षा को लागू करना जरूरी हैं । इस शिक्षा द्वारा ही सच्चे नागरिकों का विकास हो सकता हैं.