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भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया में सफलता दिलाएगी ऐसी पर्सनैलिटी

हमारे हर विचार, शब्द और काम के जरिये इन पांच तत्वों के गुणों की झलक मिलनी चाहिए।
 
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आकाश की तरह हमें सभी का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन बदले में कुछ भी मांगे बिना।


हमारे हर विचार, शब्द और काम के जरिये पांच तत्वों के गुणों की झलक मिलनी चाहिए। यह इसलिए जरूरी है ताकि हम भी निरंतर बहते रहें, बांटते रहें। पांच तत्वों में से एक आकाश का मतलब है आसमान, ब्रह्मांड उस एक में और उसके माध्यम से मौजूद है, जो कि स्वयं अनंत है।


अल्फा गुणों का मतलब होता है जोश, जुनून, आक्रामकता, रचनात्मक सोच और किसी काम के लिए हमेशा तैयार रहना। अगर किसी की ऐसी टाइप A personality हो तो, उसका करियर शानदार हो सकता है। लेकिन जो दुनिया इस भौतिक जीवन से अलग है, वहां सफलता कैसे मिलेगी? असल में वहां कामयाबी पाने के लिए हमें तीन A या अ की जरूरत होगी- आकाश, अनंत और आनंद। वह दुनिया है ईश यानी सर्वोच्च सत्ता, जिसके साथ मिलन ही हमारे अस्तित्व का मूल उद्देश्य है।

योग दर्शन बताता है कि हमारा यह ब्रह्मांड कुल पांच तत्वों से बना हुआ है – क्षिति जल पावक गगन समीरा यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, अंतरिक्ष और वायु। मानव शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से तैयार हुआ है। इसलिए हमारे हर विचार, शब्द और काम के जरिये इन पांच तत्वों के गुणों की झलक मिलनी चाहिए। यह इसलिए जरूरी है ताकि हम भी निरंतर बहते रहें, बांटते रहें, शुद्ध होते रहें, चेतना के साथ हमारा तालमेल हो और फिर सहजता से ईश में विलीन हो जाएं। गायत्री मंत्र की एक पंक्ति है - भूर्भुवः स्व:। यह सर्वोच्च का आह्वान करती है। आह्वान करती है पृथ्वी से लेकर आकाश तक, भौतिक जगत से लेकर आंतरिक और दिव्य जगत तक का।
पांच तत्वों में से एक आकाश का मतलब है आसमान, अंतरिक्ष। एक अलौकिक तत्व, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है। यह आकाश प्रथम माता और पिता है। प्रकृति से उत्पन्न होने वाला पहला तत्व है आकाश और इससे ही वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी उत्पन्न हुए। आकाश संकेत देता है अव्यक्त का, हमारी छुपी हुई क्षमता का। ऋषि अष्टावक्र राजा जनक से कहते हैं, 'मैं आकाश जैसा अनंत हूं। मैं सभी प्राणियों में हूं और सभी प्राणी मुझमें हैं।' एक बर्तन के भीतर स्थान उसी तरह अनंत है, जैसे कि बर्तन के बाहर। ब्रह्मांड उस एक में और उसके माध्यम से मौजूद है, जो कि स्वयं अनंत है।


यह सभी जगह फैला हुआ है। इसमें ही जीवन की क्रियाएं चलती हैं। फिर भी यह सबसे अलग है। आप इसे छू या महसूस नहीं कर सकते। इसका स्वाद नहीं ले सकते। यह सर्वोच्च ज्ञान है। इसे एक बार हासिल करने और आत्मसात करने के बाद हमें अहसास होता है कि कुछ भी त्यागने, स्वीकार करने या नष्ट करने की जरूरत नहीं। यह भी पता चलता है कि आकाश की तरह हमें सभी का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन बदले में कुछ भी मांगे बिना।
संस्कृत में अनंत का अर्थ होता है असीम, अविनाशी, अपार, सीमा से परे। यह सूर्य, विष्णु, शिव और कृष्ण को दर्शाता है। जब हम खुले दिल वाले होते हैं और खुद से, अपने समुदाय और देश से परे सोचते हैं। वसुधैव कुटुंबकम की सच्ची भावना से सभी को गले लगाते हैं, तो अनंत के करीब जाते हैं। व्यक्तिगत सुख और दुख की सीमा से परे तब हम आनंद की स्थिति में पहुंचते हैं। यहां आनंद का मतलब शाश्वत आनंद है, जो उच्च अहम् के साथ जुड़ाव से मिलता है।

जैसे दिन के बाद रात आती है, वैसे ही सुख के बाद दुख। लेकिन, हम जिस परम आनंद की बात कर रहे हैं, उसके विपरीत कुछ भी नहीं है। जहां मन सुख से दुख की ओर नहीं जाता, जहां केवल एक ही अनुभव है जो बदलता नहीं। वही आनंद है। हम सभी में उस परम आनंद को हासिल करने की क्षमता है क्योंकि हमारे पास है आनंद का शरीर, आनंदमय कोष, जिसे मेडिटेशन और अन्य आध्यात्मिक तरीकों के जरिये महसूस किया जाता है।
ऑफिस के भीतर और बाहर आनंद की अंतहीन स्थिति में रहने के लिए आदर्श व्यक्तित्व है Triple A। आकाश के अनंत गुणों को प्रतिबिंबित करना। सभी को अपना मानकर गले लगाना। किसी की निंदा न करना बल्कि सभी प्राणियों को उनके अपने दृष्टिकोण से सही मानना। जब हर कोई अपने दृष्टिकोण से सही होता है, तो इससे कम से कम मतभेद की आशंका हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। इस वजह से सारे तर्क भी खत्म हो जाते हैं। असल में, किसी के सामने व्यक्त किया गया मतभेद भी हिंसा का एक सूक्ष्म कार्य है। कबीरदास कहते हैं, 'कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।' मन की इस स्थिति का परिणाम केवल आनंद हो सकता है। ईश, सर्वोच्च सत्ता का एक गुण।

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