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सुरीला राजस्थान निबंध

राजस्थानी लोकगीतों में राजस्थानी संस्कृति और परम्पराओं के विविध चित्र देखने को मिलते हैं। ये लोकगीत स्थूल रूप से संस्कारगीत, ऋतुगीत, पर्व तथा उत्सवगीत, धार्मिकगीत तथा विविध गीतों में विभाजित किए जा सकते हैं।
 
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गीतों के विविध रूपराजस्थान तो लोकगीतों से सदैव गूंजता रहने वाला प्रदेश है।

                    

मानव के अन्तस्तल में आने वाले भाव ही लोकगीतों को प्रेरणा देते हैं। लोकमानस ने अपनी अभिव्यक्ति के जो माध्यम चुने हैं, गीत उनमें सबसे मार्मिक और सर्वांगपूर्ण हैं। हृदय से स्वतः फूट पड़ने वाली इस भावधारा ने जीवन के सभी मार्मिक क्षणों को स्वर दिये हैं।

छन्द के बन्धन से मुक्त, भाषा की विविधता से समृद्ध, सहज आत्मप्रकाश से प्रकाशित और संस्कृति के वैभव से मण्डित, यह लोकगीतपरम्परा हर प्रदेश का खुला हुआ हृदय होती है। कविता के विधान से मुक्त लोकगीत हृदय से सहज ही फूट पड़ने वाली भावधारा है जो परिवेश को सदा से गुंजायमान करती रही है।

लोकगीतों का स्वरूपलोकगीतों के प्रधान लक्षण हैंउनकी भावप्रधानता, अनुभूति की तीव्रता और अकृत्रिम भावप्रकाशन। लोकगीत का प्राण हैउसकी मर्मस्पर्शिता। उत्सव, पर्व, ऋतु और कार्य के अनुसार लोकगीतों के अनेक रूप देखने को मिलते हैं।

राजस्थानी लोक

गीतों के विविध रूपराजस्थान तो लोकगीतों से सदैव गूंजता रहने वाला प्रदेश है। राजस्थानी लोकगीतों में राजस्थानी संस्कृति और परम्पराओं के विविध चित्र देखने को मिलते हैं। ये लोकगीत स्थूल रूप से संस्कारगीत, ऋतुगीत, पर्व तथा उत्सवगीत, धार्मिकगीत तथा विविध गीतों में विभाजित किए जा सकते हैं।

(i) संस्कारगीतसंस्कारगीत

जन्मोत्सव, विवाह, जनेऊ आदि अवसरों पर प्रचलित हैं। फेरों के अवसर पर प्रचलित लोकगीत अवसर की मार्मिकता को व्यक्त करता है। दादा और काका धन के लोभी हैं, उन्होंने अपनी प्यारी बेटी को पराई बना दिया है-

दमड़ा रा लोभी, ओ काकासा कीदी रे पराई ढोलारी।

(ii) ऋतुगीतऋतुपरिवर्तन के

साथ लोकगीतों के स्वर और विषयसामग्री बदल जाती है। राजस्थान सदा से इन्द्रदेव की कृपा के लिए तरसता रहने वाला प्रदेश है। सावन की रिमझिम फुहारों का स्वागत राजस्थानी नारियों द्वारा इस गीत में किया जा रहा है- नित बरसों रे मेहा बागड़ में।

मोठ बाजरों बागड़ निपजै, गेहूणा निपजै खादर में।

इसी प्रकार झूलों पर झूलती नारियों के कण्ठ से स्वतः फूट पड़ने वाले गीत की एक झलक देखिए सावण तो लाग्ये पिया भावणो जी होजी ढोला, बरसण लाग्या जी मेह।

(iii) उत्सवत्योहारगीतविभिन्न पर्व,

उत्सवत्योहारों पर गाये जाने वाले लोकगीत भी राजस्थान में प्रचलित हैं। गणगौर और तीज राजस्थान के प्रमुख त्योहार हैं। इन त्योहारों पर भी स्त्रियाँ लोकगीत गाती हैं। गणगौर से सम्बन्धित कुछ गीतपंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-

खोलिये गणगौर माता खोलिये किबारी

द्वारे ऊँभी थारे पूजण बारी।

इसी प्रकार गणगौर पूजने के लिए पति से आज्ञा लेती पत्नी के स्वरों में

खेलण द्यो गणगौर म्हाने खेलन द्यो गणगौर।

ओ जी म्हारी सखियाँ जोवे बाट।

अन्य विविध लोकगीत

इसके अतिरिक्त कृषिकार्य से सम्बन्धित, पीसनेकूटने से सम्बन्धित, धार्मिक कार्यों, जातमेलों से सम्बन्धित भी अनेक गीत राजस्थान के कण्ठ में विराजते हैं। अन्य गीतों में अनेक लोकप्रसिद्ध वीरों, प्रेमियों, दानियों आदि के जीवनप्रसंगों का वर्णन, देवीदेवताओं की स्तुति आदि विषय होते हैं।

सुरीला राजस्थान

जल के अभाव के कारण राजस्थान भले ही सूखा और रेतीला प्रदेश हो परन्तु उसका हृदय सरस है तथा कंठ सुरीला है। विभिन्न अवसरों पर उसके कंठ से सुरीले गीत फूट पड़ते हैं। इस रसीले सुरों से पूरा राजस्थान गुंजायमान रहता है। रंगबिरंगे परिधानों के साथ सुरों से सरस गीत राजस्थान की पहचान हैं।

उपसंहार

राजस्थान लोकगीतों से धनी प्रदेश है। रंगबिरंगे परिधानों के साथ रंगबिरंगे लोकगीतों से भी जीवन्त है राजस्थानी धरती। बड़ा अच्छा हो, यदि राजस्थान में नयेनये लोककवि जन्म लें और इस गीत परम्परा को युग के अनुसार नये स्वर और नयी भावविभूति से समृद्ध बनाते रहें।

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