महा कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला  Suryakant Tripathi Nirala.

सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला का आधुनिक हिंदी कवियों में सर्वश्रेष्ट स्थान हैं ।
 
निराला जी ने आधुनिक हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की है ।

महा कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला संक्षिप्त  जीवन -परिचय , काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा -शैली . 

 1 . जीवन -परिचय - सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला का आधुनिक हिंदी कवियों में सर्वश्रेष्ट स्थान हैं । वे वास्तव में ही निराला थे । निराला जी ने आधुनिक हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की है । उनका जन्म बंगाल के महिषा दल नामक रियासत में मेदिनीपुर नामक स्थान पर सन 1899 में हुआ था । उनके पिता इस राज्य में एक प्रतिषिठट पद पर कार्य करते थे । उनका बचपन यहीं व्यवतीत हुआ था । निराला जी की आरंभिक शिक्षा महिषा दल में संपन हुई । संस्कृत , बांग्ला ,और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन उन्होनें घर पए ही किया ।

दर्शन और संगीत में उनकी गहरी रुचि थी । निराला जी का जीवन आंरभ से लेकर अंत तक संघर्षों से परि पूर्ण रहा । शैशवावस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया । विवाह के कुछ वर्षों बाद उनकी पत्नी चल बसी । तत्पश्चात पिता ,चाचा तथा चचेरे भाई भी चल बसे । पुत्री सरोज की मृत्यु से उनका दिल विदीर्ण हो गया । इस प्रकार संघर्षों से जूझते -जूझते 1961  में  उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई .

2. प्रमुख रचनायें - निराला जी महान साहित्यकार  थे । उन्होनें साहित्य की विभिन विधाओं पर सफलता पूर्वक लेखनी चलाई । 

उनकी प्रमुख रचनायें निम्न लिखित हैं -

काव्य - अनामिका ,परिमल ,गितिक तुलसीदास ,अणिमा कुकुरमुता ,बेला अर्चना ,आराधना ,गितागूँज ,नए पते ,जूही की कली  आदि । 

उपन्यास - अप्सरा ,अलका ,प्रभावती ,निरुपमा ,चमेली  आदि । 

जीवन -साहित्य - महाराणा -प्रताप , प्रहलाद , धुरव ,शकुंतला ,भीष्म आदि । 

आलोचना और निबंध - पद्म -प्रबंध , प्रबंध -प्रतिमा,प्रबंध -परिचय आदि । 

3 . काव्य गत विशेषताएं - महाकवि निराला जी के मन मे दीन -दुखियों  के प्रति अत्यधिक सहानुभूति थी । संसार में व्याप्त अव्यवस्था तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को देखकर निराला जी बहुत दुखी होते थे । उनकी भिक्षुक और तोड़ती पथर नामक कविता उनके मानवता वादी विचारों को प्रकट करती हैं । 

निराला जी ने अपने काव्य में एक और दीन -दुखियों के जीवन का मार्मिक चित्रण किया तो दूसरी और शोषकों के प्रति आक्रोश से भारी आवाज बुलंद की -

                                           अबे सुन बे गुलाब ,भूल मत जो पाई खुशबू ,रंगों -आब

                                          खून चूसा  खाद का तूने अशिष्ट , डाल पर इत राता है कैपिटलिस्ट । 

4 भाषा -शैली - निराला जी ने अपने काव्य में ततसंम प्रधान शुद्ध साहितयिक भाषा का प्रयोग किया है । उन्होंने कोमलकांत पधावली के प्रयोग से काव्य -भाषा को खूब सजाया है । उनके काव्य में संगीतात्मक के सभी अनिवार्य तत्व उपलबद्ध है । 

निराला जी का सम्पूर्ण काव्य मुक्त छंद में रचित हैं । मुक्त छंद उनकी काव्य की बहुत बड़ी देन हैं । निशचय ही वे आधुनिक हिंदी साहित्य के महान एवं निराले कवि थे ।