खसरा रोग के लक्षण, बचाव के उपाय तथा उपचार का वर्णन।
खसरा रोग अत्यंत संचारी व तेजी से फैलने वाला है तथा वायरस के कारण फैलता हैं । इसे चेचक की तरह भयानक माना गया है जो बड़ों के लिए तो कष्टकारी है परंतु 2 से 5 वर्ष के बच्चों के लिए घातक है जिसके फलस्वरूप आँख ,कान व गुर्दे खराब हो जाते हैं। इस रोग के वायरस नाक से निकले स्राव में तथा त्वचा की पपड़ी में पाए जातें हैं ।
उद्भवन काल (Incubation Period) : इस रोग के लक्षण प्रकट होने में 10 से 14 दिन लग जाते हैं तथा संक्रमण काले दाने निकलने के 4 दिन पूर्व व 5 दिन बाद तक बना रहता है।
कारण (Reason) :
(ⅰ) यह रोग एक विशेष वायरस रोगजनक जीवाणु द्वारा फैलता है।
(ii) यह रोग स्पर्श या संपर्क से अधिक होता है।
(iii) रोगी के शरीर से निकली पपड़ी आदि को यदि जलाया या ठीक से नष्ट न किया गया तो यह भी इस रोग का कारण बनती है और रोग को फैलाती है।
प्रतिरक्षण (Immunization) : खसरा के जीवित वायरस के द्वारा वैक्सीन तैयार किया गया हैं। इस टीके को 9 महीने से एक वर्ष की आयु पर लगवाया जाता है। इसके पश्चात् संभवतः रोग होने की अंशका नहीं रहती । कमजोर बच्चों को स्थाई रोग क्षमता उत्पन्न करने के लिए इम्यूनोग्लोबिन का टीका लगाया जाता हैं।
लक्षण (Symptom):
(1) जुकाम, खांसी, ज्वर, नाक व आँख से पानी आने लगता हैं ।
(2) सामान्यतः यह रोग ठंड, सूखी खांसी एवं ज्वर के साथ आता हैं ।
(3) ऐसे लक्षण दिखाई देने के तीसरे या चौथे दिन मुंह, गला व कान के आस –पास दाने निकल आते हैं ,तथा धीरे –धीरे ये दानें पूरे शरीर पर फैल जाते है।
(4) आँखें सूज जाती हैं, गले व नाक में भी सूजन महसूस होती है तथा शरीर में कमजोरी आ जाती है ।
(5) प्रारंभ में ये दाने हल्के सफेद रंग के होते हैं और कुछ समय बाद लाल हो जाते हैं।
(6) एक दो दिन तक रोग की तीव्रता बनी रहती है।
(7) दानों में पस नहीं पड़ता है व तीन दिन के बाद वे सूखने लगते हैं।
(8) इनका रंग भूरा होकर ये दाने काले पड़ जाते हैं और सप्ताह भर में इनकी पपड़ी उतर जाती हैं ज्वर घटने लगता है ।
(9) रोग के बिगड़ने पर निमोनिया हो जाता है तथा जानलेवा भी हो सकता हैं।
(10) उपरोक्त स्थिति में बच्चों को दौरे (Convulsion) भी पड़ने लगते हैं।
बचाव के उपाय ( Preventive Measure):
- रोगग्रस्त बच्चे को स्कूल से छुट्टी दिला देनी चाहिए व उसे लगभग तीन सप्ताह तक स्कूल नहीं भेजना चाहिए।
- बच्चों को रोग से बचाने के लिए प्रतिरक्षण टीके लगवाए जाने चाहिए।
- घर में 8-10 दिनों तक रोगी को पृथक् रूप से रखना चाहिए।
- स्वस्थ बच्चों को दूर रखत्ता चाहिए व उन्हें बचाव की दवाई भी दिलवा देनी चाहिए।
- रोगी द्वारा काम में ली गईं वस्तुएं, बर्तन, वस्त्र, बिस्तर आदि को अलग रखना चाहिए ।
- घर व रोगी के कमरे को धोकर निसंक्रामक पदार्थ का छिड़काव करना चाहिए।
- रोगी के शरीर के दानों से उतरी पपड़ियों की भूसी को जमीन में दबा देना चाहिए।
उपचार (Treatment):
- रोगी को यदि ज्वर अधिक है. तो उसे कम करने के लिए पैरासीटामोल के उपयोग व माथे पर ठंडे पानी की पट्टियों को रखकर कर कम करें।
- रोगी को ठंड से बचाकर रखे ।
- रोगी को तेज रोशनी से बचाएं ।
- रोगी के शरीर को स्पंज कर उसे साफ रखे व खांसी कम करने के लिए किसी अच्छे कफ सिरप का प्रयोग करें।