चतुर्भुजदास: जीवन परिचय एवं काव्य साधना.

चतुर्भुजदास हिंदी भक्ति साहित्य के एक महत्वपूर्ण कवि थे, जिनकी रचनाएँ माधुर्य भक्ति पर आधारित थीं। वे पुष्टिमार्गीय भक्ति परंपरा के अनुयायी थे और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। उनके काव्य में श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी, गुण-माधुरी और मुरली-माधुरी का अत्यंत सुंदर चित्रण हुआ है। इस लेख में उनके जीवन, कृतित्व, काव्य विशेषताएँ और भक्ति भावना का विस्तार से अध्ययन किया गया है।
1. चतुर्भुजदास का जीवन परिचय
चतुर्भुजदास का जन्म विक्रम संवत् 1520 में हुआ था। वे प्रसिद्ध भक्त कवि कुम्भनदास के पुत्र थे, जो अष्टछाप के कवियों में से एक थे। उनका जन्म स्थान जमुनावती गाँव (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में एक गौरवा क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनका संपूर्ण जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित था, और वे स्वभाव से अत्यंत सरल तथा विनम्र थे।
वे गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे, जो वल्लभाचार्य के पुत्र और पुष्टिमार्ग संप्रदाय के प्रमुख आचार्य थे। इस संप्रदाय में 'स्वरूप सेवा' अर्थात् श्रीकृष्ण की नित्य सेवा और प्रेममयी भक्ति का विशेष महत्त्व है। चतुर्भुजदास भी इस परंपरा का पालन करते थे और श्रीनाथजी के अनन्य भक्त थे।
उनका देहांत विक्रम संवत् 1624 में हुआ। वे अपने पीछे भक्ति साहित्य की एक समृद्ध धरोहर छोड़ गए, जिसमें श्रीकृष्ण के सौंदर्य, प्रेम और दिव्य लीलाओं का अद्भुत वर्णन मिलता है।
2. चतुर्भुजदास की प्रमुख रचनाएँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने चतुर्भुजदास की निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख किया है:
द्वादश यश
हित जू को मंगल
भक्ति प्रकाश
स्फुट पद (छिटपुट पदों का संग्रह)
इन रचनाओं में भक्ति, प्रेम और माधुर्य रस की प्रधानता है। उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी और भक्तिरस से ओतप्रोत है।
3. माधुर्य भक्ति का स्वरूप
चतुर्भुजदास की भक्ति भावना माधुर्य भक्ति पर आधारित थी। माधुर्य भक्ति का तात्पर्य है - भगवान श्रीकृष्ण को प्रेमी रूप में मानकर उनकी आराधना करना। इस भक्ति में भक्त और भगवान के बीच मधुर प्रेम संबंध होता है, जिसमें गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति असीम अनुराग सर्वोच्च आदर्श माना जाता है।
उनकी एक प्रसिद्ध रचना में श्रीकृष्ण की रूप-माधुरी का अनूठा चित्रण हुआ है:
"माई री आज और काल्ह और,
दिन प्रति और, देखिये रसिक गिरिराजबरन।
दिन प्रति नई छवि बरणै सो कौन कवि,
नित ही शृंगार बागे बरत बरन।।"
इसमें बताया गया है कि श्रीकृष्ण का सौंदर्य नित्य नवीन रहता है, और वह भक्तों को हर दिन नए रूप में आकर्षित करता है।
4. कृष्ण की रूप-माधुरी और गोपियों की भक्ति
चतुर्भुजदास के पदों में गोपियों के मनोभावों को अत्यंत सुंदरता से व्यक्त किया गया है। उनके अनुसार, जब गोपियाँ श्रीकृष्ण को देखती हैं, तो वे अपने तन-मन का सब कुछ उन्हें समर्पित कर देती हैं। वे सामाजिक बंधनों को तोड़कर कृष्ण के दर्शन के लिए व्याकुल रहती हैं। इस भावना को उन्होंने निम्नलिखित पद में अभिव्यक्त किया है:
"तब ते और न कछु सुहाय।
सुन्दर श्याम जबहिं ते देखे खरिक दुहावत गाय।।
आवति हुति चली मारग सखि, हौं अपने सति भाय।
मदन गोपाल देखि कै इकटक रही ठगी मुरझाय।।"
इस पद में दर्शाया गया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण के सौंदर्य में इतनी तल्लीन हो जाती हैं कि उन्हें अपने कर्तव्यों और सामाजिक मर्यादाओं की सुध नहीं रहती। यह माधुर्य भक्ति का चरम रूप है।
5. मुरली माधुरी का प्रभाव
चतुर्भुजदास ने श्रीकृष्ण की मुरली माधुरी का भी अद्भुत वर्णन किया है। उनकी बाँसुरी की तान से संपूर्ण सृष्टि मोहित हो जाती है, चेतन-अचेतन सभी जीव उस मधुर ध्वनि से आकर्षित हो जाते हैं।
"बेनु धरयो कर गोविन्द गुण निधान।
जाति हुति बन काज सखिन संग ठगी धुनि सुनि कान।।
मोहन सहस कल खग मृग पसु बहु बिधि सप्तक सुर बंधान।
चतुर्भुजदास प्रभु गिरिधर तन मन चोरि लियो करि मधुर गान।।"
इस पद में बताया गया है कि श्रीकृष्ण की मुरली सुनकर पशु-पक्षी, वनस्पति और मनुष्य सभी मोहित हो जाते हैं। यह उनकी मुरली माधुरी का जादू है।
6. काव्य विशेषताएँ
(क) भाषा और शैली
चतुर्भुजदास की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें सरलता और मधुरता है। उनकी रचनाओं में कोमलता, रसपूर्णता और सहजता की झलक मिलती है।
(ख) रस और अलंकार
उनके काव्य में मुख्य रूप से श्रृंगार रस (माधुर्य भक्ति) और भक्तिरस की प्रधानता है। उन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है।
(ग) संगीतात्मकता
उनके पदों में संगीतात्मकता है, जो पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के कीर्तन पद्धति के अनुकूल है।