महानगर बीकानेर पर निबंध -

बीकानेर का इतिहास
बीकानेर के राजा
बीकानेर के राठौड़ राजाओं के नाम
बीकानेर का भूगोल
पोशाक
दस्तकारी
बीकानेर में शिक्षा
बीकानेर राजस्थान राज्य का एक महानगर है। यह शहर प्रस्तावित नए राज्य मरू प्रदेश की राजधानी के रूप में विकसित किया जा रहा हैं । बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य महाभारत काल में जांगल देश था.
बीकानेर का इतिहास
बीकानेर एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफिक्र के साथ अपना जीवन यापन करते है। बीकानेर नगर की स्थापना के विषय मे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने राव जोधा से कहा कि आपने भले ही राव सातल जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया।
बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नाथा जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह राजपुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने राव बीका जी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ राव बीका जी ने बीकानेर की स्थापना की।
बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीरे धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँग्य में कहा “मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं"। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृपा हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है-
पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर
बीकानेर के राजा
राव बीकाजी की मृत्यु के पश्चात राव नरा ने राज्य संभाला किन्तु उनकी एक वर्ष से कम में ही मृत्यु हो गयी। उसके बाद राव लूणकरण ने गद्दी संभाली।
बीकानेर के राठौड़ राजाओं के नाम
राय सिंह (1573-1612)
कर्ण सिंह (1631-1669)
अनूप सिंह (1669-1698)
सरूपसिंह (1698-1700)
सुजान सिंह (1700-1736)
जोरावर सिंह (1736-1746)
गजसिंह (1746-1787)
राजसिंह (1787)
प्रताप सिंह (1787)
सुरत सिंह (1787-1828)
रतन सिंह (1828-1851)
सरदार सिंह (1851-1872)
डूंगरसिंह (1872-1887)
गंगासिंह (1887-1943)
सार्दुल सिंह (1943-1950)
करणीसिंह (1950-1988)
नरेंद्रसिंह (1988-2022)
बीकानेर का भूगोल
राज्य के दक्षिणी और पूर्वी भाग वागड़ नाम की विशाल मरुभूमि का और कुछ हिस्सा उत्तर-पश्चिमी भाग भारत की मरुभूमि का अंश है। इसका केवल उत्तर-पूर्वी भाग ही उपजाऊ है। इसका अधिकांश हिस्सा रेत के टीलों से भरा है, जो 20 फुट से लेकर कहीं कहीं 200 फुट तक ऊँचे हो जाते है। यह कहा जा सकता है कि एक प्रकार से यहां की भूमि सूखी और हर प्रकार से ऊजड़ ही है। किन्तु वर्षा ॠतु में घास उग आने पर यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखने योग्य होता हैं .
बीकानेर की संस्कृति-
पोशाक
शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेटा काम में लाते हैं। स्त्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है।
भाषा
यहां के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहां उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहां की लिपि देवनागरी है, जो बहुधा घसीट रूप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।
दस्तकारी
भेड़ो की अधिकता के कारण यहां ऊन बहुत होता है, जिसके कंबल, लाईयां आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहां के गलीचे एवं दरियां भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दांत की चूड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियां, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहां बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।
साहित्य
साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण, संत और जैनों द्वारा लिखा गया था। चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा मे अपनी बात कहते थे। बीकानेर के संत लोक शैली मे लिखतें थे।
बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। राजस्थानी साहित्य के विकास मे बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय़ मिलता रहा था। राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य मे जौहर दिखलाये। राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान मे दिया था।
बारहठ चौहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे। इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बडे आदर से लिया जाता है। उनका काव्य 'राव जैतसी के छंद' डिंगल साहित्य मे उँचा स्थान रखती है।
बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी। रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार मे भी रहे थे। उन्होने 'क्रिसन रुक्मणी री' नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है।
बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल (नगर वर्णन को गजल कहा गया है) रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे
बीकानेर में शिक्षा
बीकानेर में राजस्थान राज्य का शिक्षा निदेशालय स्थित है। रजवाडों की एक बिल्डिंग में वेटेरनरी कॉलेज के पास स्थित निदेशालय में सैकड़ो कर्मचारी काम करते हैं। कक्षा एक से बारहवीं तक की परीक्षाओं का संचालन और परीक्षा परिणाम, अध्यापकों के स्थानान्तरण सहित कई प्रकार की गतिविधियाँ यहाँ वृहद् स्तर पर चलती रहती है। इसे राज्य की शिक्षा व्यवस्था का कुंभ कहा जा सकता है।
शिक्षा विभाग से जुडे कार्मिकों को अपने सेवाकाल में एक बार तो यहाँ चक्कर लगाना पड़ ही जाता है।
महाविद्यालय शिक्षा अकादमिक स्तर पर देखा जाए तो तीन महाविद्यालय मुख्य रूप से बीकानेर में है। एक है महारानी सुदर्शना महाविद्यालय और दूसरा है राजकीय डूंगर महाविद्यालय। तीसरा है गंगा शार्दुल राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय। करीब पचास साल पुराने तीनों महाविद्यालयों का अपना-अपना इतिहास है।
इसके अलावा कई वोकेशनल कोर्सेज और डिग्री कॉलेज भी यहाँ है। पिछले कुछ सालों से बीकानेर में खुले इंजीनियरिंग कॉलेज ने राष्ट्रीय स्तर के सेमीनार करवाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है।