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Sociology: प्राचीन और अरवी-फारसी लेखों में समाजवृत्त का उल्लेख किस प्रकार किया गया है?

हिंदुओं की जाति केंद्रित अवस्था पर उसकी टिप्पणियों में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण खोजा जा सकता है।
 
भारतीय समाज के ज्यादातर प्राची न लेख चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आए ग्रीक राजदूत मेगास्थनीज का अनुसरण करते है. 

 
 

 

 भारत में यात्रा हेतु आए कई विदेशी दार्शनिकों व समाजशास्त्रियों ने  भारतीय  समाज व संस्कृति पर अपने अनुभवों को अपने लेखों में संग्रहित किया। इन यात्रियों में ग्रीक रोमन, यूनानी-ग्रीक, राहूदी और चीनी यात्री शामिल थे और सन् 1000 ई. के बाद से अरब, तुर्क, अफगान और फारसी भी इसमें शामिल हुए।

 

भारतीय समाज के ज्यादातर प्राची न लेख चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आए ग्रीक राजदूत मेगास्थनीज का अनुसरण करते है उसे भारत के हिस्सों को नजदीक से देखने का मौका मिला। उसने भारतीय समाज को सात  वर्गों में विभाजित होते हुए देखा था.

हालाँकि उसने वर्ण सिद्धांत का उल्लेख नहीं किया है तीन चीनी यात्रियों, फाहियान, युआन च्वांग और आई-त्सिंग ने अपने समयं में भारत सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों का ज्यादा विस्तार से वर्णन किया है। यदि काल क्रमानुसार  उनके लेखों का विश्लेषण किया जाए तो भारतीय समाज में परिवर्तन पर मूल्यवान परिदृर प्राप्त हो सकते हैं।


अरब यात्रियों में अल-बीरूनी भारतीय विचार प्रणाली और उनके संस्कृत षतोरतों से ज्यादा परिचित प्रतीत होता है। उसने लोगों के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाजों के वर्णन में जाति की वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया है।

हिंदुओं की जाति केंद्रित अवस्था पर उसकी टिप्पणियों में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण खोजा जा सकता है। मोरक्को के अरब यात्र इब्नबतूता ने सन् 1333 और सन् 1347 ई. के बीच भारतीय लोगों के दैनिक जीवन उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक अवस्था और भूमि के भूगोल के बारे में अमूल्य जानकारियों की हैं।

दक्षिण भारत के बारे में मार्को पोलो के इतिहास से उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं, जिसने सन् 1293 ई. के लगभग देश के उस हिस्से का भ्रमण किया और फरिश्त के लेख से भी जिसने सन् 1609 ई. में अपना भ्रमण पूरा किया।

इन वृत्तांतों और ऐतिहासिक अभिलेखों को समाजवृत्त का कार्य माना जा सकता है क्योंकि इनके लेखकों ने जो देखा औरजो सुना उसी का वर्णन किया है, दूसरों से सुनकर नहीं। यूरोपीय यात्रियों द्वारा प्रदत्त लेखों पर भी यही मूल्याकन लागू होता है।

17 वीं शताब्दी में भारतीय मुस्लिम विद्वानों ने संस्कृत साहित्य से बहुत-सा अनुवाद किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति और समाज को समझने के लिए मार्ग प्रशस्त किया। आइने-अकबरी में अबुल फजल ने, जो 16वीं शताब्दी के अंत के गजेटियर (राजपत्र लेखक) है, अकबर के राजदरबार, राजस्व और प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन किया है, यह एक अनुभववादी समतुल्य उत्कृष्ट कार्य है।

उसने अकबर के साम्राज्य के विस्तृत आयाम का वर्णन किया, यहाँ तक कि उसने अहोम और दुर्लभ गोड पर भी पर्याप्त ध्यान दिया।

उनके कार्य से पता चलता है कि मुगलों ने अच्छी तरह से जान लिया था कि हिंदू समाज का -संचालन-स्तर केवल चार वर्णों की सीधी-सादी व्यवस्था नहीं थी, वरन् रिश्तेदारी पर आधारित कई श्रेणियाँ इसमें विद्यमान थीं।

अबुल फजल जैसे लेखक आधुनिक अर्थों में समाजशास्त्री या मानवविज्ञानी नहीं थे, बल्कि वे सामाजिक जीवन के सूक्ष्म प्रेक्षक और 'अनुभूतिक्षम सामाजिक विश्लेषक' भी थे जिन्होंने समाजशास्त्र बनाने के लिए मूल्यवान सामग्री प्रदान की।

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