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पिता ट्रक चलाते हैं, घर में लाइट का कनेक्शन नहीं है, मन में ठान लिया आईएएस बनना है, UPSC में 551वीं रैंक हासिल कर बन गया आईएएस

दो बार परीक्षा दी लेकिन सफल नहीं रहे और इस बार परीक्षा देकर आईएएस बन गए.
 
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नागौर के रहने वाले पवन कुमार कुमावत ने. मन में आईएएस बनने का सपना ऐसा संजोया की मुश्किलें सामने आईं लेकिन कुछ नहीं कर सकीं। पवन के पिता ट्रक चलाते हैं और घर में लाइट का कनेक्शन नहीं है. इस संघर्ष का नतीजा रहा कि उसने UPSC में 551वीं रैंक हासिल की.| पवन ने बताया की साल 2006 में एक रिक्शा चालक के बेटे गोविन्द जायसवाल आईएएस बने थे. फिर उसके बाद मन में मैनें भी ठान लिया की मुझे भी आईएएस बनना है. जीवन में कुछ करना है और तब से ही मन में इसके लिए संकल्प बना लिया।

पवन ने बताया की वो लोग नागौर के सोमणा में एक झोपड़ी में रहा करते थे. वहां पर पिताजी मिटटी के बर्तन बनाया करते थे. बड़ी मुश्किल से जैसे भी हमारा गुजारा चल जाय करता था और फिर साल 2003 में मेरे पिताजी नागौर आ गए. वहां पर हम जहाँ रहते थे उस जगह लाइट का कनेक्शन नहीं था. कभी पड़ोसी के यहाँ से लाइट जोड़ लिया करते थे. मैं चिमनी की रौशनी में या लालटेन की रौशनी में पढ़ाई किया करता था. इस दौरान मेरी दादी हमेशा मुझसे एक बात कहती थी की भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं।

पवन ने अपने संघर्ष की कहानी का जिक्र करते हुए बताया कि साल 2003 में जब हम लोग नागौर आए तब हमारे पिताजी ट्रक चलाने लगे और उनकी तनख्वाह महज 4000 रुपये थी. इससे घर का गुजरा बड़ी मुश्किल से चला करता था. फिर मेरा एडमिशन नागौर के केंद्रीय विद्यालय में हो गया, साल 2003 में 10वीं 74.33 व 2005 में सीनियर सेकेंडरी 79.92% नंबरों से पास की, जयपुर के कॉलेज से बीडीएस किया। इसमें 61.29% नंबर थे | पवन ने बताया की कोचिंग करने के लिए पैसों की जरूरत थी तो मेरे घरवालों ने कर्ज लेना शुरू किया। इसके बाद कई परिचित लोगों ने बिना ब्याज के पैसा दिया लेकिन कुछ लोगों ने पैसे के लिए बहुत परेशान किया। आए दिन कर्ज मांगने आ जाया करते थे. बड़ी मुश्किलों से घर का खर्च चला करता था और हमारी रोजाना की जरूरतें पूरी होती थीं.

पवन ने साल 2018 में RAS पास करके उद्योग निदेशक का पद ज्वाइन कर लिया लेकिन मन में आईएएस बनने का ही सपना था. दो बार परीक्षा दी लेकिन सफल नहीं रहे और इस बार परीक्षा देकर आईएएस बन गए.

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