Crime nibandh. शहरों में बढ़ते अपराध पर निबंध.


अपराध एक ऐसा कार्य है जो देश में कानून के द्वारा निषिद्ध हो और जिसके लिए दंड निर्धारित हो।

 

अपराध बढ़ने के कारण -

आर्थिक कारण‌ –

बेरोज़गारी –

मानसिक विकार –

लचीली कानून व्यवस्था -‌

संस्कारों का अभाव –


अपराध एक ऐसा कार्य है जो देश में कानून के द्वारा निषिद्ध हो और जिसके लिए दंड निर्धारित हो। किसी भी वर्ग के व्यक्ति के द्वारा किए गए ऐसे कार्य, जो सामाजिक नियमों, कानूनों का उल्लंघन करते हो, अपराध की श्रेणी में आते हैं।

 

 

अपराधों की कोई निश्चित परिभाषा या वर्गीकरण नहीं है । समय के साथ इनमें परिवर्तन और आवश्यक संशोधन होता रहता है। आज से एक दशक पहले जहां महिलाओं के विरुद्ध किए जा रहे दुष्कर्म, जातिगत भेदभाव, अशिक्षा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए कोई विशेष कानून नहीं थे। तब यह सब अपराध की श्रेणी में नहीं आते थे। किंतु संविधान के निर्माण के बाद अब हर तरह के अपराधों के लिए सजा और जुर्माने का प्रावधान तय है । जिनमें विभिन्न तरह के अपराधों को सटीकता से परिभाषित किया गया है।


अपराध के प्रकार
समाज के विरुद्ध किया गया हर कार्य , जिससे किसी को नुकसान पहुंचता हो या धन हानि हो, अपराध की श्रेणी में आता है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता अर्थात कानून की किताब में, अपराध को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा गया है –

 1.   संज्ञेय अपराध: 

इसमें ऐसे अपराध आते हैं, जिसमें पुलिस किसी भी व्यक्ति को, बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। यदि उसके खिलाफ संज्ञेय अपराध से संबंधित एफ आई आर दर्ज हो । उदाहरण के लिए अपहरण, हत्या , बलात्कार, रिश्वत लेना, देशद्रोह, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना इत्यादि संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं।


 2.    असंज्ञेय अपराध

ऐसे अपराध जिनमें पुलिस को बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है। जैसे धार्मिक भावनाएं भड़काना, गर्भपात, धोखाधड़ी, मानहानि, झूठे गवाह पेश करना इत्यादि।
किंतु इनके अतिरिक्त और भी‌ क‌ई तरह के अपराध होते हैं। क्योंकि जैसे-जैसे मनुष्य प्रगति कर रहा है, आविष्कार कर रहा है, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, अपराधी नए तरह के अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं। जैसे – 
साइबर क्राइम, इसके अंतर्गत ऑनलाइन धोखाधड़ी, सोशल मीडिया पर नकली प्रोफाइल बनाना, अभद्र और असामाजिक टिप्पणी करना, लेखक की अनुमति के बिना उसकी रचना को पोस्ट करना, किसी की फोटो का गलत इस्तेमाल करना, बैंकिंग संबंधी फ्रॉड, ई-मेल फ्रॉड, फिशिंग, स्पैमिंग इत्यादि। 


अपराध बढ़ने के कारण -
समाज में दिन प्रतिदिन अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं । अपराध बढ़ने का मुख्य कारण है हमारी बदलती जीवनशैली, सामाजिक परिस्थितियां, मानसिक तनाव, सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग, सस्ता इंटरनेट हैं। कई लोग इंटरनेट पर वीडियो देखकर ही अपराध करना सीखते हैं , तो कुछ सोशल मीडिया के जरिए लोगों को भड़काते हैं। एक कारण यह भी है कि अपराधियों को सजा का डर नहीं है, देश का कानून बहुत लचीला है। अपराधी इसका फायदा उठाकर छूट जाते हैं। इन सब कारणों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं- 

आर्थिक कारण‌ – गरीबी इंसान से क्या नहीं करवाती? पेट में अन्न का दाना ना हो और रोजगार का कोई साधन ना हो तो, इंसान दो वक्त की रोटी के लिए किसी भी तरह का काम करने को तैयार हो जाता है। बस लोगों की इसी गरीबी और लाचारी का फायदा उठाकर शातिर अपराधी, इनसे हत्या, लूटपाट करवाते हैं। गरीब इंसान खुद ही दो वक्त की रोटी का गुजारा करने के चोरी करने पर मजबूर हो जाता है। 


बेरोज़गारी – बेरोजगारी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। जिस तेजी से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है, उसी तेजी के साथ हर साल लाखों की संख्या में बच्चे ग्रेजुएट हो रहे हैं । किंतु इतनी संख्या में हर वर्ष नौकरियां उत्पन्न नहीं हो रही है। और बेरोजगारी का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। बेरोज़गारी किसी भी युवा की मनोदशा को इतना तोड़ देती है। फिर वह पैसों के लालच में कुछ भी करने को आतुर हो जाता है। 


मानसिक विकार – वर्तमान समय में हम तेजी से विकास कर रहे हैं, किंतु इसके साथ ही कई नई-नई बीमारी उत्पन्न हो रही है- मानसिक विकार उन्हीं में से एक हैं। जब से हमने मशीनों और इंटरनेट के बीच खुद को व्यस्त करना शुरू किया है, हमारी सोशल लाइफ कम होती जा रही है। आज हर दूसरा इंसान अकेलेपन से ग्रस्त है । कुछ को मानसिक तनाव है या डिप्रेशन। और इन्हीं विकारों के चलते आज‌ इंसान का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है और वह अपराध करने की ओर अग्रसर हो रहा है।


मद्यपान – मद्यपान अर्थात नशा करना। यह इंसान की सबसे बुरी आदतों में से एक है। यह जानते हुए भी कि शराब पीना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी व्यक्ति शराब पीता है और नशे की हालत में अपनी सुध-बुध खो बैठता है और संगीन अपराध को अंजाम देता है।


लचीली कानून व्यवस्था -‌ चूंकि‌ हमारा संविधान सबसे लचीला संविधान है । यहां अपराधी को खुद को निर्दोष साबित करने के अवसर दिए जाते हैं और कई बार अपराधी झूठे साक्ष्य प्रस्तुत कर, खुद को निर्दोष साबित कर, सजा से बच जाता है और कानून व्यवस्था का दुरुपयोग करता है। हमारा संवैधानिक तंत्र इतना धीरे काम करता है कि एक अपराधी को सजा  होने में 10 से 20 साल लग जाते है। भारत का कानून कठोर नहीं है इसलिए भी अपराधियों को कानून से डर नहीं लगता और वह अपराध करते जाते हैं।


सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग – आज हर आदमी अपनी जेब में इंटरनेट लेकर घूम रहा है। इंटरनेट के आने से कई क्रांतिकारी परिवर्तन तो हुए है, किंतु इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। सोशल मीडिया ने जहां लोगों को जोड़ने का काम किया है, वहीं कई तरह के अपराधों का भी जन्मदाता है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग फेक प्रोफाइल आईडी बनाकर मासूम लोगों को अपना शिकार बनाते हैं और बदले में पैसे या सीक्रेट इन्फार्मेशन मांगते हैं। कई लोगों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की लत लग जाती है। ऐसे लोग खतरनाक गिरोह का शिकार बन जाते हैं और आतंकवाद को बढ़ावा देने में भी सोशल मीडिया ने सक्रिय भूमिका निभायी है। 


कुसंगत का असर – वो कहते हैं जैसा संग वैसा ढंग। व्यक्ति जिस प्रकार के लोगों के बीच रहता है वह वैसा ही बन जाता है। यदि आपके मित्र गलत विचारधारा या अपराधिक प्रवृत्ति में संलग्न है, तो उनके साथ रहकर आप भी उन्ही सब गलत चीजों की ओर आकर्षित होने लगते है। कई बार व्यक्ति को अंदाजा भी नहीं लगता कि वह जो कर रहा है, वह कितना बड़ा जुर्म है और अपराध कर बैठता है। और अंत में पछताने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। कई युवा जवानी के जोश में व्यसन करने लगते हैं, ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं,‌ शराब पीने लगते हैं और इसे अपने दोस्तों को भी सिखाते हैं। 


अमीर बनने की चाहत – आज के आधुनिक युग में हर आदमी अमीर बनना चाहता है । हर आदमी चाहता है कि उसके पास गाड़ी, बंगला और दौलत, शोहरत, कामयाबी हो किन्तु इन सब चीजों को पाने के लिए वह मेहनत नहीं करना चाहता । इंसान सोचता है कि उसे सब आसानी से मिल जाए और इसी छोटी सोच के साथ ही कम समय में जल्दी कामयाब बनने के लिए, अपराधिक कृत्य करने लगता है। व्यक्ति को इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि वह क्या कर रहा है। उस पर अमीर बनने का भूत सवार होता है और वह अपनी इस इच्छा पूर्ति के लिए, किसी की जान लेने में भी संकोच नहीं करता।


संस्कारों का अभाव – जैसे-जैसे हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं , हमारी परंपराएं, संस्कार पीछे छूटते जा रहे हैं। हम पाश्चात्य सभ्यता की रौनक और चमक-दमक देख कर इतने आकर्षित हो गए हैं कि अपने संस्कारों को भूल गए हैं। आज एकल परिवार तेजी से बढ़ रहे हैं, और संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं जहां छोटे बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी सबका स्नेह व संस्कार मिलता था जो अब नहीं रहा। यही वजह है कि आने वाली पीढ़ी इन संस्कारों से वंचित हो रही है और गलत राह पर अग्रसर हो रही है क्योंकि इन्हें मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं है। माता-पिता पैसे कमाने में व्यस्त है, और बच्चों में संस्कार देने वाला या उनकी गलती पर डांट लगाने वाला कोई नहीं है। 


आजकल महिलाओं के खिलाफ जिस तरह के दुष्कृत्य  बढ़ रहे हैं । उनके लिए भी कही ना कही हमारी परवरिश जिम्मेदार हैं, हमारी परवरिश में कई कमियां हैं जैसे- बेटों को लड़कियों की इज्जत करना ना सिखाना, बेटों को घर के काम ना सिखाना, बेटों की गलतियों पर पर्दा डालना। दरअसल हम बचपन से बेटा-बेटी में फर्क करते आए हैं और यही कारण है कि आगे जाकर लड़के, किसी लड़की की इज्ज़त नहीं करते, चाहे वह उनकी मां, बेटी या बहन ही क्यों ना हो।


सिनेमा का दुष्प्रभाव– कहते हैं सिनेमा समाज का दर्पण होता है। किंतु अब यही दर्पण अश्लीलता और अपराधों से मैला हो चुका है। हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं – हां यह सच है कि भारतीय सिनेमा में बनने वाली कुछ ही फिल्म ऐसी होती है जो प्रेरणादायक हो, जहां से कुछ सीखने को मिले। किंतु ज्यादातर फिल्में ऐसी बन रही है, जिनमें मार-पीट, अश्लीलता, संगीन अपराध होते दिखाए जाते हैं और ये अपराध और कोई नहीं हीरो ही करता हैं और लोग तो सिनेमा में हीरो को ही भगवान मानते हैं, जो हीरो करता है, लोग भी ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं तथा सही-गलत का फ़र्क भूल जाते हैं। लड़कियों को छेड़ना, उनका मजाक उड़ाना, पैसे के लिए किसी का कत्ल करना, गैंगरेप‌ यह सब लोगों ने सिनेमा से ही सीखा है और अपराधिक कृत्य किए है।


आपराधिक कानून 
समाज में कई तरह के अपराध होते हैं और यहां होने वाले विभिन्न तरह के अपराधों के लिए अलग-अलग प्रावधान निर्धारित है। जो इस प्रकार है –

भारतीय दंड संहिता 1860- भारत में विधि द्वारा स्थापित अधिष्ठात्री कानून है। जिसमें 511 धाराएं है जिसमें विशिष्ट अपराध और दंड का प्रावधान है। इनमें कुछ संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध है। इसमें सामाजिक अपराधों जैसे लोक समानता, सामाजिक न्याय, धर्म आदि के विरुद्ध अपराधों को  संहिताबद्ध  किया गया है । कुछ प्रमुख धाराएं – 


धारा 307-  हत्या की कोशिश करने पर सजा का प्रावधान है।
धारा 302- इसके तहत किसी की हत्या करने पर आजीवन कारावास ।


धारा 376-‌ इसके तहत रेप होने पर केस दर्ज किया जाता है।
धारा 395-  इसमें डकैती होने पर केस दर्ज किया जाता है।
धारा 365 – इसके तहत किसी का अपहरण होने पर एफ आई आर दर्ज की जा सकती है।


आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता 1973-  इसमें किसी अपराध करने वाले को दी जाने वाली सजा की पूरी प्रक्रिया शामिल है। जिसके अंतर्गत जांच, पूछताछ, मुकदमा, अंतिम निर्णय शामिल है। यदि अभियुक्त दोषी पाया जाता है तो उसे दंडित किया जाएगा । यदि युक्तिसंगत स्तर तक अपराध सिद्ध नहीं हो पाता तो अपराधी रिहा कर दिया जाता है ।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 – यह उन साक्ष्यों को निर्धारित करता है, जिन मामलों के निपटान के लिए विचार किया जा सकता है । चाहे केस सिविल हो या  फौजदारी । उसमें सारे सबूत और गवाह प्रमाणित होने चाहिए । गलत सबूत प्रस्तुत करने के जुर्म में सजा का प्रावधान है । 


अपराध रोकने के उपाय-
सख्त कानून – वर्तमान में हमारी कानून व्यवस्था बहुत लचीली है, जिस वजह से अपराध करने वालों को कानून का कोई भय नहीं है। यदि हमारे देश में कानून को इतना सख्त कर दिया जाए कि छोटे से छोटे अपराध के लिए भी गंभीर सजा का प्रावधान हो और ऊंचा अर्थदंड लगाया जाए तो शायद अपराध करने वाले के मन में यह भय व्याप्त हो, तो हर अपराधी, अपराध करने से पहले 10 बार सोचे। 


वर्तमान हालात तो यह है कि संगीन अपराध करने पर भी अपराधी जेल तो जाता है लेकिन लचीली कानून व्यवस्था का फायदा उठाकर जेल से जल्द ही छूट जाता है और फिर वही दुष्कृत्य करता है। कानून इतना सख्त और सजा इतनी कठोर हो कि अपराधियों की रुह कांप उठे । 

सोशल मीडिया पर नियंत्रण  – वर्तमान में जिस तेजी से सोशल मीडिया के जरिए अपराध बढ़ रहे है, इसे रोकने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को खुद आगे आकर पहल करनी चाहिए। उन्हें अपने सिस्टम की खामियों को दूर करना चाहिए । ताकि नकली प्रोफाइल बनाने वालों को पकड़ा जा सके । किसी की अनुमति के बिना उसकी फोटो का इस्तेमाल ना करना, इसके लिए भी नया फीचर लाना चाहिए। कोई भी अनजान व्यक्ति किसी की वेबसाइट से जानकारी ना चुरा सके, इसके लिए सिक्योरिटी बढ़ानी चाहिए।


सही परवरिश -‌ आज की पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से 10 गुना आगे है, तकनीक में भी और बुद्धिमत्ता में भी। किंतु इसका मतलब यह नहीं कि आने वाली पीढ़ी को संस्कारों की जरूरत नहीं है। यह हमारा और हमारे बुजुर्गों का दायित्व बनता है, नई पीढ़ी को सही गलत का फर्क बताएं, उन्हें हमारे संस्कारों, आदर्शों से परिचय करवाएं। यदि बचपन से ही अच्छी आदतें विकसित हो जाएंगी तो यह है उनके अच्छे भविष्य की मजबूत नींव होगी । वे आने वाली हर परिस्थिति का, हर परेशानी का डटकर मुकाबला कर पाएंगे और खुद को कुसंगत से भी बचा पाएंगे ।


नैतिक कर्तव्य – अपराधिक प्रवृत्ति को कम करने के लिए कानून व्यवस्था ही जिम्मेदार नहीं है । हमारा भी कुछ नैतिक और सामाजिक दायित्व बनता है। यदि आप अपने आसपास किसी को ऐसे अपराधिक बातें करते हुए सुनें या देखें तो उसका विरोध करें । सोशल मीडिया अपराध का कारण बन रहा है तो यही उसे रोकने का हथियार भी बन सकता हैं। ऐसे अपराधियों के बारे में सोशल मीडिया पर डालना चाहिए। ताकि अपमान के डर से लोग ऐसे अपराध करने से बचें। 


जागरूकता पैदा करना – प्रशासन को चाहिए कि समय-समय पर जागरूकता रैली, सामाजिक प्रचार के माध्यम से लोगों को अपराधिक प्रवृत्ति और उससे होने वाली हानियों के बारे में आगाह करते रहें। सोशल मीडिया पर होने वाले अपराधों के प्रति लोगों को सचेत करते रहे, क्योंकि जागरूक नागरिक ही इन अपराधों से स्वयं की और समाज की रक्षा कर सकता है। और यह तभी होगा जब लोगों को खुद पता हो कि कौन से कृत्य अपराध है, जिनके लिए  कानून की किताब में सजा का प्रावधान है।


उपसंहार- 
हमें प्रतिदिन अख़बारों में कोई ना कोई खबर पढ़ने को मिल जाती हैं कि किसी क्षेत्र में कुछ लोग सूने घर से जेवर, रकम चुरा कर भाग गए, रात के अंधेरे का फायदा उठाकर एटीएम से पैसे चुरा लिए, पति-पत्नी के आपसी झगड़े में पति ने पत्नी की हत्या कर दी, दो गुटों में मारपीट, कभी किसी जगह नक्सलवादी, आतंकवादी हमला हुआ, तो कही धर्म के नाम पर हिंसा और हत्याएं, लूटपाट हुई। इन सभी समस्याओं के मूल में एक ही कारण दिखाई देता है – आंतरिक नैतिकता का ह्रास‌। आज व्यक्ति के अंदर की इंसानियत खत्म हो चुकी है ।