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जानें संक्रामक रोगों के सामान्य लक्षण एवं इनकी मुख्य विशेषताएं एवं अवस्थाएं।

संक्रामक रोगों पर जल्दी से जल्दी नियंत्रण पाने व उनसे बचाव करने के लिए अनेक प्रकार से हैं:
 
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संक्रामक रोगों से बचाव के लिए स्थानीय ,राष्टीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक उपाए किए जातें हैं , क्योंकि ये रोग तेजी सेफैलते हैं।

 

 

संक्रामक रोगों के निम्न लक्षण है:

1. कंपकंपी महसूस होना (Shivering): संक्रामक रोग के शुरू होने का एक लक्षण कंपकपी होना है और रोगी को अधिक ठंड महसूस होना है।

2. तापक्रम का बढ़‌ना (Rise in Temperature): बुखार तथा तापक्रम का तेजी से बढ़ना भी संक्रामक रोगों  का लक्षण है।

3. गले में खराश तथा दर्द: गले में खराश तथा गले में दर्द होना भी संक्रामक रोग होने का एक लक्षण हैं ।

4. त्वचा पर प्रभाव : त्वचा पर भी तापमान बढ़ने का प्रभाव पड़ता है। इससे त्वचा लाल हो जाती है तथा कभी –कभी त्वचा पर लाल-लाल दाने भी निकल आते हैं।

5. शरीर में दर्द : शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होना भी संक्रामक रोग का लक्षण है।

6. सिर में असहनीय दर्द : सिर में असहनीय दर्द होना।

7. पाचन क्रिया कमजोर होना- कभी-कभी पाचन शक्ति का कमजोर होना भी संक्रामक रोग उत्पन्न होने का लक्षण हैं।

 

संक्रामक रोगों की विशेषताएं (Main Characteristics of Communicable Diseases)-

वैसे तो सभी संक्रामक रोगों के लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं, फिर भी उनमें कुछ सामान्य विशेषताएं एक जैसी होती है, जो निम्न प्रकार से हैं -

1. प्रत्येक संक्रामक रोग एक सीमित काल तक रहता है।

2. कुछ संक्रामक रोग व्यक्ति के जीवन काल में एक ही बार होते हैं।

3. संक्रामक रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लग जाते हैं।

संक्रामक रोग की  अवस्थाएं (stages of Communicable Diseases)-  संक्रामक रोग के किटाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के बाद रोग फैलने व ठीक होने की निम्न चार अवस्थाएं होती है –

  1. उद्भवन अवधि
  2. आक्रमण अवधि
  3. क्षीण अवधि
  4. स्वाशतय लाभ अवधि .

जाने संक्रामक रोगों की रोकयाम तथा नियंत्रण करने के निम्न उपाय करें।

 

संक्रामक रोगों से बचाव के लिए स्थानीय ,राष्टीय  तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक उपाए किए जातें हैं , क्योंकि ये रोग तेजी से फैलते हैं। समय पर यदि इनकी रोकथाम तथा नियंत्रण पर ध्यान न दिया जाए तो ये रोग पहले पास –पड़ोस ,फिर नगर फिर सारी स्थानीय मानव जाति को अपनी चपेट में ले लेते हैं। कभी-कभी तो ये रोग इतना भयंकर रूप धारण कर लेता है कि  पूरे समाज तथा देश के लिए समस्या वन जाते हैं, जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में धनराशि तथा कुशल व निपुण  कार्यकर्ताओं तथा डाक्टरों की आवश्यकता पड़ती है।

इसका एक उदाहरण है कि 1994 में सूरत में फैले प्लेग का है । इस रोग ने लगभग  पूरे भारत को अपनी चपेट में ले लिया था, जिसके कारण इसको रोकने के लिए राष्टीय स्तर पर प्रयत्न करने के साथ-साथ  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके लिए सहयोग दिया गया, ताकि इस रोग पर शीघ्रता से नियत्रण पाया जा सके । संक्रामक रोगों पर जल्दी से जल्दी नियंत्रण पाने व उनसे बचाव करने के लिए अनेक प्रकार से हैं:

1. पीने के पानी का निरीक्षण करना (Checking of drinking water)

2. खाना खाने से पहले हाथ धोना (Washing of hands before dining)

3. फल तथा सब्जियों का घोना (Washing of fruits and vegetables)

4. भोजन का निरीक्षण (Checking of food)

5. पेय पदार्थों का निरीक्षण (Checking of cold drinks and beverages) 5

6. स्वरक्षा (Self-defence)

7. वातावरण की स्वच्छता (Environment cleanliness)

8. सार्वजनिक मूत्रालयों और शौचालयों की उचित सफाई

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