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Hindi Sahitya: परीक्षा गुरु: हिंदी का प्रथम उपन्यास.

"परीक्षा गुरु" की कहानी मदनमोहन नामक एक रईस युवक के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है।
 
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हिंदी साहित्य के इतिहास में "परीक्षा गुरु" को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

     

परिचय

हिंदी साहित्य के इतिहास में "परीक्षा गुरु" को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है, जिसे लाला श्रीनिवास दास ने 25 नवंबर 1882 को लिखा था। यह उपन्यास भारतीय समाज में नैतिकता, सद्गुण और जीवन की सच्चाइयों को दर्शाता है।

यह हिंदी गद्य लेखन के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसने भाषा, शैली और विषयवस्तु की दृष्टि से साहित्य में नई दिशा प्रदान की।

कथानक

"परीक्षा गुरु" की कहानी मदनमोहन नामक एक रईस युवक के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। वह एक समृद्ध वैश्व परिवार में जन्म लेता है, लेकिन उचित शिक्षा और मार्गदर्शन के अभाव में बुरी संगति में पड़ जाता है।

उसके आसपास चुन्नीलाल, शंभूदयाल, बैजनाथ और पुरुषोत्तम दास जैसे अवसरवादी, स्वार्थी और कपटी लोग होते हैं, जो उसे गुमराह करते हैं। इस संगति के कारण वह अपनी पूरी संपत्ति गंवा देता है और कर्ज में डूब जाता है।

परिस्थितियां इतनी बिगड़ जाती हैं कि उसे कर्ज अदा न कर पाने के कारण कारावास भी हो जाता है। इस कठिन समय में उसका सच्चा मित्र ब्रजकिशोर, जो एक वकील है, उसकी सहायता करता है।

ब्रजकिशोर न केवल उसे कानूनी सहायता प्रदान करता है बल्कि उसे आत्मचिंतन करने और अपने जीवन को सुधारने की प्रेरणा भी देता है। उसकी मदद से मदनमोहन अपनी खोई हुई संपत्ति वापस प्राप्त करता है और अपने जीवन को नई दिशा देता है।

भाषा-शैली

"परीक्षा गुरु" हिंदी गद्य के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उपन्यास 41 छोटे-छोटे प्रकरणों में विभाजित है, जिससे इसकी रोचकता बनी रहती है। इसकी भाषा सरल, प्रभावशाली और संवादात्मक है।

उपन्यास में खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया गया है, जिसमें ब्रज भाषा और संस्कृत के श्लोक भी सम्मिलित हैं। इसमें फारसी और अंग्रेज़ी के कुछ शब्द भी देखने को मिलते हैं।

शैली की दृष्टि से उपन्यास नैतिक शिक्षा और उपदेशात्मकता पर आधारित है। इसमें इंग्लैंड और यूनान के ऐतिहासिक उदाहरणों का उल्लेख किया गया है, जो ब्रजकिशोर के संवादों में प्रमुखता से देखे जा सकते हैं। हालांकि, आज के पाठकों को ये भाग थोड़े बोझिल लग सकते हैं।

उपन्यास में वर्तनी की दृष्टि से बोलचाल की शैली अपनाई गई है। कई शब्दों को उस समय की बोलचाल के अनुरूप लिखा गया है, जैसे ‘करनें’, ‘पढ़नें’, ‘समझवार’ (समझदार), ‘बिबश’ (विवश) आदि। इन प्रयोगों से यह स्पष्ट होता है कि यह उपन्यास हिंदी गद्य के विकास की एक प्रारंभिक अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।

नैतिकता और सामाजिक संदेश

"परीक्षा गुरु" का मूल संदेश यह है कि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है। मदनमोहन की कहानी हमें सिखाती है कि गलत संगति में पड़कर व्यक्ति किस प्रकार अपने जीवन को बर्बाद कर सकता है, लेकिन आत्मचिंतन, सही मार्गदर्शन और परिश्रम से वह पुनः अपने जीवन को सुधार सकता है।

यह उपन्यास समाज में नैतिकता, सतर्कता और विवेकशीलता को बढ़ावा देता है। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति को अपनी वास्तविक स्थिति को समझना चाहिए और छल-कपट से दूर रहकर ईमानदारी की राह अपनानी चाहिए।

ब्रजकिशोर जैसे पात्रों के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि सच्चे मित्र वही होते हैं जो कठिन समय में सहारा देते हैं, न कि वे जो केवल स्वार्थ सिद्धि के लिए साथ रहते हैं।

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