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महान कवि तुलसी दास Tulsidaas.

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक ये। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है।
 
तुलसी
 तुलसी दास  का संक्षिप्त जीवन परिचय ,रचनायें ,काव्यगत विशेषताएं एवं भाषा -शैली . 

 

 

                   तुलसी दास  का संक्षिप्त जीवन परिचय ,रचनायें ,काव्यगत विशेषताएं एवं भाषा -शैली . 

 1 . जीवन -परिचय - गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ट कवि मानें जाते हैं । अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन -व्रतांत  अभी तक अंधकारमय हैं । इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के समुख निज व्यक्तित्व का प्रति फलन प्रिय नहीं था . इनका जन्म सन 1532 में बाँदा जिलें के राजपुर नामक गावं में हुआ था । कुछ लोग इनका जन्म -स्थान सोरो [जिला एटा ] को भी मानतें हैं । इनके पिता का नाम आत्मा राम दुबे और माता का नाम हुलसी था । 

इनका विवाह रत्नावली से हुआ था।  इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मौत हो गई थी । तुलसी दास नें बाबा नरहरीदास से दीक्षा प्राप्त की । काशी में इन्होनें सोलह -सत्रह वर्ष तक वेद ,पुराण ,उपनिषद ,रामायण का गंभीर अध्ययन किया । इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ । 

2 .  प्रमुख रचनाएँ -     तुलसीदास की बारह  रचनाएँ  प्रसिद्ध हैं । उनमें रामचरितमानस ,विनयपत्रिका,कवितावली  ,दोहवाली , जानकी मंगल ,पार्वती मंगल आदि उल्लेखनीय है।

3. काव्य गत विशेषताएँ-       तुलसी दास  रामभक्त  कवि थे ।   राम [चरितमानस ]   इनकी आमर रचना है। तुलसी दास आदर्श वादी विचारधारा के कवि थे ।  इन्होनें राम के स गुण रूप की भक्ति   की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट  स्वरूप  का वर्णन किया हैं ।   तुलसीदास ने  श्री राम के   जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डालता है। उन्होंने रामचरितमानस में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की हैं । पिता ,पुत्र ,भाई ,पति ,प्रजा ,राजा ,  स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है। 

तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है-  तुलसी  का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान , भक्ति  और कर्म ,धर्म और संस्कृति, सगुण और निर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।

तुलसीदास को भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को   तुच्छ  या हीन स्वीकार करतें हैं । 

"राम  सो बड़ों है कौन ,  मोसो कौन है छोटो।

राम सो  खरो है कौन, मोतो कौन है खोटों ।"

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक ये। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। नीजी के काव्य में उनके भक्त, कपि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।

4. भाषा-शैली    -इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु बज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त  था । इनही भाषा में संस्कृत की कोमल कान्त पदावली  की  सुन्दर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रवास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। इन्होंने अपने काम में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है।   भावों  के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रुपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला , चौपाई, हरिगीतिका ,छप्पय ,सोरठया   आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

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