जनजाति और जाति (Tribe and Caste) पर टिप्पणी करें।

प्राचीन समय में ही जनजाति धीरे-धीरे एक शांत रूप से जाति में परिवर्तित हो रही है। यह विश्वास किदा पहाता है कि आज जो नीची या बादन जातियों है उनमें से कई पहले पो समय की जनजातियों थी। मैक्स पैचर ने भारतीय सामाजिक सरधनाओं पर लिखे अपने प्रसिद्ध प्रयध में माना है कि जनजाति का क्षेत्रीय अर्थ और महत्व समाप्त हो जाता है, तब यह जाति में परिवर्तित हो जाती है।
उनका कहना है कि कभी-कभी एक ही जनजाति के अंतर्गत पद और प्रस्थिति की विभिन्नताएँ पाई जा सकती है। जबकि एक ही जाति के सभी सदस्यों के बीच पद साम्यता देखी जा सकती है। नातेवारी का बचन जनजातीय समाज को नियंत्रित करता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे के बराबर समझा जाता है।
वंशानुक्रम और वंश को स्वामित्व और उत्पादन तथा खपत की मुख्य इकाई माना जाता है। इस इकाई में जनजाति और जाति के विचार को दो भिन्न सामाजिक श्रेणियो के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
भारत में जनजातियों को भारतीय समाजों की एक विस्तृत श्रेणी मानकर समाजशास्त्री एवं मानवविज्ञान इन दो भिन्न सामाजिक श्रेणियों का खण्डन करते रहे है। इत्त व्याख्या के अंतर्गत एक-दूसरे को अलग करने का प्रयास किया गया है।
जनजातियों एवं जातियों को मनोवैज्ञानिक स्वरूप के संदर्भ में भी भिन्न दिखाया जाता है। इसके अतिरिक्त 'जाति' समाज में प्रथागत परंपराओं का एक विशेष संयोजन अपनाती है।
प्रस्तुत इकाई में जातियों में जनजातीय रूपांतरण, जनजातीय पहचान के विशिष्ट घटक, जनजाति का सामुदायिक जीवन तथा संस्कृक्तिकरण और हिंदूकरण की प्रक्रियाओं का विस्तार से अध्ययन किया गया है।