भारत एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से संसार में इसका स्थान दूसरा है।
संकेत: भूमिका, मुद्रा-स्फीति और महंगाई, भारत में महंगाई के कारण, जमाखोरी की महंगाई को रोकने के उपाय, समुचित वितरण की व्यवस्था, उपसंहार।
बढ़ती हुई महंगाई देश की अनेक समस्याजों में से एक गंभीर समस्या है। ज्यों-ज्यों सरकार महंगाई को रोकने का आश्वासन देती जा रही है, त्यों-त्यों महंगाई निरंतर बढ़ती जा रही है। जनता बार-बार सरकार से आग्रह करती है कि वह उचित मूल्यों पर आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ उपलब्ध कराए लेकिन उचित मूल्यों की बात तो दूर रही, अनेक भी आवश्यक वस्तुएं भी बाजार से लुप्त ही हो जाती हैं।
इस बढ़ती हुई महंगाई का संबंध प्रत्यक्षतः मुद्रा स्फीति के साथ है। सरकार प्रतिवर्ष घाटे का बजट बढ़ाती जाती है ,उधर कीमतें बढ़ती जाती हैं। परिणाम यह होता है कि रुपए की कीमत भी घटती जाती है। महँगाई भता तो एक नियमित प्रक्रिया बन गई है। सरकारी कर्मचारी हों या गैर-सरकारी-सभी महंगाई भत्ते की माँग करते हैं। सरकार नोट छापकर मुद्रा फैलाती हैं। इस प्रकार से यह चक्र निरंतर चलता रहता है।
महंगाई की समस्या का शिकार केवल हमारा देश ही नहीं है अपितु संसार के सभी विकास शील देश इसके शिकारी बने हुए हैं। आर्थिक कठिनाइयों के कारण ये देश भी महंगाई पर। नियंत्रण स्थापित नहीं कर पा रहे हैं
भारत एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से संसार में इसका स्थान दूसरा है। हमारे देश में जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़रही है, उस प्रकार से उपज नहीं। पिछले दो-तीन दशकों में उपज में आशातीत वृद्धि हुई लेकिन उधर प्रतिवर्ष एक नया ऑस्ट्रेलिया भी यहाँ पैदा हो रहा है। अतिवृष्टि या अनावृष्टि आदि के कारण भी अनाज में कमी आ जाती है । इसका परिणाम यह होता है कि हमें अनेक बार वि देशों से अनाज का आयात करना पड़ता है। कृषि प्रधान देश होंने के हमारे देश की समूची अर्थव्यवस्था अच्छी वर्षा पर निर्भर करती है। बिजली उत्पादन भी इसे प्रभावित करता है।
महंगाई का एक बड़ा कारण वस्तुओं की जमाखोरी है। हमारे देश के पूँजीपति इस महंगाई के लिए सर्वा धिक दोषी है । जब-जब मंडियों में अनाज आता है, तब-तब लोग उसे खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते हैं। अन्य वस्तुएं भी संग्रह कर लेते हैं। फलस्वरूप, आवश्यक उपभोग की वस्तुएँ महंगी हो जाती हैं। इस प्रकार, व्यापारी वर्ग का लक्ष्य माल दुगने -तिगुनें दामों पर अपना माल बेचता है। जब-जब देश में सूखा पड़ा है, व्यापारियों ने खूब हाथ रंगे हैं। यद्यपि सरकार ने इसके विरुद्ध कानून बनाए गए हैं तथापि भ्रष्ट अधिकारी वर्ग व्यापारियों के साथ मिलकर उनकी सहा यता करते हैं ।
आवश्यक उपभोग की वस्तुओं के समुचित वितरण के लिए आवश्यक कानून बनाए गए हैं । प्रत्येक राज्य में खाद्यान आपूर्ति विभाग स्थापित किए गए हैं। स्वान-स्थान पर राशन की दुकानें भी खोली गई हैं। यदि खाद्यान की व्यव स्था समुचित हो तो महँगाई पर नियंत्रण किया जा सकता है परंतु यह सब हो नहीं पाता। व्यापारी वर्ग का लक्ष्य अधिकाधिक धन कमाना हैं और वह इसके लिए नए-नए रास्ते निकालता रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार का अजगर यहाँ भी अपना काम करता रहता है। वस्तुओं की वितरण-व्यवस्था पर नियंत्रण रखने वाले अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते । परिणाम यह होता है कि दुकानदार आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का संग्रह कर लेता है जिससे मूल्य बढ़ते रहते हैं।
प्रयत्न किया जाए तो इस महँगाई को रोका भी जा सकता है। सबसे पहली बात तो यह है कि सरकार मुद्रा -स्फीति पर रोक लगाए और प्रतिवर्ष घाटे का बजट न बनाए। कृषि उत्पादन और दुध उत्पादन की और अधिक ध्यान देना
होगा । ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से संबधित उद्योग लगाने होंगे । हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी देश के किसानों को सिंचाई की पूर्ण सुविधा उपलबद्ध नहीं हैं । सरकार को बड़े -बड़े नगरों के विकास की और ध्यान देना चाहिए । सारे देश के लिए एक ही प्रकार की सिंचाई -व्ययस्था का प्रबंध होना चाहिए ।
इसके लिए आज एक उपयोगी राष्टीय नीति की आवश्यकता हैं । बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ -साथ महंगाई पर रोक लगाना अनिवार्य है अन्यथा हमारी स्वंतत्रता के लिए पुनः खतरा उत्तपन हो जाएगा । सच्चाई तो यह है कि जनसंख्या वृद्धि हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण है । जब तक इस पर रोक नहीं ,तब तक हमारे सारे प्रयास व्यर्थ होंगे ।