माता-पिता शुरू से ही बच्चों को अध्यात्म से जोड़ें: स्वामी नित्यानंद गिरी महाराज।
सत्संग ही एक एसा माध्यम है, जिससे लोग मानव जीवन को बेहतर तरीके से जान सकते है ।

सिरसा। फूलकां गौशाला में मत्स्य महापुराण एवं दुर्लभ सत्संग का आयोजन किया जा रहा है, जिसके तहत 18 पुराणों का संकल्प है, जिसका उद्देश्य अध्यात्म है। अध्यात्म से ही हम तनाव से मुक्ति पा सकते है। माता-पिता शुरू से ही बच्चों को अध्यात्म से जोड़ें, ताकि बच्चों में धार्मिक संस्कार पैदा हों और वे समाजसेवा, देश सेवा के लिए समर्पित भाव से काम करें।
उक्त बातें गांव फूलकां स्थित स्वामी लक्ष्येश्वर गौसेवा सदन में चल रही मत्स्य महापुराण एवं दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी नित्यानंद गिरी महाराज ने अपने वक्तव्य में कही। स्वामी जी ने कहा कि कुछ लोग गौमाता को बेसहारा छोड़ देते है। गौमाता की सेवा के लिए ही संतों का आवागमन होता है। संतों का उद्देश्य बेसहारा गौवंश को किसी न किसी प्रकार आश्रय देना होता है।
उन्होंने कहा कि गौसेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है। युवा पीढ़ी के नशे की ओर अग्रसर होने संबंधी समस्या पर बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि युवा नशे की लत में पडक़र अपनी जवानी खो रहे है । युवा सांसारिक सुख के लिए नशे से लेकर सभी गलत कार्य कर रहे है , लेकिन उन्हें वास्तविक सुख का ज्ञान नहीं है। वास्तविक सुख सत्संग से ही मिल सकता है। स्वामी जी ने कहा कि वे किसी के घर जाते है तो संकल्प करवाते है कि एक व्यसन को दक्षिणा में दे दो और कुछ नहीं चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि अपने लिए जीना पशुता है, जबकि जो इंसान दूसरों के लिए जीता है, वही मानवता की सच्ची सेवा है। मानव जीवन के महत्व को लोग नहीं जानते। सत्संग ही एक एसा माध्यम है, जिससे लोग मानव जीवन को बेहतर तरीके से जान सकते है ।
धर्म संबंधी सवाल पर स्वामी जी ने कहा कि धर्म मानवता का कल्याण करना सिखाता है, धर्म सिखाता है कि हम मानवता के लिए क्या कर सकते है । गौमाता के महत्व को लेकर बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि कैसर से लेकर गंभीर से गंभीर बिमारियां भी गौमाता के मूत्र से ठीक हो जाती है। महाकुंभ को लेकर स्वामी जी ने कहा कि स्नान का, दान का व सत्संग का भी अपना एक महत्व है।
तीनों से मानव जीवन का उद्धार होता है। जहां भी जाएं भगवान का स्मरण करें, तप करें, नियमों का पालन करें और जहां भी जाएं एक-एक व्यसन छोडक़र आएं।