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महिला स्वयं सहायता समूह: आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत कदम.

SHGs महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं।
 
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इन समूहों के माध्यम से महिलाएँ अपने छोटे व्यवसाय शुरू कर सकती हैं

महिला स्वयं सहायता समूह (Women Self-Help Groups - SHGs) आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का एक प्रभावी साधन है।

यह समूह महिलाओं को वित्तीय सहयोग, स्वरोजगार के अवसर और सामूहिक निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। भारत में, महिला SHG आंदोलन ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

महिला स्वयं सहायता समूह का महत्व

महिला स्वयं सहायता समूहों का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना और उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करना है। इन समूहों के माध्यम से महिलाएँ अपने छोटे व्यवसाय शुरू कर सकती हैं, जिससे उनकी आजीविका में सुधार होता है।

इसके अलावा, यह समूह महिलाओं को सामाजिक समरसता और सामूहिक निर्णय लेने का अवसर भी प्रदान करता है।

महिला स्वयं सहायता समूह का कार्य

  1. वित्तीय सहयोग और बचत: SHG सदस्य नियमित रूप से एक छोटी राशि बचत के रूप में जमा करती हैं, जिससे एक कोष का निर्माण होता है। इस कोष का उपयोग महिलाओं को ऋण देने के लिए किया जाता है।
  2. स्वरोजगार के अवसर: महिला SHGs विभिन्न प्रकार के लघु उद्योगों और हस्तशिल्प कार्यों में संलग्न होती हैं, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिलता है।
  3. ऋण सुविधा और बैंकिंग सेवाएँ: बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएँ महिला SHGs को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराती हैं।
  4. सामाजिक उत्थान: SHGs के माध्यम से महिलाएँ सामाजिक समस्याओं पर चर्चा कर सकती हैं और सामूहिक रूप से समाधान निकाल सकती हैं।
  5. प्रशिक्षण और कौशल विकास: सरकार और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) SHGs के माध्यम से महिलाओं को विभिन्न व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

महिला स्वयं सहायता समूह की विशेषताएँ

  • स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता: SHGs महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं।
  • सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया: यह समूह महिलाओं को एक मंच प्रदान करता है जहाँ वे मिलकर निर्णय ले सकती हैं।
  • आर्थिक स्वतंत्रता: महिलाएँ अपने स्वयं के व्यावसायिक उपक्रम शुरू कर सकती हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा: समूह की सदस्य महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।

महिला स्वयं सहायता समूहों की सफलता की कहानियाँ

इन समूहों के माध्यम से महिलाएँ हस्तशिल्प, कृषि उत्पाद, डेयरी व्यवसाय, और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में सफल रही हैं।

सरकार की योजनाएँ और सहायता

भारत सरकार और राज्य सरकारें महिला SHGs को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाएँ चला रही हैं, जैसे:

  1. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): यह योजना ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक है।
  2. मुद्रा योजना: इस योजना के तहत महिलाएँ बिना गारंटी के लोन ले सकती हैं।
  3. DAY-NULM (राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन): यह योजना शहरी क्षेत्रों में महिला SHGs को सहयोग प्रदान करती है।
  4. स्टैंडअप इंडिया योजना: इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

महिला स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ

हालांकि महिला SHGs महिलाओं के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा रहे हैं, फिर भी इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे:

  1. वित्तीय संसाधनों की कमी: कई SHGs को पूंजी की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  2. प्रशिक्षण की कमी: तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी से कई समूह सफल नहीं हो पाते।
  3. बाजार तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में बने उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराना एक चुनौती है।
  4. सामाजिक बाधाएँ: कुछ पारंपरिक समाजों में महिलाओं को व्यवसायिक स्वतंत्रता देने में संकोच किया जाता है।

महिला स्वयं सहायता समूह न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी महिलाओं को सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। सरकार, NGOs, और समाज के सहयोग से महिला SHGs को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

यदि महिलाओं को सही प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और बाज़ार तक पहुँच प्रदान की जाए, तो वे न केवल अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करेंगी बल्कि पूरे समाज के विकास में भी योगदान देंगी।

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