देश में वायु प्रदूषण जानलेवा, भारत के अलग-अलग जिलों की स्थिति पर पहली बार सामने आया अध्ययन
मुंबई के अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पहली बार देश के अलग-अलग जिलों की स्थिति को कवर करते हुए यह अध्ययन किया है। इसमें काफी महीन कण पीएम 2.5 के स्तर के साथ-साथ आसपास के अन्य कारणों को भी शामिल किया है।
वायु प्रदूषण की वजह से भारतीयों में जान का जोखिम बढ़ रहा है। एक अध्ययन में पता चला है कि जहरीली हवा की वजह से नवजात शिशुओं से लेकर वयस्कों तक की सेहत पर संकट खड़ा हुआ है। जिन घरों में अलग से रसोई नहीं है, वहां यह स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है।
मुंबई के अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पहली बार देश के अलग-अलग जिलों की स्थिति को कवर करते हुए यह अध्ययन किया है।
इसमें काफी महीन कण पीएम 2.5 के स्तर के साथ-साथ आसपास के अन्य कारणों को भी शामिल किया है, जिसके लिए राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (पांचवें दौर) और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) से डाटा लिया गया। इसमें पता चला कि जहरीली हवा की वजह से नवजात शिशुओं में जोखिम करीब 86 फीसदी तक है।
वहीं, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 100 से लेकर 120 और वयस्कों में यह जोखिम 13 फीसदी तक पाया गया। अध्ययन में पाया कि जिन घरों में अलग रसोई नहीं है, उनमें नवजात शिशुओं और वयस्कों में मृत्यु की आशंका अधिक है। जर्नल जियोहेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि देश के जिन जिलों में पीएम 2.5 का स्तर काफी ज्यादा है, वहां नवजात शिशुओं और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में जोखिम क्रमशः दो गुना या फिर उससे कहीं अधिक है।
पीएम 2.5 का स्तर उत्तर भारत में सबसे ज्यादा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह अध्ययन पीएम 2.5 और मृत्यु दर के साथ एक मजबूत संबंध प्रदर्शित कर रहा है। जब घरेलू वायु प्रदूषण को परिवेशी प्रदूषण के साथ जोड़कर देखा जाता है तो यह संबंध और भी बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि पीएम 2.5 का स्तर आम तौर पर उत्तर भारत में सबसे ज्यादा है।
यहां फसल अवशेषों को जलाने से जुड़ी कृषि पद्धतियां और औद्योगिक केंद्रों और विनिर्माण केंद्रों से उत्सर्जन शामिल हैं। इसके अलावा, मैदान के मध्य और निचले क्षेत्रों और मध्य भारत के जिलों में स्वच्छ ईंधन और घरों में अलग रसोई का उपयोग बहुत कम है।
उत्सर्जन कम करने के लिए बने नीति
शोधकर्ताओं के मुताबिक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में फसल अवशेष और पशुओं के गोबर के अलावा अशुद्ध ईंधन के रूप में जलाऊ लकड़ी उपलब्ध है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में नीति निर्माताओं को मानव जनित पीएम 2.5 उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि इसे निचले स्तर तक पहुंचा कर बीमारियों के बोझ में कमी लाई जा सके