नागा साधुओं के 17 श्रृंगार

नागा साधु भारतीय सनातन परंपरा के सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली साधुओं में गिने जाते हैं। वे कठोर तपस्या और साधना के लिए प्रसिद्ध होते हैं। कुंभ मेले में नागा साधु विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र होते हैं, क्योंकि वे 17 विशेष श्रृंगार कर माँ गंगा की गोद में स्नान करते हैं। यह श्रृंगार केवल बाहरी आभूषण नहीं होते, बल्कि इनका गहरा आध्यात्मिक महत्व होता है।
माना जाता है कि नागा साधु का आशीर्वाद स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद होता है, क्योंकि वे शिव की भांति ही जीवन जीते हैं और संसारिक बंधनों से मुक्त रहते हैं।
नागा साधुओं का 17 श्रृंगार
जिस प्रकार एक नवविवाहित स्त्री सौभाग्य और समृद्धि के लिए सोलह श्रृंगार करती है, उसी प्रकार नागा साधु अपने शरीर को शिव की शक्ति से जोड़ते हुए 17 श्रृंगार करते हैं। ये श्रृंगार निम्नलिखित हैं:
भभूत (राख) – यह मृत्यु का प्रतीक है, जो संसार की नश्वरता को दर्शाता है।
चंदन – यह शांति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
रुद्राक्ष की माला – भगवान शिव से जुड़ी यह माला आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करती है।
तिलक – नागा साधु अपने मस्तक पर विभूति या चंदन का तिलक लगाते हैं।
काजल – यह तीसरे नेत्र के जागरण का प्रतीक माना जाता है।
धातु के कड़े – यह रक्षा कवच के रूप में पहने जाते हैं।
कमंडल – जल का यह पात्र साधना और पवित्रता का प्रतीक होता है।
चिमटा – यह वैराग्य और योग शक्ति का प्रतीक है।
डमरू – भगवान शिव से जुड़ा यह वाद्य यंत्र सृष्टि और विनाश दोनों का प्रतीक है।
अस्त्र-शस्त्र – त्रिशूल, तलवार, भाला आदि आत्मरक्षा और शक्ति के प्रतीक होते हैं।
जटाएं – यह त्याग और कठोर तपस्या का प्रतीक है।
कंठ में नाग रूपी आभूषण – यह शिव के नाग स्वरूप का प्रतीक है।
गुंजा माला – यह भगवान दत्तात्रेय से जुड़ी होती है और साधना में सहायक होती है।
कपोलों पर विशेष चिह्न – विभिन्न संप्रदायों के नागा साधु अपने गुरुओं के दिए गए चिह्न अंकित करते हैं।
भस्म का लेप – यह मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति का प्रतीक होता है।
हाथों में कंकण और रुद्राक्ष के कड़े – यह आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं।
शरीर पर भस्म और चंदन के विशेष चिह्न – यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए बनाए जाते हैं।
श्रृंगार का आध्यात्मिक महत्व
नागा साधु अपने शरीर को शव के रूप में देखते हैं और शिव की तरह जीते हैं। वे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने का प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। इसलिए वे स्वयं का पिंडदान कर संसार से विरक्त हो जाते हैं।
शाही स्नान का महत्व
कुंभ मेले में नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके स्नान से गंगाजल में शिव की ऊर्जा जागृत हो जाती है, जिससे यह अमृतमय बन जाता है। इसीलिए आम श्रद्धालु नागा साधुओं के स्नान के बाद पवित्र डुबकी लगाते हैं।
नागा साधुओं का 17 श्रृंगार न केवल एक परंपरा है, बल्कि यह उनकी आध्यात्मिक शक्ति और शिव से गहरे संबंध का प्रतीक भी है।