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श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन -परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएं .

 सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे। उन्होंने कविता  के  अतिरिक्त अन्य हिंदी विधाओं पर भी सफलता पूर्वक कलम चलाई हैं ।
 
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श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नई कविता में महत्वपूर्ण स्थान हैं ।

 1. जीवन -परिचय -  श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नई कविता में महत्वपूर्ण स्थान हैं । उनका जन्म उतर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ । उन्होंने इलाहाबाद विश्व विधालय से एम ० ए ० की परीक्षा उतिर्न की ।  इसके बाद उन्होनें अध्यापन कार्य किया । किन्तु कुछ दिनों बाद वहाँ से त्याग -पत्र देकर आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में काम करने लगे । उन्होंने दिनमान में उपसंपादक तथा बच्चों की पत्रिका 'पराग' में संपादक के रूप में कार्य किया  था। उन्हें खूँटियों पर टंगे लोग ,  काव्य -संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन् 1983 में उनका निधन हो गया था। 

2. प्रमुख रचनाएँ-    सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे। उन्होंने कविता  के  अतिरिक्त अन्य हिंदी विधाओं पर भी सफलता पूर्वक कलम चलाई हैं । उनकी प्रमुख रचनायें इस प्रकार हैं -    

(क) कविता-संग्रह-    काट की घंटियों, खुटियों पर टंगे लोग', 'जंगल का दर्द', 'कुआनो नदी' ।

(ख) उपन्यास-    पागल कुत्तों का  मसीहा , 'सोया हुआ जल'।

(ग) बाल  साहित्य-   लाख की नाक', 'बत्ता का जूता', ' भौं भौं खौं खौं । 

(घ) कहानी संग्रह -    लड़ाई।

(३) नाटक-  बकरी'।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-    सर्वेश्वर दयाल की पहचान मध्यवर्गीय आकांक्षाओं के लेखक के रूप में की जाती हैं ।  उन्होनें मध्यवर्गीय जीवन की महत्त्वाकांक्षाओँ ,सपनों ,संघर्ष , हताशा और  कुंठा का चित्रण करके   उनके साहित्य में सजीव रूप में मिलता है। सक्सेना जी के लेखन में बेबाक सच सर्वत्र देखा जा सकता हैं । उनकी अभिव्यक्ति में सहजता और स्वाभाविकता है।

4. भाषा-शैली-    सर्वेश्वर दयाल के गद्य साहित्य की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक, भाव पूर्ण तथा प्रवाहमयी है । मानवीय करुणा की दिव्य चमक' इनका फादर कामिल बुल्के से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने जीवन से संबधित कुछ अंतरंग प्रसंगों को उजागर किया हैं ।सक्सेना जी ने अपनी रचना में वात्सल्य, आकृति, साक्षी, वृत्त, यातना आदि तत्सम शब्दों के साथ -साथ महसूस ,जहर, कब्र आदि उर्दू के शब्दों का भी सफल प्रयोग किया है। प्रस्तुत संस्मरण में तो उन्होनें विवरणात्मक शैली के साथ -साथ भावात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है। इस पाठ में उन्होंने फादर कामिल बुल्के के बुल्के के जीवन से संबधित अपनी यादों को अत्यंत सजीवता से प्रस्तुत किया है।
 

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