सिरसा जिले के गाँव कुम्हारिया का इतिहास, सामाजिक तानाबाना ओर मुख्य समस्याएं
आजादी के 78 साल बाद भी कुम्हारिया के ग्रामीणों की एक ही मांग है कि
गांव की फिरनी को पक्का किया जाए वह पूरी नही हो पा रही
राजस्थान की सीमा से सटे हरियाणा के पैंतालिसा क्षेत्र का गांव कुम्हारिया अपने आप में करीब 200 वर्ष का इतिहास समेटे हुए है। करीब 3800 की आबादी वाले इस गांव का रकबा 3602 एकड़ है।
गांव में स्थित सती दादी मन्दिर की महिमा दूर दूर तक फैली हुई है। गांव के एक स्वतंत्रता सेनानी धनराज डारा ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्तमान में गांव के 20 से अधिक नौजवान फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा में लगे हुए हैं।
राज्य के अन्तिम छोर पर बसा होने के कारण कई प्रकार की समस्याऐं वर्षो से हल नही हो पा रही है। नहरी पानी कम मात्रा में पहुंचने के कारण ज्यादातर जमीन बिना बिजाई रह जाती है। बिजली के लटकते तार, बस सेवा, स्वास्थ्य सेवाएं, बिजली आपूर्ति, खेल सुविधा जैसी सेवाएं बेहद लचर हैं। बीमार होने पर 35 किलोमीटर दूर सिरसा जाना पड़ता है।
ग्रामीणों की 78 वर्षो से एक ही मांग है कि गांव की फिरनी को पक्का किया जाए वह पूरी नही हो पा रही है। गांव में श्री महारानी सतीदादी गौशाला में 150 गोवंश की सेवा की जाती है।
तहसील नाथूसरी चोपटा से 14 किलामीटर दूर सिरसा-भादरा मार्ग के निकट बसे गांव कुम्हारिया में सबसे पहले सती दादी का मन्दिर दिखाई देता हैं। धार्मिक आस्था के प्रतीक इस मन्दिर की महिमा दूर दूर तक फैली हुई है। यहंा पर हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मेला लगता है। जिसमें हरियाणा व निकटवर्ती राजस्थान सहित देश के कोने कोने से हजारो श्रद्धालु सती दादी की प्रतिमा के समक्ष धोक लगाते हैं व मन्नत मांगकर प्रसाद चढातें हैं।
मान्यता है कि मंदिर में सच्चे मन से धोक लगाने से चर्म रोग ठीक होते हैं। तथा मनोकामना अवश्य पूरी होती है। प्रसाद के रूप में दुध,घी,पतासे, नमक, झाड़ू, चुनरी, चूडिय़ा इत्यादि सामग्री चढाई जाती है। इसके अलावा गांव में ठाकुर जी मन्दिर, जाहरवीर गोगाजी की गोगामेड़ी, रामदेव जी का रामदेवरा, कु़ंड पर स्थित हनुमान मन्दिर, नेत नाहर सिंह जी, माता रानी के मन्दिर पर गांववासी प्रतिदिन शीश नवाते है। गांव में माहौल शान्तिपूर्वक व सौहार्दपूर्ण है।
राजस्थानी व बागड़ी बोली बोलते हैं ग्रामीण
ग्रामीण कृष्ण कुमार व सीताराम ने बताया कि राजस्थान की सीमा से सटा होने के कारण राजस्थानी व बागड़ी भाषा बोली जाती है। बुजर्गों ने बताया कि करीब 200 वर्ष पूर्व सन् 1823 ईश्वी (संवत्1880) में हिसार के जाखोद गांव से देबन बैनीवाल ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर बसाया था। यहां पर चार पटीया बनाई गई जिसमें देबन पटी, बिश्रा पटी, रतीराम पटी, दाना व माड़ू पटी। बाद में यहां पर अन्य गौत्र न्यौल, डारा, बानिया, बाना, सुंडा, िसहाग आदि के लोग आकर बस गए। श्योराण ग्रोत्र के लोगों को भी बुला लिया। गांव की 70 प्रतिशत आबादी जाट है।
गांव के नाम के बारे में किवंदंती
गांव के नाम के बारे में किवंदंती है कि यहां पर सबसे पहले कोई (कुम्भ) घड़ा मिला था जिसे कुंभ रेहा (मिला)कहा गया बाद में धीरे धीरे गांव का नाम कुम्हारिया पड़ गया। गांव में प्राचीन जोहड़ है व तीन कुए बनाए हुए हैं जिनका पानी लेने के लिए आस पास के गांवों के लोग आते थे। बाद में गांव में जलघर बनने के बाद कुए व जोहड़ इतिहास बन गए।
गांव में दो सरकारी स्कूल है जिनमें एक प्राथमिक विद्यालय व दूसरा राजकीय उच्च विद्यालय है। 10वीं तक तो पढाई का स्तर ठीक रहता है लेकिन दशवी के बाद पढाई के लिए दूसरे गावों में जाना पड़ता है जिससे विशेषकर लड़कियों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कालेज स्तर की पढाई के लिए तो गांव से 35 किलोमीटर दूर सिरसा, राजस्थान के भादरा या नोहर जाना पड़ता है।
बस सुविधा का अभाव होने के कारण अधिकतर मा-बाप अपनी लड़कियों की पढाई छुड़वा लेते है। जिसके चलते काफी कम लोग सरकारी सेवा में है।
ग्रामीण स्कूल का दर्जा बढानें के लिए प्रयासरत हैं। इनके अलावा चार आंगनबाड़ी केंद्र , एक स्वास्थय केंद्र, पशु हस्पताल बना हुआ है। गांव में खेल प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन खेल सुविधा न होने के कारण खिलाड़ी आगे बढने से वचिंत रह जाते है।
गांव में ढाणीयों में पीने के पानी की व्यवस्था सहित कई प्रकार के विकास कार्य करवाए गए हैं। फिर भी गांव की कई गलियां अभी भी कच्ची पड़ी हैं इनको पक्का करवाने के लिए कई बार प्रस्ताव बनाकर पंचायत विभाग को भेजे गए हैं। ग्रांट आते ही इन पर काम शुरू हो जाएगा। -- रूपेश बैनीवाल सरपंच गांव कुम्हारिया।