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हिंदी साहित्य : रीतिकालीन हिंदी काव्य।

वीर काव्य के क्षेत्र में भूषण का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड के वीरों का गुणगान किया।
 
हिंदी साहित्य
इस युग में वीर रस, नीति, वैराग्य और भक्ति पर भी कुछ कविताएँ लिखी गईं।

परिचय:
रीतिकाल (1700-1850 ई.) हिंदी कविता का वह युग है जिसमें काव्यशास्त्र के नियमों का गहन प्रभाव देखा जाता है। इस काल को विशेष रूप से दरबारी संस्कृति, संस्कृत साहित्य और अलंकारपरक शैली से प्रेरणा मिली। रीतिकालीन कवियों ने रस, अलंकार और नायिका भेद पर विशेष बल दिया, जिससे काव्य अधिक कलात्मक और शृंगारी बन गया।

रीतिकाव्य की प्रवृत्तियाँ:
इस काल का काव्य मुख्यतः शृंगार रस प्रधान रहा, जिसमें नायक-नायिका भेद, प्रेम, सौंदर्य, और श्रृंगारिक वर्णन को प्रमुखता मिली। कवि राजाश्रित होते थे, जिससे उनकी कविता अधिकतर राजदरबारों तक सीमित रही और जनसाधारण से विमुख होती गई।

हालाँकि, इस युग में वीर रस, नीति, वैराग्य और भक्ति पर भी कुछ कविताएँ लिखी गईं। वीर काव्य के क्षेत्र में भूषण का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड के वीरों का गुणगान किया। इसके अतिरिक्त, इस युग में नीति और भक्ति काव्य भी देखने को मिलता है, लेकिन इसकी मात्रा अपेक्षाकृत कम रही।

महत्वपूर्ण कवि और रचनाएँ:
इस युग के प्रमुख कवियों में केशवदास, बिहारी, भूषण, मतिराम, देव, पद्माकर, घनानंद आदि का नाम लिया जाता है।

  1. केशवदास – वे रीतिकाव्य के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ कविप्रिया, रसिकप्रिया और रामचंद्रिका हैं।
  2. बिहारी – उन्होंने बिहारी सतसई नामक दोहों का संग्रह लिखा, जिसमें संक्षिप्त और प्रभावशाली काव्य शैली दिखाई देती है।
  3. भूषण – वीर रस के प्रमुख कवि, जिन्होंने शिवाजी और अन्य वीरों की शौर्यगाथाएँ लिखीं।
  4. घनानंद – रीतिमुक्त कवि, जिन्होंने स्वच्छंद प्रेम की तीव्रता और गहराई को व्यक्त किया।
  5. देव – शृंगार रस के प्रमुख कवि, जिन्होंने अलंकारों और रसों का सुंदर प्रयोग किया।

रीतिकाव्य के प्रकार:
रीतिकाव्य को तीन भागों में विभाजित किया जाता है –

  1. रीतिबद्ध काव्य – इसमें काव्यशास्त्र के नियमों का पालन किया गया है। इसके प्रमुख कवि केशवदास, चिंतामणि, भिखारीदास, मतिराम और पद्माकर हैं।
  2. रीतिसिद्ध काव्य – इसमें कवियों ने काव्यशास्त्रीय नियमों का प्रत्यक्ष वर्णन नहीं किया, बल्कि उनके आधार पर कविता रची। बिहारी इस वर्ग के प्रमुख कवि हैं।
  3. रीतिमुक्त काव्य – इसमें प्रेम और भावनाओं की स्वच्छंद अभिव्यक्ति है। इसके प्रमुख कवि घनानंद, बोधा, द्विजदेव और ठाकुर हैं।

निष्कर्ष:
रीतिकाव्य मुख्यतः शृंगार रस पर आधारित था और इसमें काव्यशास्त्र का गहरा प्रभाव था। हालाँकि, धीरे-धीरे इसकी सीमाएँ स्पष्ट होने लगीं, जिससे हिंदी काव्य में नवीनता की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। रीतिकालीन काव्य अपनी कलात्मकता, अलंकारों की समृद्धता और रसपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखता है।

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