https://www.choptaplus.in/

धर्म और राजनीति (Religion and Politics) पर टिप्पणी ।

धर्म के अध्ययन के विभिन्न उपागमो तथा धर्म और राजनीति की ऐतिहासिक अवस्थाओं का अध्ययन किया गया है।
 
धर्म और राजनीति (Religion and Politics)
हमारी ऐतिहासिक अवस्थाओं में धर्म के राजनीतिकरण को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में देखते हैं।

 

परिचय

धर्म किसी न किसी रूप में समाज में सदैव ही विद्यमान रहा है। धर्म अलौकिक शक्तियों में विश्वास एवं इनकी उपासना पर आधारित है। धर्म शब्द 'पातु से बना है जिसका अर्थ होता है- धारण करना अर्थात जिसके द्वारा ब्रह्माण्ड धारण किया जाता है।

मैकाइवर के मतानुसार 'धर्म जैसा कि हम समझते आए है. वह केवल मानव के चीच का संबंध ही नहीं एक उच्चतर शक्ति के प्रति मानव का संबंध भी सूचित करता है। धर्म राजनीति अभिन्न है।

वे जटिल रूप से सदैव जहए है क्योंकि यह सामाजिक परिघटना है और उस समाज की संस्कृति का एक भाग है जिसे हम उत्तराधिकार में प्राप्त करते हैं। धर्म और राजनीति के अंतर्गत धर्म ने सदैव राजनीति की सेवा की है और राजनीति ने धर्म की सेवा की है। धर्म ने कमी भी अपने आप को राजनीति से अलग नहीं किया है और न ही राजनीति स्वयं को धर्म से अलग कर पाई है।

इस प्रकार हम, हमारी ऐतिहासिक अवस्थाओं में धर्म के राजनीतिकरण को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में देखते हैं। धर्म के अध्ययन के विभिन्न उपागम है। प्रकार्यवादी उपागम, जिसके संबंध में दुर्खीम, रेडक्लिफ ग्राउन पारसन्स ने अपने विचार व्यक्त किए है।

भारत में धर्म और राजनीति की ऐतिहासिक अवस्थाओं का वर्णन किया है जिसमें मानक समय-समय पर बदलते रहते हैं। इसके माध्यम से, सांप्रदायिकता में वृद्धि, धर्मनिरपेक्षता के विकास और रूढ़िवाद का विकास हुआ है।

प्रस्तुत इकाई में धर्म और राजनीति की संकल्पना, धर्म के अध्ययन के विभिन्न उपागमो तथा धर्म और राजनीति की ऐतिहासिक अवस्थाओं का अध्ययन किया गया है।

इस इकाई में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ व विभिन्न विश्वासों के अनुयायी नागरिकों के साथ व्यवहार करने में राज्य द्वारा निष्पक्षता की आवश्यकता पर विचार व्यक्त किए गए है। रूढ़िवाद को परंपरावाद, पुनरुज्जीवनवाद सांप्रदायिकतावाद के समतुल्य माना जाता है। इन सबका इस इकाई में सक्षेप में वर्णन किया गया है।

Rajasthan