श्री हनुमान पर निबंध (Lord Hanuman Essay in Hindi)

कलयुग में सिर्फ प्रभु हनुमान ही सशरीर विद्यमान हैं, और जब तक इस धरती पर प्रभु राम का नाम रहेगा, तब तक राम भक्त हनुमान भी रहेंगे।
 

श्री हनुमान का जन्म

सबसे अधिक पूजित और स्मरणीय भगवान

बचपन में मिला श्राप

श्री राम के अनन्य भक्त है, श्री हनुमान। उनकी भक्ति सभी के लिए अनुकरणीय है।


परिचय

“हे दुख भंजन, मारुति नंदन

सुन लो मेरी पुकार, पवन सुत विनती बारंबार।”

पवन पुत्र का नाम लेते ही सारे दुख दूर हो जाते है। उनका नाम सुनते ही सभी बुरी शक्तियां दूर भाग जाती है। कहते है कलयुग में सिर्फ प्रभु हनुमान ही सशरीर विद्यमान हैं, और जब तक इस धरती पर प्रभु राम का नाम रहेगा, तब तक राम भक्त हनुमान भी रहेंगे।

श्री हनुमान का जन्म

मनीषियों के अनुसार हनुमान का जन्म त्रेता युग के अंतिम चरण में चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था।

सूर्य को समझ लिया लाल फल

कहते है, एक बार जब वो केवल छः माह के थे, उन्हें अत्यंत भूख लगी थी, माता अंजना जैसे ही बाहर भोजन लेने जाती है। उनसे भूख बर्दाश्त नहीं होती है, और वो आकाश की तरफ देखते है, तो लाल फल जैसा गोल वस्तु (सूर्य) दिखाई पड़ता है, जिसे खाने वो आकाश में उड़ जाते है।

हनुमान नाम क्यों पड़ा?

जब बालक मारुति लाल सूर्य को खाने आकाश में पहुँचे, उस दिन अमावस्या का दिन था और राहु सूर्य को ग्रसने वाला था। लेकिन जब उसने देखा कि कोई और सूर्य को खाने जा रहा है, तो वह डर कर देवराज इंद्र के पास पहुँचा।

इंद्र ने बालक को सूरज को खाने से मना किया, पर वो कहां मानने वाले थे। तब गुस्से में आकर इंद्र ने मारुति पर अपने वज्र से प्रहार किया। जिससे उनकी ठुड्डी पर आघात लगा और वो मूर्छित होकर धरा पर गिर पड़े।

इंद्र के ऐसे दुस्साहस से पवन देव अत्यंत क्रोधित हुए और गुस्से में आकर पूरी धरती से वायु का संचार रोक दिया। समस्त संसार बिना वायु के विचलित हो उठा। ब्रह्मदेव ने आकर बालक मारुति को पुनर्जीवित किया और वायुदेव से अनुरोध किया कि वो संसार में पुनः वायु का संचार करें, अन्यथा समस्त संसार मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।

सबके आग्रह करने पर वायु देव मान गये और अपने पुत्र को वरदान दिया कि उनकी गति उनसे भी तेज होगी। साथ ही ब्रह्मदेव समेत सभी देवताओं ने उन्हें वरदान दिए। और इस तरह हनु अर्थात ठुड्डी पर चोट लगने के कारण उनका नाम ‘हनुमान’ पड़ा।
भगवान हनुमान को तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली भगवान माना जाता है। उन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है, उनमें से कुछ हैं- बजरंग बली, केशरी नंदन, पवन कुमार, मारुति, संकट मोचन आदि। भगवान हनुमान की शक्ति और भक्ति के कारण, लोग उनसे आशीर्वाद पाने और एक निस्वार्थ जीवन जीने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।

सबसे अधिक पूजित और स्मरणीय भगवान

विशेष रूप से परेशानी या खतरे के समय में भगवान हनुमान सबसे ज्यादा याद किए जाते हैं। एक हिंदू के लिए यह बिल्कुल सामान्य है, चाहे वह कितना भी शिक्षित क्यों न हो, संकट में, खतरे या भय से गुजरने पर सबसे पहले, जय हनुमान का ही नाम लेता है।

हनुमान जी ने कभी भी भगवान होने का दावा नहीं किया है, अपितु खुद को ‘त्रेता युग’ में विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम के सबसे वफादार और समर्पित सेवक के रुप में वर्णित किया।

रुद्रावतार वीर हनुमान

कहा जाता है कि अंजना माता अपने पूर्व जन्म में शिव की महान भक्त थी, और कठोर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया था। वरदान स्वरुप शिव को ही उनके पुत्र के रुप में जन्म लेने का वरदान मांगा था।

पवनपुत्र हनुमान

वरदान के फलस्वरुप भगवान भोलेनाथ के रुद्र अवतार ने अंजना के कोख से जन्म लिया। ऐसी भी किवदंतियां है कि उन्होंने इसके लिए पवन देव को चुना था और आंजनेय (हनुमान) का उत्तरदायित्व सौंपा था। पवनदेव ने ही शिव के अंश को अंजना की कोख में पहुँचाया था। इसी लिए हनुमान को पवनपुत्र भी कहते हैं।

बचपन में मिला श्राप

बचपन में हनुमान जी बहुत ज्यादा शरारत किया करते थे। हर वक्त मस्ती करते थे। साधु-संतो को भी बहुत परेशान करते थे और उनकी तपस्या आदि में विघ्न डाला करते थे, जिससे क्रुध्द आकर एक ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया कि वो अपनी सारी शक्ति भूल जायेंगे, और जब कभी कोई उन्हें उनकी शक्ति याद दिलाएगा, तभी उन्हें याद आएगी।

इसी कारण जब माता सीता का पता लगाने लंका जाना था, तब जामवंत जी को उन्हें उनकी शक्ति को याद दिलाना पड़ा था। यह प्रहसन किष्किंधाकांड और सुंदरकांड में मिलता है।

“राम काज लगि तव अवतारा”

अनेक देवताओं से मिला वरदान

बालक मारुति बचपन से ही बहुत शरारती थे, जिस कारण उन पर एक बार देवराज ने वज्र प्रहार किया था। उसके बाद ब्रह्मदेव, महादेव, इंद्र देव आदि कई अमोघ वरदान दिए। इंद्र देवता ने आशीर्वाद दिया कि उनका शरीर वज्र की भांति हो जाए। तभी से प्रभु का नाम बजरंग बली पड़ गया। ब्रह्मदेव ने वरदान दिया कि वो चाहे जैसा रुप धारण कर सकते थे, सूक्ष्म से सूक्ष्म और विशाल से विशाल।

“सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।

विकट रुप धरि लंक जरावा।।”

निष्कर्ष

श्री राम के अनन्य भक्त है, श्री हनुमान। उनकी भक्ति सभी के लिए अनुकरणीय है। श्री हनुमान को भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है। कहते है, जहाँ भी श्री राम की वन्दना होती है वहाँ श्री हनुमान अवश्य मौजूद रहते हैं।