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ब्रजभाषा साहित्य: ब्रजभाषा साहित्य का विकास.

ब्रजभाषा भारतीय साहित्य की एक प्रमुख काव्यभाषा रही है.
 
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उत्तर भारतीय संगीत में ब्रजभाषा का गहरा प्रभाव पड़ा।

ब्रजभाषा भारतीय साहित्य की एक प्रमुख काव्यभाषा रही है, जिसका उद्भव मध्यदेश में हुआ और जिसने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक ब्रजभाषा भारत की मुख्य साहित्यिक भाषा बनी रही। यह भाषा अपने शुद्ध रूप में आज भी उत्तर प्रदेश के मथुरा, आगरा, धौलपुर, करौली, और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे ‘केंद्रीय ब्रजभाषा’ भी कहा जाता है।

ब्रजभाषा साहित्य का विकास

हिन्दी काव्य के प्रारंभिक चरण में ब्रजभाषा का महत्वपूर्ण स्थान रहा। भक्तिकाल और रीतिकाल के अधिकांश कवियों ने अपनी रचनाएँ इसी भाषा में लिखीं। भक्तिकाल में सूरदास, मीरा, रसखान, रहीम, और तुलसीदास जैसे कवियों ने ब्रजभाषा को एक विशिष्ट काव्यशैली प्रदान की। रीतिकाल में बिहारी, केशवदास, और घनानंद जैसे कवियों ने इसे श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

ब्रजभाषा ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए पूरे भारत में लोकप्रियता प्राप्त की। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार जैसे प्रदेशों में भी ब्रजभाषा में कविता लिखी गई। महाराष्ट्र में 13वीं शताब्दी के महानुभाव संप्रदाय के संत कवियों ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया। गुजरात और काठियावाड़ में भी ब्रजभाषा काव्य की पाठशालाएँ स्थापित की गईं। बंगाल और असम में इसे ‘ब्रजबुलि’ नाम से जाना गया।

भक्ति और ब्रजभाषा

ब्रजभाषा में रचित साहित्य का एक प्रमुख पक्ष कृष्ण भक्ति रहा। वल्लभ संप्रदाय के प्रभाव में कृष्ण संबंधी काव्य ब्रजभाषा में ही लिखा जाने लगा। सूरदास ने अपनी प्रसिद्ध ‘सूरसागर’ रचना में कृष्ण के बाल लीलाओं और प्रेम लीलाओं का सुंदर चित्रण किया। इसी प्रकार, रसखान जैसे मुस्लिम कवि ने भी कृष्ण-भक्ति को अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी।

रीतिकाल और ब्रजभाषा

रीतिकाल में ब्रजभाषा ने श्रृंगार रस प्रधान काव्य का रूप लिया। बिहारी के दोहे, केशवदास के कवित्त और घनानंद की प्रेम व्यंजना ने ब्रजभाषा को साहित्यिक ऊँचाइयों तक पहुँचाया। इस काल में नायिका-भेद, नख-शिख वर्णन और प्रेम की विविध भावनाओं का चित्रण प्रमुखता से हुआ।

संगीत और ब्रजभाषा

उत्तर भारतीय संगीत में ब्रजभाषा का गहरा प्रभाव पड़ा। ध्रुपद, धमार, ख्याल, ठुमरी और दादरा जैसे गायन शैलियों में ब्रजभाषा की प्रधानता रही। हिन्दू और मुस्लिम संगीतकारों ने इसे समान रूप से अपनाया।

आधुनिक काल में ब्रजभाषा

19वीं शताब्दी तक ब्रजभाषा काव्यभाषा के रूप में प्रमुख बनी रही। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अपनी मुकरियों और अन्य रचनाओं में ब्रजभाषा का उपयोग किया। अंग्रेज अधिकारी मेजर टॉमस ने भी ब्रजभाषा काव्य का संकलन किया।

निष्कर्ष

ब्रजभाषा भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण भाषा रही है, जिसने हिन्दी साहित्य को एक सशक्त आधार प्रदान किया। भक्ति, श्रृंगार, संगीत और दर्शन के क्षेत्र में इसका योगदान अमूल्य है। आधुनिक हिन्दी साहित्य की नींव भी ब्रजभाषा साहित्य के योगदान पर ही रखी गई है।

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