जानिए दुनिया की सबसे छोटी एथलीट के नाम से जानी जाने वाली पूजा विश्नोई (Pooja Bishnoi) की कहानी : महज 11साल की उम्र में दुनिया में नाम कमाया, अपने सपनों का जिक्र करते हुए पूजा कहती हैं…
दुनिया की सबसे छोटी एथलीट के नाम से जानी जाने वाली पूजा विश्नोई ने छोटी उम्र में वो सब कर दिखाया, जिसे कोई सोच भी नहीं सकता। ये उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि महज 11 साल की उम्र में दुनिया उन्हें जानने लगी है। उन्होंने 12 मिनट 50 सेकेंड में 3 किलोमीटर दौड़कर अपना नाम अंडर 10 वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया है। पूजा के नाम ऐसे कई रिकॉर्ड्स हैं। उनके रिकॉर्ड और मेहनत देख कर विराट कोहली जैसे जाने-माने क्रिकेटर इतने खुश हुए कि उन्होंने खुद आगे आकर पूजा की मदद की। वो एक यंग फिटनेस मॉडल हैं और उन्होंने एमएस धोनी, जसप्रीत बुमराह जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के साथ ऐड भी शूट किया है।
महज तीन साल की उम्र में दिन के 7 घंटे प्रैक्टिस करना जितना मुश्किल किसी भी बच्चे के लिए है, उतना ही पूजा के लिए भी था। मगर अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने हर मुश्किल को पार किया और अपने नाम कई रिकॉर्ड्स दर्ज किए। पूजा का फिलहाल एक ही लक्ष्य है कि वो बेहतर से बेहतर परफॉर्म करे और देश के लिए गोल्ड मेडल जीत सके।
एथलीट के तौर पर करियर बनाने का इंटरेस्ट कहां से आया-- जोधपुर से करीब तीस किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव 'गुड़ा बिश्नोइयान' में रहने वाले मीमा और अशोक विश्नोई की बेटी पूजा विश्नोई ने छोटी उम्र में कमाल कर दिखाया। जिस उम्र में बच्चे ठीक से चलना भी नहीं सीख पाते उस उम्र में पूजा ने एथलीट बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए थे। पूजा बताती हैं, '3 साल की उम्र में, मैं मामा के साथ ग्राउंड पर गई थी। मैं वहां तैयारी कर रहे बच्चों को ध्यान से देख रही थी। अचानक मामा ने मुझे उन बच्चों के साथ रेस लगाने के लिए पूछा, मैंने रेस लगाई, लेकिन मैं हार गई। मामा ने मुझसे कहा, ठीक है, तू एक महीने प्रैक्टिस कर उसके बाद फिर कोशिश करना। मेरे मामा भी एथलीट रहे हैं, लेकिन मेडिकल कारणों के वजह से वो अपना खेल कंटिन्यू नहीं कर पाए। एक महीने की ट्रेनिंग के बाद मैंने फिर उन बच्चों के साथ रेस लगाई और उन्हें हरा दिया। इस तरह मेरे मामा को लगा कि मुझ में वो जज्बा है,अगर मुझे सही से ट्रेनिंग मिली तो मैं उनका अधूरा सपना पूरा कर सकती हूं।'
दिन में 8 घंटे प्रैक्टिस करती हूं--- पूजा फिलहाल राजमाता कृष्ण कुमारी गर्ल्स पब्लिक स्कूल, जोधपुर में पढ़ती हैं। उनका कहना है कि स्कूल और प्रैक्टिस को एक साथ मैनेज करना थोड़ा मुश्किल तो है, लेकिन मैनेज हो जाता है। मैं सारी चीजें सेट रूटीन में करती हूं। सुबह 3 से 7 बजे तक प्रैक्टिस करती हूं, फिर स्कूल जाती हूं। 1 बजे स्कूल से वापस आने के बाद एक-दो घंटे रेस्ट करती हूं और फिर शाम में 4 से 8 बजे तक प्रैक्टिस करती हूं। मैं दिन में कुल 8 घंटे प्रैक्टिस करती हूं। हां, बस परीक्षा के समय में थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन मामा कहते हैं कि एक एथलीट को बस कोशिश करना आना चाहिए। फिर हर मुश्किल आसान हो जाती है।
मामा कहते हैं, 'हारूंगी नहीं तो सीखूंगी कैसे'--- पूजा बताती हैं कि उनकी माइंड ट्रेनिंग के दौरान उन्हें हार-जीत से डील करना सिखाया जाता है। वहां बताया जाता है कि जब हारते हैं तो उससे कैसे डील करना है। खुद को कैसे समझा के रखना है। वहीं जीतते हैं तब भी एक स्पोर्ट्स पर्सन को अपने दिमाग से काम लेना चाहिए। मेरे कोच (मामा) भी हमेशा मुझे बताते हैं कि 'हारूंगी नहीं तो सीखूंगी कैसे'। सीखने के लिए हारना जरूरी होता है और हारने से बहुत सीख मिलती है। संडे को मेरा रेस्ट रहता है। उस दिन मैं अपने भाई के साथ थोड़ा खेलती हूं, वही मेरा बेस्ट फ्रेंड है।
छोटी उम्र से ट्रेनिंग की शुरुआत कर देनी चाहिए-- पूजा के कोच यानी उनके मामा श्रवण बुड़िया बताते हैं कि उन्होंने ये नोटिस किया कि ओलिंपिक में सबसे अधिक मेडल चाइना के लोग जीतते हैं। जब इसके बारे में रिसर्च की तो पता लगा कि वहां बहुत कम उम्र से ही बच्चों को प्रैक्टिस करवाना शुरू कर देते हैं। जबकि हमारे यहां 15-16 साल के बाद किसी एथलीट के लिए लग जाता है। जब उसका काम अच्छा लगता है तब जाकर प्रैक्टिस में डालते हैं। इससे खिलाड़ी को आगे जाकर इंजरी होने की संभावना रहती है। जब मैंने तैयारी शुरू करवाई तो लोगों ने बहुत विरोध किया, कहा कि हाइट रुक जाएगी, शादी में परेशानी आएगी। आज पूजा की लंबाई उसके उम्र के बच्चियों से ज्यादा ही है और ट्रेनिंग का नतीजा ये हुआ कि आज उनके नाम कई रिकॉर्ड्स हैं।
लोगों ने मामा को कहा, 'तुम जो सोच रहे वो नहीं होगा'--- पूजा ने बताया कि छोटी उम्र में मैंने और मामा ने बहुत धक्के खाए हैं। मैं राजस्थान से हूं, हमारे यहां लड़कियों के लिए कई पाबंदियां हैं। मैंने मम्मी को भी हमेशा घूंघट में ही देखा। कोच शुरुआत में जब मुझसे प्रैक्टिस करवाते थे तो लोग आकर कई तरह की सलाह देते थे, कहते थे कि तुम जो सोच रहे हो वो नहीं हो सकता। कई परेशानियां आईं, लेकिन हमने हार नहीं मानी। वो मुझे लगातार प्रैक्टिस करवाते रहे। मैंने 6 साल की उम्र में 48 मिनट में 10 किलोमीटर कवर करने का रिकॉर्ड बनाया था। उस समय मेरे मामा को लगा कि अगर गांव के पास वाला ग्राउंड सही हो जाएगा तो हमें प्रैक्टिस के लिए रोज दूर नहीं जाना पड़ेगा। इससे समय की बचत होगी और वो हम प्रैक्टिस में ज्यादा समय लगा सकेंगे।
अर्जी लेकर एमएलए के पास गए, चॉकलेट देकर वापस भेज दिया-- मैं और मामा दोनों ग्राउंड को ठीक करवाने की गुजारिश लेकर एमएलए के पास गए, लेकिन उन्होंने बातें बनाई और कहा कि हो जाएगा। उन्होंने मुझे एक चॉकलेट दी और हम वापस आ गए। मामा दोबारा भी गए लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया। ये बात मामा को बहुत चुभी थी।
विराट कोहली ने दिया सहारा, अमिताभ जी ने भी जताया भरोसा-- 2019 में मेरे रिकॉर्ड से बारे में जब विराट कोहली सर को पता चला तो उन्होंने मुझे अपने फाउंडेशन के तहत स्कॉलरशिप दी। विराट कोहली बहुत बड़ा सहारा बनकर आए। एथलीट बनने की मेरी चाह और जुनून को देखते हुए उनकी तरफ से 'लाइफटाइम स्कॉलरशिप फॉर ए स्पोर्ट्स पर्सन' ऑफर किया है। फाउंडेशन अब मेरी पढ़ाई से लेकर मेरे न्यूट्रिशन, खाने-पीने, माइंड ट्रेनिंग, ट्रेनिंग, ट्रैवल का पूरा खर्च उठा रहा है। इसके अलावा उनकी तरफ से जोधपुर में प्रैक्टिस करने के लिए फ्लैट भी मिला है। ये स्कॉलरशिप मुझे अमिताभ जी के हाथों से दिलवाई गई थी। उन्होंने भी कहा था कि एक दिन तुम देश के लिए जरूर मेडल लाओगी।
ऐड शूट के दौरान एमएस धोनी दिया गुरुमंत्र-- 2021 में मुझे एक ऐड शूट के दौरान महेंद्र सिंह धोनी और जसप्रीत बुमराह जैसे महान खिलाड़ियों से मिलने, उनके साथ काम करने और उनसे सीखने का मौका मिला। इस दौरान धोनी सर से बातें भी की। मैंने उनसे कई सवाल पूछे। उन्होंने मुझे बताया कि किसी भी सिचुएशन में अपने आप को शांत रखना बहुत जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर हम शांत रहेंगे तभी हमारा दिमाग सही ढंग से काम कर पाएगा और एक स्पोर्ट्स पर्सन के लिए ये सबसे जरूरी चीज होती है।
2024 के यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतना-- अपने सपनों का जिक्र करते हुए पूजा कहती हैं, 'मेरा ध्यान अभी 2024 के यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स पर है। फिलहाल मेरी टाइमिंग 10:49 मिनट में 3 किलोमीटर ( दौड़ने की) है। मैं लगातार प्रैक्टिस में लगी हूं। मेरा पूरी मेहनत इसलिए है कि मैं अपने मामा का सपना साकार कर सकूं और 2024 के यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने देश के लिए गोल्ड जीत सकूं। मुझे ये करना है और मैं ये कर के रहूंगी।'
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