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मेरा प्रिय लेखक (प्रेमचन्द) का जीवन -परिचय , रचनाएं ,भाषा ,उपंसहार ।

उपन्यासों की भांति कहानियों में भी जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है।
 
प्रेमचंद
हिंदी साहित्य सभाज का दर्पण है और लेखक युगद्रष्टा होता है।

                         

हिंदी साहित्य सभाज का दर्पण है और लेखक युगद्रष्टा होता है। वह अपने आस-पास की परिस्थितियों से प्रेरित होकर साहित्य की   रचना करता है। महान् लेखक ही महान् साहित्य की रचना कर सकते हैं। श्रेष्ट साहित्य का मूल उद्देश्य सत्यम शिवम सुंदरम    है। प्रेमचंद महान् कथाकार है। उन्होंने अपने युग की परिस्थितियों को समझा, परखा और उन पर गहन चिंतन  किया । अपने चिंतन   के प्रकाश में उन्होंने चुगीन जीवन को  यथार्थ  रूप में अभिव्यक्त करने के लिए उपन्यास, कहानी, नाटक व निबंध साहित्य की रचना की है। उनके उपन्यास इतने प्रसिद्ध हुए कि उन्हें उपन्यास सम्राट कहा जाता है। प्रत्येक आलोचक ने भी उनकें विषय में   मत व्यक्त किया है। हिन्दी उपन्यास व कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन एक शुभ वरदान से कम महत्व पूर्ण नहीं माना जाता हैं । 

स्वगीय प्रेमचन्द का जन्म उत्तर प्रदेश में बनारस के समीप लमही नामक एक छोटे से गाँव में सन् 1880 में हुआ था । वे अभी  छोटे ही थे कि उनकी माता का देहान्त हो गया। पिता ने दूसरा विवाह करने की गलती कर ली। फलस्वरू प से  घर की परि सिथती पहले से भी  विकट हो गई। प्रेमचन्द का असली नाम धनपतराय था किन्तु इनके चाचा इन्हें नवावराय कहते  थे । इन्हें स्कूल की पढ़ाई   के समय अनेक कठिनाइ‌यों का सामना करना पड़ा था। अ भी पढ़ ही रहे थे कि पिता का स्वर्गवास हो   गया । फलस्वरूप सौतेली माँ और उसके बच्चों का दायित्व भी इन्हीं पर जा पड़ा। स्कूल की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी हुई। बाद में एक  वकील के बेटे के ट्यूशन पढ़ाने  का काम करने लगे। पाँच रुपए मासिक वेतन के लिए उन्हें कई मील पैदल चलना पड़ता था । 


मैट्रिक की परीक्षा के बाद इन्टरमीडिएट में प्रवेश ले लिया किन्तु गणित की अनिवार्यता के कारण परीक्षा पास न कर सके । एक दयालु हेडमास्टर की कृपा से स्कूल में 18 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापक हो गए। बाद में  B.a. तक की पढ़ाई की तथा   स्कूल के निरीक्षक के पद तक पहुँच गए किन्तु राष्ट्रीय वेतना व देश-प्रेम के कारण नौकरी छोड़नी  पड़ी । प्रेस लगाई , पत्र -पत्रिकाएं  प्रकाशित की, कहानी लेखक के रूप में फिल्मों में भी रहे किन्तु कहीं स्थायित्व नहीं मिला। दो बा र विवाह किया।  पहली पत्नी से   निर्वाह न होने के कारण अलग हो गए। उस युग में विधवा शिवानी से विवाह करके भारतीय समाज में एक नया आदर्श स्थापित  किया तथा दो पुत्रों के पिता बने। सन् 1936 में इस महान् लेखक व साहित्यकार का देहान्त हो गया । 

प्रेमचन्द पहले नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखा करते थे किन्तु 'सोजे वतन' नामक कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त  कर लेने के पश्चात् प्रेमचन्द के नाम से हिन्दी में लिखने लगे। इसी नाम से हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हो गए  और इन्होंने    दर्जन भर उपन्यास और  लगभग तीन-सौ कहानियों लिखीं। 'प्रतिज्ञा', 'वरदान', 'सेवासदन', 'निर्मला', 'गवन', (अधूरी) इनके प्रमुख उपन्यास हैं। प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में गाँधी युग के समूचे जीवन  और घटनाक्रम को कलात्मक ढंग से   अभिव्यक्त किया है। इनके उपन्यासों का प्रमुख स्वर आदर्शवादी रहा है। कुछ आलोचक इन्हें आदर्शोंनमुखी यथार्थवादी मानतें हैं । 

गोदान' और 'मंगलसूत्र' में लगता है कि ये समाजवादी वन गए थे। इन्होंने हिन्दी उपन्यास को कला और विषय -वस्तु  की दृष्टि से नई दिशा दी हैं ।  उपन्यास को कल्पना-लोक से निकालकर यथार्थ जीवन से जोड़ दिया प्रेमचन्द की कहानियाँ 'मानसरोवर' नामक आठ संग्रहों में संकलित हैं। पंच परमेश्वर ,  ईद गाह , आत्माराम , बूढ़ी काकी ,पूस  की रात, बड़े भाई साहब, कफन, शंतरज के खिलाड़ी, बड़े घर की बेटी आदि प्रतिनिधि  कहानियाँ हैं । उपन्यासों की भांति कहानियों में भी जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण किया गया है। आरम्भिक कहानियाँ  अदर्शोन्मुखी हैं । उपन्यास तथा कहानियों के  अतिरिक्त प्रेमचन्द ने दो पाठ्य नाटकों की भी रचना की है। समय-समय पर ये साहित्य, जीवन ,समाज आदि से संबंध रखने वाले     विचार प्रधान निबन्ध भी रचते रहे हैं। इनके निबन्धों में विषय की गम्भीरता दृष्टव्य है। 

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