हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ संतीस लाख लोगों की वृद्धि हो रही है।
भूमिका, प्रतिवर्ष नया ऑस्ट्रेलिया , पंचक्षीय योजनाओं का आरंभ, मृत्युदर में कमी, परिवार-कल्याण की आवश्यकता , परिवार-कल्याण के मार्ग में बाधाएँ, उपसंहार।
अगर हम किसी भी बड़े नगर के चौराहे पर थोड़ी देर के लिए खड़े हो जाएँ तो हमें सहज रूप में ज्ञात हो जाएगा कि भारत की जानसंख्या कितनी शीघ्रता से बढ़ रही है । ऐसा लगता है कि लोगों को सड़क पर चलनें के लिए एक -दूसरे से संघर्ष करना पड़ रहा हैं । नगरों में नहीं ,अपितु गावं में जनसंख्या शीघ्रता से बढ़ रही हैं । जब लोग गाँव में नहीं समा पाते तो वे जमीन तो उतनी ही है परंतु प्रतिवर्ष मुंह बढ़ते जा रहे हैं।
हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ संतीस लाख लोगों की वृद्धि हो रही है। यह संख्या पूरे ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या के बराबर हैं । संसार की कुल आबादी में से 14 प्रतिसत लोग भारतवर्ष में ही रहते हैं । लेकिन दुख की बात यह है कि हमारे देश का क्षेत्रफल संसार के क्षेत्रफल का केवल 2 प्रतिशत है ।
हमारी सरकार ने जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को आरंभ किया जिससे सभी क्षेत्रों में विकास का श्रीगणेश हुआ । इससे कुछ लाभ हुए हैं लेकिन इतने वर्षों की आज़ादी के बाद भी निर्धनता-निवारण कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हम अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या पर प्रभावकारी ढंग से नियत्रण नहीं कर पाए हैं। योजना के लाभ बढ़ती हुई जाबादी में ही खप जाते हैं। इतने वर्षों के प्रयत्नों के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में केवल 10-11% की वृद्धि हुई है। इस प्रकार से विकास का लाभ जनता तक तभी पहुँच सकता है, जब हम जनसंख्या को नियत्रण कर लेंगे।
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद आम लोगों की खुराक में वृद्धि हुई है। चिकित्सा-सुविधाओं के कारण मृत्यु-दर में भी हैजा, फोग जैसी बीमारियों समाप्त हो चुकी हैं। मलेरिया, चेचक, तपेदिक जैसे भयंकर रोगों के उपचार के कारण एक की औसत आयु 50 वर्ष हो गई है। इसके मुकाबले में जन्म-दर के अनुपात में कोई भी कमी नहीं आई है। अतः जन्म-दर और मृत्यु -दर में भारी अंतर आ गया है।
बढ़ती हुई जनसंख्या सभी के लिए चिंता का विषय है। वर्ष 1966 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र परिवार-कल्याण विभाग की स्थापना की गई। प्रत्येक राज्य में भी एक परिवार-कल्याण विभाग काम कर रहा है। आज 600 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष इस कार्यक्रम पर खर्च किए जा रहे हैं परंतु अभी तक केवल 18-19 प्रतिशत प्रजनन क्षमता क परिवार-कल्याण के अंतर्गत लाया जा सका है। इस दिशा में अभी और बहुत कुछ करना बाकी है।
परिवार नियोजन का नाम अब परिवार-कल्याण है। इससे समाज को अनेक लाभ होते हैं। इस कार्यक्रम का जीवन सुखी, शांत और स्वस्थ होता है। इसे अपनाने से लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठेगा। जिस परिवार में अधिक सदस्य होतें हैं, उसकी आर्थिक दशा ठीक नहीं होती। उस घर के बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती।सबकी अच्छी प्रकार से देखभाल नहीं हो पाती।
परिवार को नियोजित करने से व्यक्ति का जीवन-संघर्ष कम हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिलता है। हमारे देश की भावी प्रगति बहुत कुछ जनसंख्या नियंत्रण पर निर्भर करती है। इसीलिए परिवार -कल्याण एक राष्टीय आंदोलन का रूप धारण कर चुका है।
परिवार-कल्याण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अंधविश्वास है। अनेक लोग यह समझते हैं कि ईश्वर की गतिविधि में बाधा डालना अपराध है। आम जनता धर्मभीरु है। हिंदू हो या मुसलमान ,प्रायः सभी धर्म -नेता संतति-निरोध का विरोध करते हैं। ईसाइयों का कैथोलिक धर्म भी परिवार-कल्याण का विरोध करता है ,एक और भी कारण हैं , जिससे परिवार-कल्याण का कार्य सफल नहीं हो रहा। संतति-निरोध के जितने भी उपायों का आविष्कार किया गया है , वे सभी संतोषजनक नहीं हैं। अन्य कुछ लोग संतति-निरोध के लिए ब्रह्मचर्य पर बल देते हैं परंतु यह बहुत ही कठिन है। अतः परिवार - कल्याण के सस्ते ,सुलभ और विश्वसनीय साधनों के प्रयोग पर अधिकाधिक बल दिया जाना चाहिए। इस समय देश काम कर रहे हैं परंतु इतनी विशाल जनसंख्या के सामने ये कुछ भी नहीं हैं।