जनगणना के कार्य में जाति की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
17 वीं और 18 वीं शताब्दियों में जाती और वर्ण की लकीर महीन थी।

1871 से 1931 तक जाति, जनगणना की एक महत्वपूर्ण परिवर्ती रही हैं। जाति शब्द की उत्पति पुर्तगाली शब्द कास्टस से हुई हैं और इसका आशय चार वर्ण वाले श्रेणीयों और जातियों अथवा ऐसी विशिष्ट स्थानीय इकाई यों से हैं, जिनसे लोग स्वंय को संबद्ध करके देखते थे। 17 वीं और 18 वीं शताब्दियों में जाती और वर्ण की लकीर महीन थी।
आर्थिक , भेद, प्रवास और परिस्थिक अंतर सभी ने नई जातियों को बनाने अथवा जाति विघटन और विलयन के माध्यम से लोगो को अपनी जाति की पावन परिवर्तित करने में के मुखिया अथवा निम्न जाति वाले लोग अपने-अपने क्षेत्र में राजा बन गए। उन्होंने राजपूत भूमिका निभाई।
मुगल साम्राज्य के विघटन के बाद अस्थिर परिस्थितियों में अनेक आदिवासि प्रिस्थिति का दावा किया और स्वयं के लिए उपयुक्त वशावलियो के निर्माण के लिए बाह्मण पुजारी नियुक्त किए।
जातियों की कोई अखिल भारतीय स्थिति नहीं थी और यह स्थिति समय के साथ बदलती थी। उदाहरण के लिए डर्स ने यह तर्क दिया कि धर्म और राजनीति का पृथककरण और दक्षिण भारत में क्षत्रियों पर ब्राह्मणों का प्रथागत वर्चास्व उपनिवेशीय काल के कारण पैदा हुआ।
उपनिवेशीय शासन के अधिक सुदृढ़ होने के साथ उपनिवेशीय प्रशासकों को निवासी जनसख्या को नियंत्रित करने के लिए उन्हें जानने और समझने की आवश्यकता थी।
19 वीं शताब्दी में प्रजातियों का वर्गीकरण करने के लिए किए गए अनेक अध्ययनों के साथ प्रजाति एक वैज्ञानिक पूर्वाग्रह बन गई। शाही राजपत्रो की श्रृंखला सहित दशवार्षिक जनगणना मानवजाति वर्णन सर्वेक्षणों, व्यवस्था रिकॉडों आदि ने जाति और प्रजाति के कुछ विचारों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। निवासी व्यवहार को समझाने के लिए जाति और धर्म को महत्वपूर्ण माना जाता था।
इस देश में प्रशासन की अनेक शाखाओं को होने वाले उस लाभ पर विस्तार से बात करना अनावश्यक है जो विभिन्न जातियों और जनजातियों के घरेलू तथा सामाजिक संबंधों और प्रथाओं के सटीक तथा सुव्यवस्थित रिकॉर्ड से हुआ है।
व्यक्तियों के निवासी आचार का संपूर्ण ढाँचा मुख्यतः उस समूह के नियमों द्वारा निर्धारित होता है जिसके वे सदस्य होते हैं। विधि प्रक्रिया, सूखा राहत, सफाई तथा महामारी रोगों से निपटान और लगभग प्रत्येक प्रकार की कार्यकारी गतिविधि और लोगों की प्रथाओं के रिकॉर्ड के विधिक उद्देश्यों के लिए भारत के मानव जाति वर्णन संबंधी सर्वेक्षण अच्छे प्रशासन के लिए उतना ही आवश्यक है जितना भूमि पर भूकर सर्वेक्षण और उसके किराएदारों के अधिकारों का रिकॉर्ड।