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प्राकृतिक प्रकोप : सुनामी लहरें पर हिंदी निबंध ।

समुद्र में उठीं भयंकर लहरें भी विनाशकारी प्राकृतिक प्रकोप था। महाविनाशकारी 'सुनामी' की उत्पति भी वास्तव में भूकंप आने से होती है।
 
सुनामी
मौसम विभाग समुद्री भूकंप की सूचना होते हुए भी यह कल्पना तक नहीं कर सका कि सुनमी तरंगों से भारतीय तटीय क्षेत्र की  दशा कैसी हो सकती है।

प्रकृति का मनोरम रूप जहाँ मनुष्य के विकास के लिए सदा सहायक है, वहाँ  भयंकर रूप उसके विनाश का कारण भी बनता रहा  है। मानव जहाँ आदिकाल से प्रकृति की गोद में खेलकूद कर बड़ा होता है, वही गोद कभी-कभी उसको निगल भी जाती हैं ।  अतिवृष्टि (अत्यधिक वर्षा), बाढ़, भूकंप, समुद्री तूफान, आँधी आदि प्राकृतिक प्रकोप के विभिन रूप है।

समुद्र में उठीं भयंकर लहरें भी विनाशकारी प्राकृतिक प्रकोप था। महाविनाशकारी 'सुनामी' की उत्पति भी वास्तव में भूकंप आने से होती है। समुद्र के भीतर भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या भू-स्खलन के कारण यदि बड़े स्तर पर पृथ्वी खिसकती हैं तो इससे सतह पर 50 से 100 फुट ऊँची लहरें, 800 कि०मी० प्रति घंटे की तीव्र गति से तटों की और दौड़ने लग जाती हैं। पूर्णिमा की रात्रि को तो ये लहरें और भी भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। 26 दिसंबर को  भूँकप के कारण उठी इन लहरों ने भयंकर रूप धारण करके लाखों लोगों की जानें ले ली और अरवों की संपत्ति को नष्ट कर डाला।  

वस्तुतः 'सुनामी' शब्द जापानी भाषा का है। जहाँ अत्यधिक भूकंप आने के कारण वहाँ के लोगों को बार –बार      प्रकोप का सामना करना पड़ता है। हिंद महासागर के तल में आए भूकंप के कारण ही 26 दिसंबर को समुन्द्र में भंयकर सुनामी  उत्पन्न हुई थीं। इस सुनामी तूफान ने चार अरब वर्ष पुरानी पृथ्वी में ऐसी हलचल मचा दी मलेशिया, अंडमान, निकोबार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल आदि सारे तटीय क्षेत्रों पर तबाही का नगन तांडव हुआ। मछलियाँ   पकड़कर आजीविका कमाने वाले कई हजार मछुआरे इस भयंकर सुनामी लहरों की चपेट में आकर जीवन से हाथ धो बैठे।

 द्वीप समूहों में स्थित वायु-सेना के अड्डे को भी भयंकर क्षति पहुंची तथा सौ से अधिक वायु-सेना जवान ,अधिकारी वर्ग और उनके परिजन काल के ग्रास बन गए। पोर्ट ब्लेयर हवाई पट्टी को क्षति पहुँची। उसकी पाँच हजार फी पट्टी सुरक्षित होने से राहत  पहुंचाने वाले 14 विमान उतारे गए। इस संकट के समय में भारतीय विमानों को श्रीलंका और मालदीव के लोगों की सहायता लिए भेजा गया। कई मीटर ऊँची सुनामी लहरों ने निकोबार में ए०टी०सी० टावर को भी ध्वस्त के डाला था ,किन्तु जल्द ही ए० टी० सी० टावर की स्थापना कर ली गई थी।

यदि पुराने इतिहास पर दृष्टि डालकर देखा जाए तो पता चलेगा कि यह समुद्री तूफान व बाढ़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन  इराक में आज से लगभग छह हजार वर्ष पूर्व आए समुद्री तूफान और बाढ़ से हुई तबाही के प्रमाण मिले हैं। बाइबल और कुरान  शरीफ में भी विनाशकारी तूफानों का वर्णन मिलता है। 'श्रीमद्भागवपुराण' में भी प्रलय का उलेख मिलता हैं । इसमें बताया गया है कि जब प्रलय से सृष्टि का विनाश हो रहा था तब मनु भगवान् ने एक नौका पर सवार होकर सभी प्राणियों के एक –एक जोड़े को बचा लिया था ।

 भले ही यह वर्णन कथा के रूप में कहा गया है, किंतु इससे यह सिद्ध होता है कि समुन्द्र में तूफान आदिकाल से आते रहें है ,जिनका मनुष्य सामना करता आया हैं।

इतना ही नहीं, भूकंप और समुद्री तुफानों ने धरती पर अनेक परिवर्तन  कर दिए हैं। इन्हीं ने नए द्वीपों व टापुओं की रचना भी की है। भारत में प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी । इसके आज भी प्रमाण मिलते हैं। इसी प्रकार वैज्ञानिक विश्व के अन्य स्थानों की परिवर्तित स्थिति का कारण समुद्री तूफ़ानों को मानतें हैं ।

  यू०  एस० जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञ केन हडनर के अनुसार सुमात्रा द्वीप से 250 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में समुन्द्र –तल के नीचेआए, इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9 के लगभग थी। यह भूकंप इतना शक्तिशाली था कि कई छोटे –छोटे द्वीपों को  20-20 मीटर तक अपने स्थान से हिलाकर रख दिया। विद्वानों का यह भी मत है कि यदि भारत या एशिया के क्षेत्र में कहीं  भी महासागर की तलहटी में होने वाली भूगर्भीय हलचलों के आकलन की चेतावनी प्रणाली विकसीत होती तो इस त्रासदी से होंने बाली जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता था।

यह बात भी सही है कि प्राकृतिक प्रकोपों को रोक पाना मनुष्य व उसके साधनों के वश में नहीं है, फिर भी सूचना    देकर बचने की कुछ व्यवस्था की जा सकती है। 26 दिसंबर, 2004 को सुनामी समुद्री भूकंप भारतीयों के लिए एक नया अनुभव हैं। भारतीय मौसम विभाग के सामने अन्य महासागरों में उठी सुनामी लहरों से हुई जान-माल की हानि के उदारण हैं।   मौसम विभाग समुद्री भूकंप की सूचना होते हुए भी यह कल्पना तक नहीं कर सका कि सुनमी तरंगों से भारतीय तटीय क्षेत्र की  दशा कैसी हो सकती है।

भारत में सुनामी तूफान से हुए विनाश को देखकर विश्वभर के लोगों के हृदय दहल उठे थे। अतः उस समय हम सबका  कर्तव्य है कि हम तन, मन और धन से ध्वस्त लोगों के परिवार के साथ खड़े होकर उनकी सहायता करें । इसमें संदेह नहीं है की विश्व के अनेक देशों व संस्थाओं ने सुनामी से पीड़ित लोगों की धन से सहायता की है, किंतु इससे उनके अपनों के जाने का गम तो दूर नहीं किया जा सकता। हमें उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और उनका धैर्य बंधाना  चाहिए।  

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