मैथिली में इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है ।
महाकवि नागार्जुन का संक्षिप्त जीवन -परिचय ,रचनाओं ,काव्य गत विशेषताओं और भाषा -शैली .
1. जीवन -परिचय - जनवादी कवि नागार्जुन का वास्त विक नाम वैद्य नाथ मिश्र था । उनका जन्म बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के सतलखा नामक गावं में सन् 1911 में हुआ । अल्प आयु में इनकी माँ का देहांत हो गया । एक रुढ़ि वादी ब्राह्मण परिवार में इनका लालन -पालन हुआ । इनकी पारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत विधालय में हुई । सन् 1936 में श्री लंका में जाकर इन्होंने बोद्ध धर्म में दीक्षा ली । राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेनें के कारण अनेक बार उनको जैल भी जाना पड़ा । संस्कृत ,पालि ,प्राकृत तथा हिंदी सभी भाषाओं का इन्होंने गहरा अध्ययन किया । वैसे ये स्वभाव से फक्कर ,मस्त मौला तथा अपने मित्रों में नाग बाबा के नाम से जानें जाते हैं । सन् 1998 में इनका देहांत हो गया ।
2. प्रमुख रवनाएँ- [1 ] काव्य - युग धारा ,प्यासी पथराई आँखे ,सतरंगे पंखों वाली ,प्यासी परछाई ,तालाब की मछलियाँ ,हजार हजार बाहों वाली ,तुमने कहा था ,खून और शोले , चना जोर गरम तथा भस्मा कूर [खंड काव्य ]
[2] उपन्यास -वरुण के बेटे ,हीरक जयंती ,बलचनमा रतिनाथ की चाची ,नई पौध ,कुभही पाक और उग्र तारा ।
मैथिली में इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है ।
3. काव्यगत विशेषताएँ- नागार्जुन एक जनवादी कवि हैं ,अतः इनका काव्य मानव -जीवन से संबद्ध हैं । इनका काव्य वैविधयपूर्ण हैं । इनकी कुछ कविताओं में मानव मन की रागात्मक अनुभूति का सुन्दर वर्णन है। कुछ रचनाओं में इन्होनें सामाजिक विषमताओं तथा राजनीतिक पर व्यवंगय किया हैं । इस प्रकार प्रग्रतिवादी विचारधारा के साथ -साथ प्रेम और सौदर्य का चित्रण भी इनके काव्य में हुआ है । अन्यत्र ये प्रकृति वर्णन में भी रुचि लेते हुए दिखाई देते हैं। इनके समूचे देव काव्य में देश -प्रेम की भावना विध्यमान है। पुनः नागार्जुन ने वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए समाज की रुड़ियों और जड़ परंपराओं पर भी प्रहार किया है ।
4. भाषा -शैली - नागार्जुन की भाषा खड़ी बोली है, लेकिन इन्होंने खड़ी बोली के बोलचाल रूप को ही अपनाया है। जनवादी कवि होने के कारण इनकी भाषा में ग्रामीण और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। कुछ स्थलों पर अंग्रेजी शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है । इन्होंने अपनी कविताओं में श्रृंगार, वीर तया करुण तीनों रसों को समाविष्ट किया है, इससे भाषा में भी सरलता, कोमलता तथा कठोरता जगई है। जहां आक्रोश तथा व्यात्मकता का पुर है, का बहुत कम प्रयोग हुआ है। शब्द की तीनों शक्तियों-अभिधा, लवणा तथा व्यंजना का सार्थक प्रयोग हुजा है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कुछ स्थलों पर प्रतीक विधान तया विव योजना भी देखी जा सकती है।