'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' पर हिंदी निबंध ।
संकेत: भूमिका, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा, चुनौतीपूर्ण परवरिश, बेटी की सुरक्षा के लिए प्रयत्न ,उपसंहार।
21वीं सदी में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' नारे की अनुगूँज चारों ओर सुनाई पड़ने लगी। इस नारे की क्या आवश्यकता है। जब भारतवर्ष में प्राचीनकाल से नारी की स्तुति 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' कहकर की जाती रही हैं। यहाँ तक कि असुरों पर विजय प्राप्त करने के लिए भी देवताओं को नारी की शरण में जाना पड़ा था।
देवी दुर्गा ने राक्षकों का संहार किया था। विध्या की देवी सरस्वती, धन की देवी महालक्ष्मी और दुष्टों का नाश करने वाली महाकाली की अराधना आज भी की जाती हैं। इतना ही नहीं, आधुनिक काल में आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं ने पर्दा प्रथा को त्यागकर देश को स्वतंत्रता दिलवाने में बढ़ –चढ़कर भाग लिया। कविवर पंत ने नारी को 'देवी माँ', 'सहचरी', 'सखी', 'प्राण' तक कहकर सम्बोधित किया हैं। आज नारी चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री के पद तक विराजमान है।
पुलिस, सुरक्षा बल व सेना तक में भी उच्च पदों पर नियुक्त हैं । कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ उसने अपनी प्रबल कर्मठता का परिचय नहीं दिया। वह हर पद पर पुरुषों से अधिक ईमानद से काम करती हैं, यह सत्य किसी से भी नहीं से छिपा नहीं है। वह माँ बनकर सृष्टि की रचना करने जैसा पवित्र काम करती है। पत्नी और बहन बनकर अपने सामाजिक दायित्व को निभाती है।
आज अपने महान सहयोग से देश के विकास में वरावर की सहभागी बन गई हैं। फिर उसे हीन- भाव से क्यों देखा जाता है। वे कौन-से कारण हैं जिनके रहते बेटी को गर्भ में ही मार दिया जाता है।
यदि ध्यान से देखा जाए तो आजकल माता-पिता के लिए बेटी की परवरिश करन अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है। माता-पिता की सोच बनती जा रही है कि यदि बेटी को जन्म देने का क्या फायदा होगा। माता-पिता की यही सोच कन्या भ्रूण हत्या प्रथा का प्रमुख कारण हैं। इसके साथ –साथ दहेज प्रथा के कारण भी लोग बेटी को आर्थिक बोझ समझते हैं।
बेटी का बाप बनना अच्छा नहीं समझा जाता हैं। बेटे वंश चलाते हैं , बेटी नहीं। आज यौन अपराध व बलात्कार की घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं।
इसके अतिरिक्त बेटी को पराया न कहकर उसकी तौहीन की जाती है। इन सभी कारणों से बेटी को जन्म से पहले हि मार दिया जाता है। यदि समस्या की गहराई में झांका जाए तो इसमें बेटी कहां दोषी है? दोषी तो समाज या उसकी संकीर्ण सोच हैं। आज बेटियों की कमी के कारण अनेक नई-नई समस्याएँ उत्पन्न हो रही है। स्त्री-पुरुष संख्या का संतुलन बिगड़ रहा हैं।
यदि बेटियाँ नहीं होगी तो बहुएँ कहाँ से आएंगी। आज आवश्यकता है, बेटियों को बेटों के समान समझने की। उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने की। समाज के अपराध बोध को दूर करने की। दहेज जैसी कुप्रथा को समाप्त किया जाना चाहियें। कन्या भुरण हत्या अपनी कब्र खोदने के समान है।
'इनकी आहों को रोक न पाएंगे हम
अपने किए पर पछताएंगे हम ।'
इस दिशा में सरकार ने जब जनेक कदम उठाएँ हैं ताकि बेटियों को बचाया जा सके और जिन कारणों से बेटियों को बोझ समझकर जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, उन्हें दूर किया जा सके। सरकार की इन योजनाओं में बेटी धन योजना प्रमुख हैं। इसमें बेटी की शिक्षा व विवाह में आर्थिक सहायता की जाती है।
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' नारे के दूसरे भाग 'बेटी पढ़ाओ' पर भी विचार करना जरूरी है। इसका संबंध नारी-शिक्षा से है। नारी हो या पुरुष शिक्षा सबके लिए अनिवार्य है किन्तु बेटी-जीवन के सम्बन्ध में शिक्षा का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि यदि बेटी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बन जाती है तो यह माता-पिता पर बोझ न बनकर उनका सहारा बन सकती है।
बेटी बड़ी होकर देश की भावी पीढ़ी को योग्य बनाने के कार्य में उचित मार्ग दर्शन कर सकती हैं।
बच्चे सबसे अधिक माताओं के सम्पर्क में रहते हैं। माता के व्यवहार का प्रभाव बच्चों के मन पर सबसे अधिक पड़ता हैं । ऐसी स्थिति में बेटियों का पढ़ना अति आवश्यक है। आज की शिक्षित बेटी कल की शिक्षित कल की शिक्षित माँ होगी जो समाज के विकास में सहायक बन सकती है। इसीलिए बेटियों का सुशिक्षित होना अनिवार्य है।
शिक्षित व्यक्ति ही अपना हित –अहित ,लाभ –हानि भली-भाँति समझ सकता है। शिक्षित बेटियों ही अपने विकसित मन-मस्तिष्क से घर की व्यवस्था सुचारु रूप से चला सकती हैं तथा घर-परिवार के लिए आर्थिक उपार्जन भी कर सकती हैं। बेटियों पढ़-लिखकर योग्य बनकर आधुनिक देश –कल के अनुरूप उचित धारणाओं, संस्कारों और प्रयाओं का विकास करके कुप्रचाओं व कुरीतियों को मिटाकर एक स्वस्थ कर सकती हैं। बेटी पढ़ाओ की दिशा में आज समाज, देश व सरकार प्रयनशील हैं।
आज बेटी बचाने की आवश्यकता के साथ-साथ बेटियों को शिक्षित, विवेकी, आत्मनिर्भर बनाने की भी आवश्यकता है। इसी से बेटियों व नारियों संबंधी अनेक समस्याओं का समाधान सम्भव है। तभी, वे बराबरी और समान के साथ जीवन व्यतीत कर सकेंगी। तब बेटी बचाओ जैसे नारों की आवश्यकता नहीं रहेगी।