धब्बों को दूर करने के लिए अनुसरण किए जानें वाले सामान्य सिद्धांत तथा सावधानियाँ ।      

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प्राणिज  धब्बे – यह दूध ,रक्त ,अंडे या मांश के रस द्वारा लग जाते हैं।
 
रासायनिक प्रतिकर्मकों का प्रयोग वस्त्र के तंतुओं की प्रकृति तथा उनके रंग के अनुसार करना चाहिए। 

धब्बे –छुड़ाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए –

 1 . प्रयत्न यह करना चाहिय कि धब्बे तभी उतार दिए जाएं जब यह ताजे हों । पुराने होने पर पर धब्बे पक्के हो जाते हैं तथा उतारने कठिन होते हैं । 

2.  रासायनिक प्रतिकर्मकों का प्रयोग वस्त्र के तंतुओं की प्रकृति तथा उनके रंग के अनुसार करना चाहिए । बहुत से बलीचिगं पदार्थ उनी ,रेशमी वस्त्रों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं । उनका रंग तो अकसर ब्लीचिंग से खराब होता है ।

 

(3) यदि दाग उतारने के लिये, विशेषकर ऊनी या रेशमी कपड़ों पर, रासायनिक पदायों का प्रयोग किया जा रहा हो, तो उन्हें नु अवस्था (Dilute form) में रखना चाहिए। सान्द्र पोल (Concentrated solution) को एक बार प्रयोग करने की अपेक्षा तनु घोल को वार-चार प्रयोग करना कम हानिकारक होता है।

 

(4) यदि धब्बे  की प्रकृति की पहचान हो जाए तो उसे उसके लिये उचित विशेष पदार्थों द्वारा उतारना चाहिए लेकिन यदि उसकी पहचान ना हो पाए तो उसे पहले सरल विधियों से उतारने की कोशिश करनी चाहिए ।

(5) यदि धब्बा उतारने के लिए अम्लीय पदार्थों का प्रयोग किया जाता है तो उन्हे क्षारीय पदार्थों से अम्लीय पदार्थों से उदासीन करना जरूरी हैं ।

(6)  धब्बा छूटने के तुरन्त बाद वस्त्र को खुले साफ पानी से बार-बार धो लें ताकि रसायन का कोई अंश उसमें न रह जाय । रसायन को यदि वस्त्र में सूखने दिया जायगा तो वह उसे हानी पहुँचा सकता हैं ।

(7) दि धब्बे को स्पजिंग (Sponging) द्वारा हटाया जा रहा हो तो धब्बे  पर घोलक को गोलाई में बाहर से अन्दर तक लगाना चाहिए। ऐसा करने से धब्बा फैलता नहीं।

धब्बे  कितने प्रकार के होते हैं, वर्णन कीजिए।

जिवस्तुओं से वस्त्रों  पर प्रायः लगते हैं उन वस्तुओं की प्रकृति के अनुसार दाग या धब्बे निम्मलिखित प्रकार के हो सकते हैं इसलिए इन्हे उतरते समय ऊष्मा का प्रयोग नहीं होना चाहिए , वरना यह पक्के हो जाते हैं।

  1. प्राणिज  धब्बे – यह दूध ,रक्त ,अंडे या मांश के रस द्वारा लग जाते हैं। इनमे प्रोटीन पढ़ार्थ होते हैं इसलिये इन्हे उतारते समय ऊष्मा का प्रयोग नहीं होना चाहिए ,वरना यह पक्के हो जाते हैं ।
  2. वानस्पतिक धब्बे – यह चाय , कॉफी ,कोको, फलों के रस या शराब से लगने वाले धब्बे  होते है। इनकी परीकृति अम्लीय होती हैं,  इसलिये इन्हें उतारने के लिये क्षारीय पदायों का प्रयोग करना पड़ता  हैं।

  1. वसायुक्त धब्बे – यह धब्बे केवल चिकनाई के हो सकते है, जैसे-घी, मक्खन, तेल आदि के या चिकनाई युक्त रंगदार पढ़ार्थों के जैसे-हल्दी वाली सब्जी या पेंट अथया वार्निश के। इन्हें उतारने के लिये पहले  कोई वसा विलायक या अवशोषक प्रयोग किया जाता है तथा फिर रंग को हटाया जाता है।

   (4) खनिज धब्बे (Mineral Stains)-काली स्याही, लोहे के जंग तथा कुछ दवाइयों द्वारा लगने वाले धब्बे इस वर्ग में सम्मिलित हैं। यह पदार्थ किसी धातु तया रग के मेल से बने होते हैं। इसलिये इनके धब्बों को उतारने के लिये पहले किसी अम्तीय पदार्थ का प्रयोग किया जाता है जो धातु पर क्रिया करे और फिर क्षारीय पदार्थ लगाते हैं जिससे अमल  उदासीन हो जाए तथा रंग का प्रभाव भी दूर हो।