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महाकवि भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएं ।

भदंत कौसल्यायन की पर्यटन में रुचि होने के कारण वे देश -विदेश की यात्राएं करते रहें ।
 
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भदंत आनंद कौसल्यायन एक सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं हिंदी के महान प्रचारक थे

 

1. जीवन-परिचय-भदंत आनंद कौसल्यायन एक सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं हिंदी के महान प्रचारक थे । उनका जन्म सन् 1905 में अंबाला जिले के सोहाना नामक गाँव में हुआ था। बौद्ध भिक्षु होने के कारण उन्होनें देश -विदेश का बहुत भ्रमण किया है ।  वे गाँधी जी के साथ भी एक लंबे समय तक रहे। उनकी रचनाओं में गाँधी जी के जीवन दर्शन को  देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म के कार्यों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी भाषा और  साहित्य की निरंतर सेवा की । वे हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग  से संबद्ध रहे तथा बाद में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सचिव पद पर रहकर हिंदी भाषा के प्रचार -प्रसार  करते रहे। सन् 1988 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-भदंत आनंद कौसल्यायन की 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें भिक्षु के पत्र ,जो भूल ना सका , 'आह! ऐसी दरिद्रता', 'बहानेबाजी', 'यदि बाबा ना होते', 'रेल का टिकट', कहाँ क्या देखा ,आदि प्रमुख हैं । बौद्धधर्म -दर्शन  से संबंधित उनके मौलिक और अनूदित अनेक ग्रंथ हैं जिनमें जातक कथाओं का अनुवाद विशेष उलेखनीयें हैं । 

3. साहित्यिक विशेषताएँ-   भदंत कौसल्यायन की पर्यटन में रुचि होने के कारण वे देश -विदेश की यात्राएं करते रहें । उनकों   जीवन का महान् अनुभव था, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है।  उन्होनें अपनी  रचनाओं में तत्कालीन अनेकानेक   विषयों का अत्यंत सहज एवं सरल रूप में वर्णन किया है। उनका संपूर्ण जीवनव साहित्य में मानवीय आचार-व्यवहार, यात्रा संस्मरण, गाँधी जी के महत्त्वपूर्ण  संस्मरण रहें । उनके साहित्य में विश्व -वर्णन की  ताज़गी देखते ही बनती है। उनके संपूर्ण साहित्य में मानवतावाद का स्वर मुखरित हुआ हैं । 

4. भाषा-शैली-    कौसल्यायन जी के साहित्य की भाषा सरल, सहज एवं व्यवहारिक हैं । उन्होनें अपनी रचनाओं में खड़ी बोली  हिंदी का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया है। भाषा की आडंबरहीनता उनके साहित्य की सबसे बड़ी कलात्मक विशेषता हैं । उनकी भाषा को जन-भाषा कहना भी उचित होगा। उनके प्रस्तुत निबंध में कहीं-कही भाषा की शिथिलता खटक्तई  हैं । 

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