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सिरसा निकाय चुनाव: कांग्रेस सिंबल पर लड़ेगी चुनाव, भाजपा को चुनौती

सिरसा निकाय चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
 
चुनाव
भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस में भी माइक्रो मैनेजमेंट की मांग उठ रही है।

हरियाणा के सिरसा जिले में निकाय चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। भाजपा के बाद अब कांग्रेस ने भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति बना ली है।

रविवार को कांग्रेस भवन में हुई बैठक में पार्टी नेताओं ने चुनावी तैयारियों पर चर्चा की और निर्णय लिया कि कांग्रेस इस बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेगी। जल्द ही प्रत्याशियों की सूची जारी की जाएगी।

कांग्रेस की चुनावी रणनीति

कांग्रेस ने इस बार निकाय चुनावों में पूरी सक्रियता दिखाते हुए चुनाव अपने पार्टी सिंबल पर लड़ने का फैसला किया है। इस निर्णय के पीछे कांग्रेस की यह सोच हो सकती है कि पार्टी के मजबूत जनाधार और वोट बैंक को सीधा लाभ मिले।

सिंबल पर चुनाव लड़ने से पार्टी को संगठित प्रचार का फायदा मिलेगा और मतदाताओं को स्पष्ट संदेश जाएगा कि कांग्रेस मजबूत विपक्ष के रूप में मौजूद है।

टोहाना के विधायक परमवीर सिंह ने चुनावी रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी संभाल ली है। इसके अलावा सांसद कुमारी सैलजा भी सिरसा में सक्रिय हो गई हैं।

सिरसा में एससी वोट बैंक और अन्य वर्गों में उनकी अच्छी पकड़ है, जो इस चुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकती है। सैलजा की सक्रियता भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, क्योंकि निकाय चुनावों में स्थानीय नेताओं की पकड़ और उनकी लोकप्रियता का बड़ा असर पड़ता है।

माइक्रो मैनेजमेंट की मांग

भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस में भी माइक्रो मैनेजमेंट की मांग उठ रही है। भाजपा ने प्रत्येक वार्ड के लिए अलग-अलग प्रभारी नियुक्त किए हैं, ताकि चुनावी तैयारियों को जमीनी स्तर पर मजबूती मिल सके।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इसी तरह अगर हर वार्ड की जिम्मेदारी कुछ नेताओं को दी जाए, तो चुनाव में जीत सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। माइक्रो मैनेजमेंट से न केवल पार्टी संगठित रूप से काम करेगी, बल्कि हर वार्ड में प्रत्याशियों को जीतने में सहायता भी मिलेगी।

भाजपा बनाम कांग्रेस: चुनावी मुकाबला

सिरसा निकाय चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है। भाजपा ने अभी तक अपने प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की है, लेकिन संभावित उम्मीदवार पहले से ही प्रचार में जुट गए हैं। वहीं, कांग्रेस में अभी केवल कुछ उम्मीदवारों ने प्रचार शुरू किया है, जबकि बाकी पार्टी के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस को इस स्थिति को जल्दी संभालना होगा, क्योंकि चुनाव प्रचार के लिए अब बहुत कम समय बचा है।

नामांकन प्रक्रिया और संभावित असर

निकाय चुनावों में नामांकन प्रक्रिया 11 फरवरी से शुरू होगी। कांग्रेस को अपने प्रत्याशियों की सूची जल्द जारी करनी होगी ताकि उम्मीदवार प्रचार अभियान में तेजी ला सकें। भाजपा पहले से ही अपने संगठन को मजबूत कर रही है, ऐसे में कांग्रेस को भी तेजी से फैसले लेने होंगे।

कुल मिलाकर, कांग्रेस का सिंबल पर चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी की एकजुटता और रणनीतिक मजबूती को दर्शाता है। यदि कांग्रेस सही समय पर प्रत्याशियों की घोषणा कर प्रचार अभियान को गति देती है, तो यह भाजपा के लिए एक कड़ी चुनौती बन सकती है।

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