जानें पोलियो कैसे फैलता है। इसके लक्षण तथा रोकथाम के उपाय कौन-से हैं?
यह विषाणुओं (Virus) द्वारा फैलने वाला रोग है जो प्रायः बच्चों को होता है तथा उनके तांत्रिक संस्थान ( Nervous System) को प्रभावित करता है। वह उनमें अगघात (Paralysis) उत्पन्न कर सकता है जोकी अधिकतर टाँगों का तथा कभी-कभी बाजुओं का भी होता है। साधारणतः पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे इससे प्रभावित होतें हैं।
संक्रमण कारक ( Infectious Agent)-रोग का कारण पोलियो वायरस है जो रोगी के गले व नाक के विसर्जनों में और उसके मल तथा मूत्र में पाई जाती है।
उद्भवन काल (Incubation Period)-इस रोग का उद्भवन काल आमतौर पर 7 से 12 दिन का होता है लेकिन कई बार 30 लम्बा हो सकता है।
रोग का प्रसार (Mode of Trans mission)-स्वस्थ बच्चे के शरीर में रोग की वायरस दूषित जल ,दूध अथवा भोजन ग्रहण करने से प्रवेश करती है। रोग के प्रसार में रोग वाहक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। उनके मल –मूत्र से रोगाणु दूध , भोजन व पानी तक पहुंचते हैं। मक्खियों भी रोग फैलाने में सहायक बनती हैं।
रोग के लक्षण (Symptoms)-रोग के लक्षण दो अवस्थाओं में प्रकट होते हैं-
(1) Pre-paralytic Stage-रोग तेज़ ज्वर, सिरदर्द, ठण्ड लगने तथा बदन दर्द से शुरू होता है । बच्चे को नींद आती रहती है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसकी गर्दन अकड़ने लगती है।
(2) Paralytic Stage-पहली अवस्था के बाद 2-3 दिन ऐसे आते हैं जब रोगी कुछ स्वच्छ महसूस करता है । फिर दूसरी अवस्था आरम्भ होती है। पीठ से आगे झुकते समय भीषण दर्द होता है। टाँगें व बाजू ढीले पड़ जाते हैं । रोगी उन्हे सीधा करने का प्रयत्न नहीं करता। कई बार मुँह की या आँख की माँसपेशियाँ प्रभावित हो जाएं तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती हैं।
बचाव तया नियंत्रण (Prevention and Control)-रोगी की देखभाल के लिये निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिएँ-
(1) पोलियों का रोग हो जाने की जानकारी मिलते ही स्वास्थ्य अधिकारी को सूचित करें ।
(2) रोगी को अलग कर दिया जाए। उसे पूरा आराम दिया जाए तथा उचित दवा- दारू की जाए ।
(3) बीमार शिशु की प्रभावित माँसपेशियों को गर्म पानी से सेक दें तथा उसके बाद किसी अच्छे तेल से मालिश करें ।
(4) क्योंकि पोलियो की वायरस रोगी के मल-मूत्र में पाई जाती है इसलिये इसका निवारण बहुत द्यानपूर्वक करना चाहिए। या तो इसे जला दिया जाये या ठिकाने लगाने से पूर्व विसंक्रमित किया जाए।
(5) महामारी के दौरान पीने के पानी के स्रोत विसंक्रमित किये जायें। घर में जल उबाल कर प्रयोग करें।
(6) महामारी के दौरान बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उन्हें अधिक शारीरिक थकावट से बचाएं।
(7) कच्चे खाये जाने वाले फल-सब्जियाँ धोने के बाद लाल दवाई के हल्के घोल से विसंक्रमित करें तथा केवल दूध को ही प्रयोग में लायें।
(8) मक्खियों से बचने के सभी उपाय करें।
(9) पोलियो से बचाव के लिए निशिचत तालिका अनुसार बच्चों को ओरल पॉलियों वैक्सीन की छः खुराकें अवश्य दिलवाएं।