17 या 18 जून, कब है निर्जला एकादशी, कौन सी विधि करने से मिलेगा  व्रत का फल

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी ( Nirjala Ekadashi) कहा जाता है।
 

ये शुभयोग बन रहे

24 घण्टे अन्न-जल का त्याग

सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती


हर साल कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। इनमें निर्जला एकदशी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। दिवस की अवधि के अनुसार, यह साल की सबसे बड़ी एकादशी है। इस व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी ( Nirjala Ekadashi) कहा जाता है। है।


ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला ने बताया कि इस बार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी 17-18 जून की रात्रि के तीसरे पहर में 2.47 बजे आरम्भ होगी। 18 जून को सूर्योदय से सूर्यास्त तक एकादशी है। 19 जून को भोर 4.22 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी। इसलिए उदयातिथि के अनुसार 18 जून को निर्जला एकादशी मनाई जाएगी। इन शुभयोगों में निर्जला एकादशी का व्रत द्विगुणित शुभफलदायी माना जा रहा है।


ये शुभयोग बन रहे
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन त्रिपुष्कर योग, शिव योग और चित्रा नक्षत्र का अद्भुत संयोग बन रहा है। इस वजह से यह तिथि बेहद शुभ होने वाली है।चित्रा नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा शिव योग रहेगा।निर्जला एकादशी का पारण 18 जून को सुबह होगा। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग, रवि योग और अमृत सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है।माना जा रहा है कि इस दिन पारण करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होगी।


24 घण्टे अन्न-जल का त्याग
आचार्य शुक्ला के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन सुबह स्नान कर के सूर्य देव को अर्घ्य देने का महत्व है। इसके बाद पीले वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की पूजा के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। भगवान विष्णु को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाता है।

सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती
व्रत का संकल्प लेने के बाद अगले दिन सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती। इसमें अन्न् और फलाहार का भी त्याग करना होता है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को स्नान करके फिर से श्रीहरी की पूजा करने के बाद ही अन्न्-जल ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है।