Poranik kathaye. जानियें कैसे नारद मुनि भक्तों के संदेश भगवान तक पहुंचाते थे .  

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, देवर्षियों में मैं नारद हूं।
 

प्रत्येक प्राणी के अंतर्मन की चेतना है नारद - महर्षि नारद ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं,

प्रत्येक प्राणी के अन्तर्मन का संदेश ईश्वर तक पहुंचाते हैं।


नारद मुनि के किरदार को  किसने नहीं  देखा  होगा। यह नारायण नारायण करते हुए तीनों लोकों में भ्रमण करते हैं और भगवान तक दुनिया भर की सूचनाएं पहुंचते। लेकिन नारद मुनि कैसे भक्तों के संदेश भगवान तक पहुंचाने वाले संदेश वाहक बने इसकी भी रोचक कथा है।


भक्तों के संदेश को सीधे भगवान तक पहुंचाने का दायित्व नारद मुनि के पास है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, देवर्षियों में मैं नारद हूं। सभी युगों में, सभी लोकों में, शास्त्रों एवं पुराणों में देवर्षि नारद की कालजयी उपस्थिति है। नारद जी त्रिकालदर्शी एवं ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता हैं, नारद पुराण में ज्योतिष के तीनों स्कंध, सिद्धांत, होरा और संहिता का उल्लेख हैं।

प्रत्येक प्राणी के अंतर्मन की चेतना है नारद - महर्षि नारद ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं, प्रत्येक प्राणी के अन्तर्मन का संदेश ईश्वर तक पहुंचाते हैं। साधारण मनुष्य की चेतना विभिन्न स्तरों में विभाजित है, जब हम अपने मन को पूर्ण एकाग्र कर चिन्तन करते हैं, तो नारद उसे प्रभु तक पहुंचाकर तथास्तु करते हैं। मानव चेतना जब एकीभूत समग्र होती है, अर्थात् जब शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक, अलग-अलग स्तरों में बिखरी चेतना एक होती है तो मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नारद मुनि की तरह व्यक्ति का मन भी चलायमान है। जैसे नारद एक जगह नहीं टिकते हैं, वैसे ही व्यक्ति का मन भी एक जगह नहीं टिकता है।

अनादि काल से नारद भक्ति और भगवान के बीच में संदेश सेतु का कार्य करते हैं, नारद प्रत्येक मनुष्य के अन्तर्मन में चल रहे संवाद के ज्ञाता हैं। ईश्वर तक अन्तर्मन का संदेश पहुंचाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को काम, क्रोध आदि मन के विकारों से दूर होकर निर्मल मन से भक्ति, आराधना एवं आत्मचिन्तन करना चाहिए।


नारद कथाऐं यथोचित मार्गदर्शन करती हैं - नारद कथाऐं सहस्त्र हैं, परन्तु समस्त कथाओं का सार है, अन्तर्मन की चेतना का शुद्धिकरण कर उसे एकरूप करना। निर्मल मन ही ईश्वर को पाने का एकमात्र साधन है। शास्त्रों से लेकर जनश्रुतियों, पौराणिक साहित्यों, गंथों, पुरातन स्मृतियो में नारद जी की सहस्त्र कथाओं का वर्णन है। धर्मशास्त्रों में उल्लिखित है, बिना गुरू की पूर्ण चेतना के सफलता नहीं मिलती, इसलिए एक बार नारद मुनि गुरू की खोज में भगवान विष्णु के पास गए।

भगवान ने नारद से कहा, पृथ्वीलोक पर जाओ और प्रातःकाल जिस प्रथम व्यक्ति से तुम्हारी भेंट होगी, वही तुम्हारा गुरू होकर कल्याण करेगा। अगले दिन नारद मुनि को सर्वप्रथम जो व्यक्ति मिला, नारद मुनि ने उन्हें गुरू कहकर प्रणाम किया।